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Hanuman Ki Katha (हनुमानजी की उत्पत्ति)

Hanuman Ki Katha (हनुमानजी की उत्पत्ति)

भक्ति और वैराग्य के आधारभूत स्तंभ पर टिकी सनातनी परंपरा में जब भी भक्ती की बात होती है तो अलग-अलग काल में हुए भक्तों के नाम याद किए जाते हैं। इन सभी भक्तों में सबसे ऊपर नाम एक ऐसे भक्त का नाम आता है जिनका नाम हर युग में चिरकाल तक जीवंत रहेगा, ये ऐसे भक्त हैं जिनको अमरता का वरदान प्राप्त है और युगों युगों से धरती पर मौजूद हैं। प्रभू की सेवा करने के उनके नि:स्वार्थ भाव ने उन्हें भक्त शिरोमणि की उपमा प्रदान की है। उनकी भक्ति के लिए लिखने वालों ने यहां तक लिखा है कि ‘दुनिया के चलाने वाले भगवान का कोई भी काम उनके बिना नहीं चलता। आपने भी सुना ही होगा.. "दुनिया चले न श्रीराम के बिना, रामजी चले न हनुमान के बिना’

तो आइए भक्तवत्सल की उत्पत्ति विशेष श्रृंख्ला में रूबरू होते हैं भक्तशिरोमणि श्री हनुमान जी के पावन चरित्र से, साथ ही जानेंगे कथा बजरंगबलि की उत्पत्ति और उनके शौर्य की भी….


कथा हनुमान जी के जन्म की


हर साल चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं में इसी दिन बजरंगबली के जन्म का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि हनुमान सात चिरंजीवियों में से एक हैं और रुद्र के 11वें अवतार हैं। भगवान श्री हरि विष्णु जी ने धरती पर धर्म स्थापना के लिए जब रामावतार लिया तो हनुमान उनके सहायक बनकर बजरंगबली के रूप में धरती पर आए थे।

कथा शुरू होती है शिव जी के उस वरदान से जो उन्होंने राजा केसरी और माता अंजना को दिया था. दरअसल एक बार राजा केसरी और माता अंजना ने शिव जी की कठिन तपस्या की, जब दोनों की तपस्या से भगवान प्रसन्न हो गए तो उन्होंने माता अंजना और केसरी से वरदान मांगने को कहा. जिस पर माता अंजना ने कहा कि - ‘ हे भोलेनाथ, हमें एक ऐसे पुत्र का वरदान दीजिए जो बल में रुद्र, गति में वायु और बुद्धि में गणपति के समान तेजस्वी  हो’ माता के वचनों से खुश होकर शिव जी माता को वरदान दिया और अपनी रौद्र शक्ति को पवन देव के रूप में यज्ञ कुंड में समाहित किया और उत्पन्न शक्ति को माता अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया। जिस वजह से हनुमान जी का एक नाम पवनपुत्र भी हुआ।

शिव शंकर की कृपा से अंजना गर्भवती हो गईं और चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि दिन मंगलवार को भगवान रूद्र के 11वें अवतार के रूप में हनुमान जी का जन्म हुआ। हनुमान जी जन्म से ही बल, बुद्धि और विद्या में निपुण हैं। 


ऋषि दुर्वासा के श्राप से अंजना बनी हनुमान की मां


इसके अलावा एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसारएक बार जब दुर्वासा ऋषि स्वर्ग के राजा इंद्र के बुलावे पर इंद्र की सभा में पहुंचे तो  पुंजिकस्थली नामक एक अप्सरा ने सभा में बेवजह देवगणों का ध्यान भटकाने की कोशिश की। इससे नाराज होकर ऋषि दुर्वासा ने पुंजिकस्थली को बंदरिया बनने का श्राप दे दिया। जब रोते बिलखते हुए पुंजिकस्थली ने क्षमायाचना की तो ऋषि दुर्वासा ने उसे अगले जन्म में बंदरों के राजा केसरी की पत्नी होने और रुद्रावतार बजरंगबली की मां होने का सौभाग्य प्राप्त होने की बात कही। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, महाराज केसरी बृहस्पति पुत्र थे और उनका विवाह अंजना देवी से हुआ था जो पिछले जन्म में वही अप्सरा थी और उनके गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ। 


यज्ञ के हवि से हुआ था हनुमान जी का जन्म


एक और कथा यह भी है कि संतान प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने जब यज्ञ करवाया था तो उसके हवि के रूप में उन्हें खीर प्राप्त हुई, जिसके प्रभाव से राजा दशरथ की तीनों रानियां गर्भवती हुई और राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन का जन्म हुआ। लोककथा के अनुसार इस हवि का एक अंश लेकर भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ देव उड़ गए और उस जगह गिरा दिया जहां माता अंजना पुत्र प्राप्ति के लिए तप कर रही थीं। माता अंजनी ने हवि को ग्रहण कर लिया और उसके चमत्कार से उन्हें पुत्र रूप में हनुमान जी की प्राप्ति हुई। 


नारद का श्राप बना बानर मुख की वजह


हनुमान जी के अवतार में ही नारद के उस श्राप की सिद्धि निहित थी जो उन्होंने एक बार भगवान विष्णु को दिया था। कथा कुछ ऐसी है कि नारद जी एक राजकुमारी पर मोहित होकर उससे विवाह करना चाहते थे। नारद जी अपने रूप को निखारने के लिए भगवान विष्णु के पास गए लेकिन भगवान ने उन्हें वानर का चेहरा दे दिया। नारदजी उसी मुख से स्वयंवर में पहुंच गए जहां उनका विवाह तो नहीं हुआ बल्कि लोगों ने उनका खूब अनादर किया। नारद अपमानित होकर लौटे और उन्होंने विष्णु जी को श्राप दिया कि एक दिन आपको अपने काम संवारने हेतु वानरों की मदद लेनी होगी। यही श्राप आगे चलकर एक वरदान साबित हुआ और हनुमान जी ने वानर बनकर श्री राम के रूप में भगवान विष्णु की सहायता की। 


ऐसे हैं वीर बजरंगबली 


हनुमान' शब्द में ह ब्रह्मा का, नु अर्चना का, मा लक्ष्मी का और न पराक्रम का अंश दर्शाता है। हनुमान को सभी देवताओं से शक्तियां प्राप्त हैं, वे  सेवक और राजदूत के अलावा नीतीज्ञ, विद्वान, रक्षक, वक्ता, गायक, नर्तक, बलवान और बुद्धिमान भी है । संगीत के क्षेत्र में उनकी श्रेष्ठता के कारण ही वे शास्त्रीय संगीत के तीन आचार्यों में से एक है। अन्य दो आचार्यों के नाम शार्दुल और कहाल है। 'संगीत पारिजात' हनुमानजी के संगीत-सिद्धांत पर आधारित रचना है। बजरंगबली लेखक भी थे और रामकथा के प्रथम रचनाकार भी, कहा जाता है कि बजरंगबली ने ही सबसे पहले शिला पर रामकथा की रचना की थी जो वाल्मीकि रामायण से पहले ही लिख दी गई थी। 


हनुमान जी ने किए थे तीन विवाह 


वैसे तो हनुमान जी को सभी लोग बालब्रह्मचारी के रूप में जानते हैं लेकिन कुछ लोककथाओं में हनुमान जी के विवाह का भी जिक्र आता है. कहा जाता है कि परिस्थितिवश हनुमान जी के तीन विवाह हुए थे। पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाह का उल्लेख भी मिलता है। 

इस कथा के अनुसार हनुमान जी के गुरू सुर्य देव शिक्षा देते समय एक जगह कहीं भी ठहर नहीं सकते थे ऐसे में हनुमान जी हमेशा उनके साथ भ्रमण करते हुए ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। भगवान सूर्य ने उन्हें सभी विद्याओं का ज्ञान देना शुरू किया लेकिन 9 विद्याओं में से 5 के पूर्ण होते ही सूर्य देव के सामने धर्मसंकट की स्थिति आ गई. क्योंकि बाकी 4 विद्या सिर्फ किसी विवाहित को ही दी जा सकती थीं। दूसरी तरफ हनुमान जी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे, ऐसे में सूर्यदेव ने हनुमान जी को अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला से विवाह का सुझाव दिया। हनुमान जी ने शिक्षा पूर्ण करने के लिए सूर्यदेव की बात मान ली और सुवर्चला से विवाह कर लिया, लेकिन शिक्षा पूर्ण होने के बाद हनुमान राम कार्य में लिप्त हो गए और सुवर्चला हमेशा के लिए तपस्या में चली गईं। इस तरह हनुमान जी का ब्रह्मचर्य भी नहीं टुटा। पाराशर संहिता में सूर्यदेव ने इस विवाह को पारिभाषित करते  हुए कहा है कि यह विवाह ब्रह्मांड के कल्याण के लिए है जिसका हनुमान जी के ब्रह्मचर्य पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

तेलंगाना में हनुमानजी का एक मंदिर है जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ विराजमान हैं। खम्मम जिले का ये मंदिर हनुमान जी के गृहस्थ रूप का मंदिर है जिसमें वे अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान हैं। मान्यता है कि हनुमान जी के पत्नी सहित दर्शन करने से पति पत्नी के बीच के सारे तनाव और पारिवारिक क्लेश खत्म हो जातें हैं।


हनुमान जी के दूसरे और तीसरे विवाह की कथा


इसी तरह रावण की पुत्री अनंगकुसुमा के साथ हनुमानजी के विवाह का वर्णन पउमचरित के एक प्रसंग में है। इसके अनुसार हनुमानजी ने वरूण देव की ओर से रावण से युद्ध किया और उसके सभी पुत्रों को बंदी बना लिया। युद्ध में हार के बाद रावण ने अपनी पुत्री अनंगकुसुमा का विवाह हनुमानजी से कर दिया। वहीं रावण से युद्ध में विजय होने पर प्रसन्न होकर वरूण देव ने हनुमानजी का विवाह अपनी पुत्री सत्यवती से कर दिया। 


हनुमान जी के पुत्र की कथा 


पौराणिक कथाओं में हनुमान जी के पुत्र का भी वर्णन है। कथा अनुसार जब लंका जलाने के बाद हनुमान जी समुद्र किनारे पहुंचे तो उनके पसीने की एक बूंद समुद्र में गिर गई, जिसे एक मछली ने पी लिया उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम मकरध्वज हुआ। हनुमानजी के इन विवाहों का उल्लेख शास्त्रों में है लेकिन ये तीनों विवाह विशेष परिस्थितियों में हुए थे और विवाह पश्चात भी हनुमान जी आजीवन ब्रह्मचारी ही रहे। वाल्मीकि, कम्भ, सहित अन्य सभी रामायण और रामचरित मानस में हनुमान जी के ब्रह्मचारी रुप का वर्णन है।



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