Logo

वैशाख शुक्ल पक्ष की मोहिनी नामक एकादशी (Vaishaakh Shukl Paksh Kee Mohinee Naamak Ekaadashee)

वैशाख शुक्ल पक्ष की मोहिनी नामक एकादशी (Vaishaakh Shukl Paksh Kee Mohinee Naamak Ekaadashee)

भगवान् कृष्ण के मुखरबिन्द से इतनी कथा सुनकर पाण्डुनन्दन महाराज युधिष्ठिर ने उनसे कहा - हे भगवन् ! आपकी अमृतमय वाणी से इस कथा को सुना परन्तु हृदय की जिज्ञासा नष्ट होने के बजाय और भी प्रबल हो गई है। अब आप कृपा कर वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी के व्रत का विधान एवं माहात्म्य वर्णन कर मेरे तृषित हृदय की प्यास को हरण कीजिये।

पाण्डुनन्दन के ऐसे वचन सुन भगवान् श्रीकृष्ण मुस्कराते हुए बोले-राजन् ! अब मैं तुम्हें वह कथा सुनाता हूँ जो महर्षि वसिष्ठ ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् रामचन्दद्रजी को सुनाई थी। एक समय की बात है कि भगवान् रामचन्दद्रजी ने अपने गुरु महर्षि वसिष्ठ के भवन में जा उन्हें प्रणाम किया और हाथ जोड़कर कहा-हे भगवन् आप कृपाकर मुझे कोई एक ऐसा व्रत बतावें कि जिसके करने से अनन्त पुण्य फल की प्राप्ति हो और अनायास ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की भी प्राप्ति हो। भगवान् रामचन्द्र के ऐसे वचन सुन वसिष्ठ जी ने कहा-वत्स ! धन्य हो तुम जो इस प्रकार का प्रश्न करके लोक के कल्याण की कामना की है। अच्छा सुनिए ! वैशाख शुक्ल पक्ष कीएकादशी का नाम मोहिनी है। इस मोहिनी एकादशी का व्रत जगत् के समस्त मोह-जाल और पाप कर्मों से मुक्ति करा देता है। मैं आपको इस विषय का एक अत्यन्त प्राचीन इतिहास सुनाता हूँ। सावधान होकर सुनिए। इस आख्यान के सुनने एवं सुनाने में महान् से महान् भी पाप नष्ट हो जाते हैं।

सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी थी, वहाँ का राजा सोम वंशोत्पन्न अत्यन्त धर्मात्मा, दयालु सत्यवादी एवं न्यायी था। उसका मंत्री वैश्य कुलोत्पन्न धनपाल नामक अत्यनत धर्मात्मा और परम वैष्णव था। उसने अनेकों बगीचे लगवाये थे, अनेकों कुएँ एवं तालाब खुदवाये थे और अनेकों अन्न-क्षेत्र कायम किये थे, उसके पाँच बेटे थे, सुमनोहर, द्युतिमान्, मेधावी, सुकीर्ति और धृष्टबुद्धि । इनमें धृष्टबुद्धि महापापी, दुराचारी, दुष्ट, जुआड़ी, चोर, वेश्या एवं पर स्त्रीगामी भक्ष्याभक्ष भक्षण करने वाला महा उद्दण्ड और आततायी था। उसके इन सब दुष्ट कर्मों से खीझकर धनपाल ने पहिले उसे समझाया, धमकाया एवं दण्डित किया। मगर उसने अपनी आदतों को छोड़ा नहीं तब राजा से कहकर उसे देश निकालने का दण्ड दिला दिया। धृष्ट बुद्धि कुछ दिनों तक तो अपने संचित धन और जेवरों का बेच-खोचकर खाया, मगर जब वह खत्म हो गया तो उन वेश्याओं ने भी धक्के दे अपने घरों से उसे निकाल दिया। तब वह दुष्ट चोरी और बटमारी करके गुजर बशर करने लगा। पहले तो वह पक्का घुटा हुआ बदमाश स्वयं ही बन चुका था इससे राजकर्मचारियों की पकड़ आता ही नहीं था और अगर कभी आ भी जाता तो कर्मचारी उसके बाप के मुलाहिजे से उसे छोड़ दिया करते थे। इस प्रकार जीवन बिताते बहुत दिन बीते, तब एक दिन वह पकड़ा गया और राजा ने उसे अपने राज्य से एकदम बाहर कर दिया। अब वह वन में जा वन पशुओं को मार कर अपना गुजर बशर करने लगा।

संयोग वश वह एक दिन कौण्डिन्य मुनि के आश्रम पर जा पहुँचा। वैशाख का महीना और प्रातःकाल का समय था। महर्षि स्नान कर बैठे थे, संयोग वश मुनि के वस्त्र का एक कोना उसके शरीरछू गया। उसी के प्रभाव से उसके पाप कुछ हल्के थे। उसके हृदय में ज्ञान का संचार हुआ वह महर्षि के पास जा उन्हें प्रणाम कर उनसे कहा-प्रभो! में महा अधम और भीषण पापी हूँ। अपने किये कर्मों का फल भोग रहा हूँ। प्रभो ! मुझे कोई ऐसी युक्ति बताओ कि मैं बिना धन के पाप से मुक्त हो जाऊँ। धृष्टबुद्धि के ऐसे वचन सुन मुनि के हृदय में दया उत्पन्न हुई और उन्होंने कहा-वत्स ! सावधान होकर मेरी बातों को सुनो। कल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी नाम एकादशी है। तुम आज शाम को शुद्ध मन से संकल्प करो कि मैं अपने पापों के मोचनार्थ मोहिनी एकादशी का व्रत करूंगा। इस प्रकार संकल्प कर द्वादशी को प्रातःकाल शौच इत्यादि से निवृत्त हो स्नान कर भगवान् का पूजन एवं ध्यान करो। दिन भर और रातभर भोजन-पान त्याग कर केवल भगवद् भजन करो। द्वादशी को व्रत का पारण कर किसी ब्राह्मण को कुछ दे दो, तुम्हारा पाप अवश्य ही नष्ट होगा। धृष्टबुद्धि ने महर्षि के कथनानुसार मोहिनी एकादशी का व्रत किया और उसके प्रभाव से उसके समस्त पाप नष्ट हो गये और वह परम पद को प्राप्त हुआ मोहिनी के समान सरल एवं फल देने वाला और कोई दूसरा व्रत नहीं है। इस कथा को कहने एवं सुनने वालों कों अनेकों गोदान का फल प्राप्त होता है।

........................................................................................................
महाभारत से जुड़ा शक्तिपीठ का संबंध, मछुआरे की वजह से राजा ताम्रध्वज ने किया मंदिर निर्माण (Mahaabhaarat Se Juda Shaktipeeth Ka Sambandh, Machhuaare Kee Vajah Se Raaja Taamradhvaj Ne Kiya Mandir Nirmaan)

माता सती के कपालिनी और भगवान शिव के शर्वानंद स्वरूप के दर्शन बरगाभीमा या कपालिनी शक्तिपीठ में मिलते हैं।

नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर, बीरभूम, पश्चिम बंगाल (Nandikeshwari Shaktipeeth Temple, Birbhum, West Bengal)

नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर में माता सती के शरीर का कोई अंग नहीं बल्कि उनका आभूषण हार गिरा था। यहां माता के देवी नंदिनी और शिव के नंदकिशोर स्वरूप की पूजा होती है।

अवंती शक्तिपीठ, उज्जैन, मध्य प्रदेश ( Avanti Shaktipeeth, Ujjain, Madhya Pradesh)

अवंती मां शक्तिपीठ मंदिर, मध्य प्रदेश के प्राचीनतम शहर उज्जैन में स्थित है। इसे गढ़ कालिका मंदिर भी कहा जाता है।

देवी के नर्मदा स्वरूप की होती है पूजा, भगवान शिव का असितांग अवतार भी यहीं (Devee Ke Narmada Svaroop Ke Hote hai Pooja, Bhagawan Shiv Ka Asitaang Avataar Bhee Yaheen)

मध्य प्रदेश में मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक कालमाधव शक्तिपीठ मंदिर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना लगभग 6000 साल पहले हुई थी।

यह भी जाने
HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang