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माता शबरी रामायण की एक महत्वपूर्ण पात्र हैं, जिन्होंने भगवान राम की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया था। शबरी ने भगवान राम और माता सीता की प्रतीक्षा में वर्षों तक वन में निवास किया था। वह प्रतिदिन मार्ग में पुष्प बिछाकर और चखकर मीठे बेर भगवान राम के लिए चुनकर रखती थीं। एक दिन, माता सीता की खोज करते समय वन के रास्ते में भगवान राम की भेंट माता शबरी से हुई। माता शबरी ने भगवान राम का स्वागत किया और उन्हें अपने द्वारा चुने गए मीठे बेर खिलाए। भगवान राम ने माता शबरी के चखे हुए बेर भी खाए, जो उनकी भक्ति और समर्पण को स्वीकार करने का प्रतीक था। आइए जानते हैं कि भगवान राम और माता शबरी के बीच हुई ऐतिहासिक भेंट का स्थान क्या था? आज वह जगह कहां है और उसका क्या महत्व है?
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह तिथि 19 फरवरी को प्रातः 7:32 पर प्रारंभ होगी और 20 फरवरी को प्रातः 9:58 तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष शबरी जयंती 20 फरवरी को मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग में फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान राम और माता शबरी की ऐतिहासिक भेंट हुई थी। इस दिन भगवान राम ने माता शबरी के चखे हुए बेर खाए थे, जो उनकी भक्ति और समर्पण को स्वीकार करने का प्रतीक था। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन माता शबरी को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यह मान्यता इस भाव पर आधारित है कि जब माता शबरी की भगवान राम से भेंट हुई तो उनकी सभी कामनाएं पूरी हो गईं और उन्हें मुक्ति मिल गई। यह स्थान आज गुजरात के डांग जिले के सुबीर गांव में स्थित है और यहां शबरीधाम मंदिर बनाया गया है।
शबरी धाम एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जो भगवान राम की भक्त शबरी के नाम पर स्थापित किया गया है। यह स्थल गुजरात राज्य के डांग जिले में स्थित है। शबरी धाम का महत्व इस प्रकार है:
शबरी धाम भगवान राम की भक्त शबरी का निवास स्थान था, जहां उन्होंने भगवान राम को बेर खिलाए थे। यह स्थल भगवान राम की भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
शबरी धाम का उल्लेख रामायण में भी मिलता है, जहां भगवान राम ने शबरी के साथ समय बिताया था। यह स्थल पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है।
शबरी धाम एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहां लोग आत्म-शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने के लिए आते हैं। यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण से परिपूर्ण है।
शबरी धाम गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह स्थल राज्य की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को प्रदर्शित करता है।
पर्यटन महत्व शबरी धाम एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है, जो प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह स्थल अपनी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
माता शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था, जो भील समुदाय की शबर जाति से संबंध रखती थीं। उनके पिता भीलों के राजा थे। उन्होंने माता शबरी के विवाह के लिए एक भील कुमार का चयन किया था। लेकिन उस समय विवाह में जानवरों की बलि देने का नियम था, जिसे शबरी ने स्वीकार नहीं किया। माता शबरी ने जानवरों की रक्षा के लिए विवाह करने से इनकार कर दिया, जो उनकी दयालुता और साहस का प्रतीक है। इसलिए वह विवाह से पूर्व अपने घर से चली गईं और वन में ऋषियों के लिए लकड़ी और भोजन के लिए फल लाती थीं।
सभी ऋषि शबरी से अत्यंत प्रसन्न थे, लेकिन जब उन्हें ज्ञात हुआ कि शबरी अछूत हैं, तो उन्होंने उनका त्याग कर दिया।
अंत में ऋषि मतंग ने उन्हें अपनाया और शिक्षा दी, जिससे शबरी की भक्ति और सुदृढ़ हुई। ऋषि मतंग ने शबरी को बताया कि एक दिन भगवान राम उनके पास आएंगे और उन्हें इस संसार से मुक्त कर देंगे।
तत्पश्चात शबरी ने अपनी कुटिया को प्रतिदिन पुष्पों से सजाया और मधुर फल चुनकर भगवान राम की प्रतीक्षा की। वह नहीं चाहती थीं कि भगवान राम को अमधुर बेर मिलें। वर्षों की प्रतीक्षा के बाद जब शबरी वृद्ध हो चुकी थीं, तब भगवान राम माता सीता की खोज में उस वन में पधारे, जहां शबरी की कुटिया थी।
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