महाराष्ट्र में गुरु के तौर पर होती है भगवान दत्तात्रेय की पूजा, जानें इनके जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा और महत्व
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवों के अंश माने जाने वाले भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। भगवान दत्तात्रेय को गुरु और भगवान दोनों की उपाधि दी गई है। मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु ये तीनों देव प्रसन्न होते हैं और तीनों ही देवों के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। भगवान दत्तात्रेय शीघ्र कृपा करने वाले देव कहे जाते हैं, दत्तात्रेय विद्या के परम आचार्य हैं। भगवान नारायण के अवतारों में इन्होंने भी श्रीकृष्ण की तरह ही सुदर्शन चक्र धारण किया था।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं। इन्हें कलयुग का देवता भी कहा जाता है। गौ माता और कुत्ते दोनों को उनकी सवारी माना गया है। मान्यता है कि दत्तात्रेय की पूजा करने से तीनों देव त्रिदेव की पूजा करने का फल प्राप्त होता है। भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मचारी और संन्यासी कहलाए जाते हैं। महाराष्ट्र में भगवान दत्तात्रेय की पूजा गुरु के रूप में बड़े धूमधाम से की जाती है। मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में सती अनसूइया ने भगवान दत्तात्रेय को जन्म दिया था। ऐसे में आइये भगवान दत्तात्रेय के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा को विस्तार से जानते हैं। साथ ही जानेंगे दत्तात्रेय जयंती के महत्व के बारे में।
कब है दत्तात्रेय जयंती 2024?
पंचांग के अनुसार दत्तात्रेय जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। इस साल इस तिथि की शुरुआत 14 दिसंबर 2024 को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर हो रही है, जो 15 दिसंबर 2024 को दोपहर 2 बजकर 31 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में दत्तात्रेय जयंती 14 दिसंबर को मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा।
दत्तात्रेय जयंती का महत्व
शास्त्रों के अनुसार दत्तात्रेय जयंती का बहुत ही खास महत्व है। भगवान दत्तात्रेय के पिता महर्षि अत्रि और माता अनुसूया थीं। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से सुख, समृद्धि और मनोकामना पूर्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन गंगा स्नान और दान- पुण्य करने से व्यक्ति के सारे कष्टों का नाश होता है और पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
भगवान दत्तात्रेय के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा
दत्तात्रेय भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माने जाते हैं। मार्कंडेय पुराण के नौवें और दसवें अध्याय में भगवान दत्तात्रेय के जन्म तथा प्रभाव की कथा में असंभव को संभव कर देने के दृष्टांत उल्लिखित हैं। स्वयं दत्तात्रेय की माता अनुसुइया ने अपने पतिव्रता धर्म के चलते असंभव कार्य को संभव किया।
मार्कंडेय पुराण के अनुसार, एक कुष्ठरोगी ब्राह्मण की पत्नी पतिव्रता एवं स्वामिभक्त थी, लेकिन उसका पति एक वेश्या पर अनुरक्त हो गया। पतिव्रता पत्नी उसे कंधे पर बैठाकर अंधेरी रात में वेश्या से मिलाने उसके घर चली। रास्ते में मांडव्य ऋषि तपस्या कर रहे थे, जिनसे उस कुष्ठरोगी ब्राह्मण का पैर स्पर्श कर गया। मांडव्य ऋषि ने शाप दिया कि जिसका पैर उन्हें लगा है, वह सूर्योदय होते मर जाएगा। इसे सुनकर पतिव्रता पत्नी ने पति की रक्षा और वैधव्य जीवन से बचने के लिए कहा, 'जाओ सूर्य उदय ही नहीं होगा।'
पतिव्रता पत्नी के इस संकल्प से सूर्योदय हुआ ही नहीं। ऐसे में संसार में हाहाकार मचने लगा। देवमंडल ब्रह्मा जी के पास पहुंचा, ब्रह्मा ने देवताओं से कहा कि वे अत्रि ऋषि की पतिव्रता पत्नी अनुसुइया के पास जाएं। पतिव्रता के शाप का समाधान कोई पतिव्रता ही कर सकती है।
अनसूइया ब्राह्मण की पत्नी के पास आईं और कहा कि तुम सूर्योदय होने दो। मैं तुम्हारे पति को अपने तपोबल से जीवित कर दूंगी और कुष्ठ रोग से मुक्त भी कर दूंगी। ऐसा आश्वासन पाकर ब्राह्मण पत्नी ने सूर्योदय होने दिया और उस ब्राह्मण को अनुसुइया ने जीवित व व्याधि मुक्त कर दिया। इस घटना से देवता अनुसुइया से काफी प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। ऐसे में अनसूइया ने 'ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वरदान मांगा।
देवताओं के वरदान के चलते ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसुइया के गर्भ से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। ये अत्रि की द्वितीय संतान हैं, जबकि प्रथम मानस पुत्र प्रजापति ब्रह्मा चंद्रमा के रूप में हैं और तृतीय पुत्र दुर्वासा महेश रूप हैं।
श्रीमद्भागवत के अनुसार, दत्तात्रेय ने 24 पदार्थों से अनेक शिक्षाएं ग्रहण की, जिन्हें वे अपना गुरु मानते थे। वे 24 पदार्थ हैं-पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चंद्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, सागर, पतंग, मधुकर (भौंरा), हाथी, मधुहारी (मधुमक्खी), हिरन, मछली, वेश्या, गिद्ध, बालक, कुमारी कन्या, बाण बनाने वाला, सांप, मकड़ी और तितली ।
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