Budhwar Vrat Katha: बुधवार के दिन जरूर पढ़ें गणेश जी की चमत्कारी व्रत कथा, पूरी होंगी सभी मुरादें
Budhwar Vrat Katha: सनातन धर्म में बुधवार का दिन विघ्नहर्ता यानी भगवान गणेश को समर्पित किया गया है। पौराणिक मान्यता है कि जो भी भक्त बुधवार के दिन सच्चे मन से गणेशजी की पूजा-अर्चना करता है, उसकी जिंदगी से धीरे-धीरे सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में यह उल्लेखित है कि बुधवार का व्रत रखने वाले जातकों की सभी मनोकामनाएं भगवान गणेश पूर्ण करते हैं और उनके जीवन में सुख-शांति आती है। लेकिन मान्यताओं के अनुसार, बुधवार के व्रत का फल कथा का पाठ करने के बाद ही मिलता है। ऐसे में आइए, इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं कि बुधवार व्रत का कथा क्या है, जिसे सभी भक्तों को जरूर पढ़ना चाहिए।
बुधवार व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में समतापुर नाम का एक नगर था। उस नगर में मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति निवास करता था। मधुसूदन जब विवाह योग्य हुआ तो उसके माता-पिता ने उसका विवाह पास के ही छोटे से नगर बलरामपुर की युवती संगीता से कर दिया। संगीता का परिवार काफी धार्मिक और सात्विक भाव से जीवन जीता था। इसलिए संगीता और मधुसूदन का विवाह पूर्ण रीति रिवाज और रस्मों से संपन्न हुआ। विवाह उपरांत संगीता और मधुसूदन सुखपूर्वक दाम्पत्य जीवन जीने लगे।
बुधवार को ससुराल से ले जाना अशुभ
विवाह होने के बाद कभी अपने ससुराल कभी पीहर इस तरह संगीता का जीवन खुशी पूर्वक व्यतीत होने लगा। एक बार संगीता अपने पीहर बलरामपुर गई हुई थी तो मधुसूदन उसे लेने अपने ससुराल पहुंचा। ससुराल में मधुसूदन की खूब आदर-सत्कार हुई और काफी सम्मान मिला। उसी दिन संध्या को मधुसूदन ने ससुराल से विदाई लेनी चाही तो संगीता के माता-पिता ने मना कर दिया। संगीता के माता-पिता ने कहा कि पुत्र आज बुधवार का दिन है। हमारे यह रिवाज है कि बुधवार के दिन लड़की को अपने ससुराल के लिए विदा नहीं करते हैं। बुधवार को ससुराल जाना बहुत अशुभ माना जाता है। आप आज रात्रि को यही विश्राम करो और प्रातःकाल संगीता को लेकर चले जाना।
विदा होने के कुछ देर बाद ही घटी ये घटना
मधुसूदन को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ और वह बुधवार को ही जाने की अपनी जिद पर अडिग रहा। हारकर संगीता के माता-पिता ने उन्हें विदा कर दिया। मधुसूदन और संगीता अभी कुछ दूर ही निकले थे की घने वन में उनकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया। अब बैल बैलगाड़ी को नहीं खींच पाए और दोनों पैदल ही समतापुर की तरफ निकल पड़े। कुछ दूरी चलने के बाद संगीता को थकान होने लगी और तेज प्यास लग गई। दोनों ने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का निश्चय किया और मधुसूदन संगीता के लिए जल लाने वन में निकल गया। थोड़ी देर बाद जब मधुसूदन जल लेकर आया तो देखता है की उसकी पत्नी के पास उसका हमशक्ल व्यक्ति ठीक उसी के जैसी वेशभूषा धारण किए बैठा है।
जब बुद्धदेव हो गए क्रोधित
मधुसूदन को ये देख बहुत गुस्सा आया और वह उस बहरूपिए से झगड़ा करने लगा। संगीता भी नहीं समझ पाई की उसका पति कौन है क्योंकि दोनों एक जैसे लग रहे थे। मधुसूदन और उसके हमशक्ल का झगड़ा सुनकर पास ही से गुजर रहे राजा के सैनिक वहां आ गए। सैनिकों ने जब सारा वृतांत सुना तो उन्होंने संगीता से अपने पति को पहचानने को कहा। संगीता भी दुविधा में पड़ गई और अपने पति को नहीं पहचान पाई। झगड़े का कोई हल नहीं निकलने के कारण सैनिकों से मधुसूदन और उसके हमशक्ल को राज दरबार में पेश किया। राजा ने दोनों को कठोर कारावास की सजा सुना दी। अब मधुसूदन को अपने किए का प्रायश्चित होने लगा और वो समझ गया की उसने बुद्धदेव को क्रोधित किया है और ये उन्हीं के क्रोध का फल है।
हाथ जोड़कर भगवान बुध से मांगी क्षमा
इसके बाद मधुसूदन ने हाथ जोड़कर भगवान बुध से क्षमा मांगी। मधुसूदन ने प्रण लिया कि वो आज के बाद हमेशा बुधवार का व्रत रखेगा और बुधवार व्रत कथा सुनेगा। भगवान ने उसे उसके पाप का दंड ने दिया था और उसे शिक्षा भी मिल गई थी इसलिए भगवान ने उसको क्षमा कर दिया। मधुसूदन के पाप मुक्त होते ही चमत्कार हुआ और उसका बहरूपिया तुरंत अदृश्य हो गया। राजा ने उसे क्षमा करके प्राण दान दिया और संगीता के साथ विदा कर दिया।
खुशी का ठिकाना नहीं रहा
इसके बाद दोनों राजा के महल से थोड़ी ही दूर निकले होंगे की उन्हें सामने से अपनी बैलगाड़ी आती दिखाई दी। बैलगाड़ी में दोनों पहिए भी एकदम ठीक थे। मधुसूदन और संगीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दोनों ने भगवान को धन्यवाद दिया और तुरंत अपनी बैलगाड़ी में सवार होकर घर की तरफ प्रस्थान किया। उसके बाद से मधुसूदन कभी भी बुधवार को संगीता को नहीं लाया और दोनों सुखपूर्वक अपना दाम्पत्य जीवन यापन करने लगे।
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