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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, खंडवा (Omkareshwar Jyotirlinga, Khandwa)

भगवान भोलेनाथ अपने अलग-अलग रूपों में देश के कई स्थानों पर विराजमान हैं। इन्हीं में से एक शिव मंदिर मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में भी है जिसे भक्त ओंकारेश्वर के नाम से पहचानते हैं। ये शिव मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगो में एक है, यहां मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ तीनों लोक का भ्रमण करके प्रतिदिन इसी मंदिर में रात को सोने के लिए आते हैं। जिस वजह से ओंकारेश्वर की शयन आरती दुनिया भर में प्रसिद्ध है। महादेव के इस चमत्कारी और रहस्यमयी ज्योतिर्लिंग को लेकर यह भी माना जाता है कि इस पावन तीर्थ पर जल चढ़ाए बगैर व्यक्ति की सारी तीर्थ यात्राएं अधूरी मानी जाती है। नर्मदा नदी के किनारे स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को बारह ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान प्राप्त है। यह एकमात्र मंदिर है जो नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है। यहां पर भगवान शिव नर्मदा नदी के किनारे मांधाता द्वीप पर विराजमान हैं। मांधाता द्वीप का आकार ओम अक्षर की तरह है, इसलिए इसका नाम ओंकारेश्वर पड़ा। महादेव को यहां पर ममलेश्वर व अमलेश्वर के रूप में पूजा जाता है। आप जानकर हैरान होंगे कि ओंकारेश्वर में स्थापित लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा लिंग नहीं बल्कि प्राकृतिक शिवलिंग है। यह शिवलिंग हमेशा चारों ओर से जल से भरा रहता है और ये जल कभी भी खाली नहीं होता। आइये जानते हैं भगवान शिव के इस इस दिव्य और अलौकिक ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा, इतिहास और मंदिर के बारे में विस्तान से...


पौराणिक कथा

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर कई कथाएं और किवंदतियां हैं। लेकिन शिव पुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार से दिया गया है- एक बार की बात है नारद मुनि गिरिराज विंध्य पर आये, नारद के आगमन से प्रसन्न होकर विंध्य ने वहां बड़े आदर से उनका पूजन किया। इसके बाद विंध्य पर्वत ने नारद जी से कहा कि यहां मेरे पास सब कुछ है कभी किसी बात की कमी नहीं होती। पर्वत की यह अभिमान भरी बात सुनकर नारद मुनि लम्बी सांस खींचकर चुप चाप खड़े रह गए। यह देख विंध्य पर्वत ने पूछा आपने मेरे यहां कौनसी कमी देखी है। आपके इस तरह लम्बी सांस के आने का क्या कारण है? इस पर नारद जी बोले- तुम्हारे यहां सब कुछ है फिर भी मेरु पर्वत तुमसे बहुत ऊंचा है। उसके शिखरों का भाग देव लोक में भी पहुंचा हुआ है। किन्तु तुम्हारे शिखर कभी वहां नहीं पहुंच सकते। ऐसा कहकर नारद जी जिस तरह आये थे उसी तरह वहां से चल दिए। नारद जी की बात सुनकर “विंध्य पर्वत मेरे जीवन को धिक्कार है” ऐसा सोचकर मन ही मन में संतप्त हो उठा। और विंध्य पर्वत ने भगवान विश्वनाथ शिव की कड़ी तपस्या करने का फैसला किया और भगवान भोलेनाथ की शरण में आ गया। इसके पश्चात पर्वत पर जहां ओंकार बना हुआ है वहां जाकर उन्होंने भगवान शिव की मूर्ति की स्थापना की और 6 महीने तक निरंतर भोलेनाथ शंकर की अराधना की। तपस्या के दौरान वे अपने स्थान से हिले तक नहीं। उनकी ऐसी कठोर तपस्या को देख भगवान भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और मांधाता को अपना वह स्वरुप दिखाया जो बड़े बड़े योगी मुनियों को भी देखने नहीं मिला। भगवान शिव ने विंध्याचल से मनोवांछित वर मांगने को कहा। विंध्य ने प्रभु की स्तुति की और बोले आप सदा ही भक्त वत्सल है। यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे ऐसी बुद्धि प्रदान करें जिससे सभी कार्य सिद्ध हो सके। भगवान शिव ने उन्हें उनका मनचाहा वर दे दिया और कहा पर्वत राज विंध्य तुम जैसा चाहो वैसा करो। उसी समय देवता और शुद्ध अंतःकरण वाले ऋषि मुनि वहां पधारे और शंकर जी की पूजा अर्चना करके के पश्चात बोले प्रभु आप यहां स्थिर रूप से निवास कर इस स्थान को सदा के लिए पुण्यवान बना दें। उन सभी की प्रार्थना सुन शिवजी प्रसन्न हो गए और अपने जनकल्याण के लिए उन्होंने विनती स्वीकार कर ली। शिव के तथास्तु बोलते ही ओंकार लिंग के दो भाग हो गए। एक का नाम ओंकारेश्वर और दूसरे का नाम अमलेश्वर पड़ा। दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर अलग होने के बावजूद दोनों के स्वरूप को एक ही माना गया है।


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से का रहस्य

उज्जैन स्थिति महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती की तरह ओंकारेश्वर मंदिर की शयन आरती विश्व प्रसिद्ध है। मान्यता है कि रात्रि के समय भगवान शिव यहां पर प्रतिदिन सोने के लिए लिए आते हैं। साथ ही ये भी कहा जाता है कि इस मंदिर में महादेव माता पार्वती के साथ चौसर खेलते हैं। यही कारण है कि रात्रि के समय यहां पर चौपड़ बिछाई जाती है और आश्चर्यजनक तरीके से जिस मंदिर के भीतर रात के समय परिंदा भी पर नहीं मार पाता है, उसमें सुबह चौसर और उसके पासे कुछ इस तरह से बिखरे मिलते हैं, जैसे रात्रि के समय उसे किसी ने खेला हो। धार्मिक मान्यता के अनुसार ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के आस-पास कुल 68 तीर्थ स्थित हैं और यहां भगवान शिव 33 करोड़ देवताओं के साथ विराजमान हैं।


ओंकारेश्वर मंदिर के बारें में कुछ खास बातें

मंदिर की संरचना जिस द्वीप पर की गई है उसे मान्धाता द्वीप कहा जाता है, ये ऊँ के आकार का है। इस पूरे द्वीप को अत्यधिक रहस्यमय माना जाता है। मंदिर में कई खूबसूरत नक्काशी और चित्र हैं, और इसकी वास्तुकला वास्तव में असाधारण है। मंदिर नागर शैली में बनाया गया है, और इसकी वास्तुकला उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली का एक संयोजन है। मंदिर में एक सुंदर हॉल है, जो खंभों द्वारा समर्थित है। पुरातत्व विभाग द्वारा यहाँ कई शिलालेख खोजे गए हैं। हालाँकि, यह मंदिर भी देश के अन्य मंदिरों की तरह आक्रांताओं की मार झेल चुका है जिससे अधिकांश सुंदर नक्काशी और संरचनाएं नष्ट हो गई हैं। आक्रमणों के दौरान मंदिर पूरी तरह से अपवित्र हो गया था। मंदिर का कई बार विभिन्न शासकों द्वारा जीर्णोद्धार किया गया है, जैसे 11वीं शताब्दी में परमारों ने और 19वीं शताब्दी में होलकरों ने। ओंकारेश्वर मंदिर में पाँच मंजिलें हैं और लिंगम पहली मंजिल पर है। इस मंदिर में भगवान शिव का लिंगम स्वयं प्रकट हुआ है और उचित आकार में नहीं है। इसके अलावा इस मंदिर में भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय और देवी पार्वती भी स्थापित हैं।


दर्शन और आरती का समय

मंदिर के पट सुबह पांच बजे खुल जाते हैं, इसके बाद यहां मंगला आरती होती है और फिर सुबह साढ़े पांच बजे से इसे भक्तों के लिए खोल दिया जाता है। दोपहर 12:20 से 1:10 बजे मध्यान्ह भोग के समय दर्शन बंद रहते हैं। दोपहर 1:15 बजे से दर्शन फिर से प्रारंभ हो जाते हैं। मंदिर में रात्रि 8:30 से 9:00 बजे तक शयन आरती होती है। रात्रि 9:00 से 9:35 बजे भगवान के शयन दर्शन होते हैं। इसके बाद मंदिर बंद हो जाता है।


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में बहु धातु से बनी है आचार्य शंकराचार्य की 108 फीट की मूर्ति

21 सितंबर 2023 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में आचार्य शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची बहु धातु से निर्मित मूर्ति का अनावरण किया। इसी के साथ उज्जैन के महाकाल के बाद अब ओंकारेश्वर में एकात्म धाम बनने की शुरुआत हुई है। 108 फीट ऊंची 'एकात्मकता की प्रतिमा' के साथ ही 'अद्वैत लोक' नाम का एक संग्रहालय और आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान की स्थापना भी की जा रही है। यह बहुधातु प्रतिमा में आदि शंकराचार्य बाल स्वरूप में दिखाई देंगे। अब ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के साथ ही 'स्टैच्यू ऑफ वननेस' यानी एकात्मता का प्रतीक आदि शंकराचार्य की 12 वर्षीय बाल्यावस्था की झलक भी देखने को मिलेगी।


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास स्थित दर्शनीय स्थल

इस ज्योतिर्लिंग के पास ही अंधकेश्वर, झुमेश्वर, नवग्रहेश्वर नाम से भी बहुत से शिवलिंग स्थित हैं, जिनके दर्शन के लिए जा सकते हैं। इसके अलावा प्रमुख दार्शनिक स्थलों में अविमुक्तेश्वर, महात्मा दरियाई नाथ की गद्दी, श्री बटुक भैरव, मंगलेश्वर, नागचंद्रेश्वर और दत्तात्रेय व काले-गोरे भैरव भी है। इसके अलावा आप नीचे दिए गए मंदिरों और घाटों को भी एक्सप्लोर कर सकते हैं।

केदारेश्वर मंदिर

सिद्धनाथ मंदिर

ममलेश्वर मंदिर

सातमातृका मंदिर

अहिल्येश्वर मंदिर

गौरी सोमनाथ मंदिर

ओंकारेश्वर परिक्रमा

नर्मदा घाट

पेशावर घाट


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग घूमने का सबसे अच्छा मौसम

वैसे तो ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन 12 महीनें ही कर सकते हैं। लेकिन घूमने का सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से फरवरी तक रहता है, इस दौरान तापमान लगभग 15-30 डिग्री सेल्सियस रहता है।


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?

दिल्ली से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 969 किमी है।


हवाई मार्ग से- ओंकारेश्वर से निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में देवी अहिल्याभाई होल्कर हवाई अड्डा है। उसी के लिए दूरी 83 किलोमीटर है। यह हवाई अड्डा बैंगलोर, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, रायपुर, श्रीनगर, नागपुर, वडोदरा, लखनऊ, पटना, पुणे, अहमदाबाद और अन्य से जुड़ा हुआ है। आप यहाँ से आसानी से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं, या ओंकारेश्वर पहुँचने के लिए निकटतम बस स्टेशन से बस पकड़ सकते हैं।


ट्रेन से - ओंकारेश्वर रोड (मोरटक्का) ओंकारेश्वर से 12 किमी की दूरी पर निकटतम रेलवे स्टेशन है। यह स्टेशन खंडवा-अजमेर मीटर गेज में स्थित है और एक ब्रॉड गेज वाला रेलवे स्टेशन है। ट्रेन से ओंकारेश्वर पहुंचने के लिए खंडवा रेलवे स्टेशन एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि यह ब्रॉड गेज स्टेशन है और देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है। खंडवा और ओंकारेश्वर की दूरी लगभग 77 किलोमीटर है।


सड़क द्वारा- ओंकारेश्वर पड़ोसी राज्यों और कस्बों से सरकारी और निजी स्वामित्व वाली बस सेवाओं से जुड़ा हुआ है। ये बस सेवाएं लगातार और सस्ती हैं। उज्जैन, खंडवा, खरगोन और इंदौर की ओर जाने वाले सबसे लोकप्रिय गंतव्यों में नियमित बस सेवा है।


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