महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन (Mahakaleshwar Jyotirlinga, Ujjain)

भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों से जुड़ी अपनी पौराणिक कथाएं, धार्मिक महत्व और रहस्य हैं। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में तीसरा ज्योतिर्लिंग उज्जैन में स्थित है, जिसे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। पुराणों में कहा गया है कि जब तक महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन नहीं कर लेते, तब तक आध्यात्मिक जीवन पूर्ण नहीं होता। उज्जैन एक पवित्र धार्मिक स्थल है। जहां बाबा महाकाल विराजते हैं। कहा जाता हैं कि बाबा महाकाल उज्जैन के राजा है और जब से वे यहां के राजा के रूप में स्थापित हुए हैं तब से यहां कोई अन्य राजा रात नहीं रुक सकता। देश के सभी ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल ही एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण की ओर मुख वाला है, अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों का मुख पूर्व की तरफ है। ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु की दिशा दक्षिण है और अकाल मृत्यु से बचने के लिए लोग बाबा महाकालेश्वर की पूजा करते हैं। कई प्राचीन काव्य ग्रंथों में महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है। कालिदास द्वारा रचित मेघदूतम के शुरूआती भाग में मंदिर का विवरण मिलता है। पावन भूमि उज्जैन में ना सिर्फ बाबा महाकालेश्वर की दर्शन-पूजन बल्कि 51 शक्तिपीठ में से एक माता हरसिद्धि माता के दर्शन का भी सौभाग्य प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां पर माता सती की कोहनी गिरी थी। तभी से माता हरसिद्धि यहां विराजमान है। जानते हैं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा, इतिहास और मंदिर से जुड़ी कुछ प्रमुख बातों को विस्तार से....


महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर कई किवंदतियां और कथाएं हैं। शिव महापुराण की उत्तराद्र्ध के 22वें अध्याय के अनुसार अवंती नाम का एक नगर था जो भगवान शिव को बहुत प्रिय था। इसी नगर में एक ज्ञानी ब्राह्मण रहते थे, जो बहुत ही बुद्धिमान और कर्मकांडी ब्राह्मण थे। साथ ही भगवान शिव के बड़े भक्त थे। वह हर रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी आराधना किया करते थे। इन ब्राह्मण का नाम वेद प्रिय था, जो हमेशा वेद के ज्ञान अर्जित करने में लगे रहते थे। ब्राह्मण को उसके कर्मों का पूरा फल प्राप्त हुआ था। वहीं रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक का राक्षस रहता था। इस राक्षस को ब्रह्मा जी से अजेयता का वरदान मिला था। वरदान के अहंकार में आकर वो सबको सताने लगा और उज्जैन के ब्राह्मणों पर आक्रमण कर दिया। ब्राह्मणों ने राक्षस से परेशान होकर शिव शंकर से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दी। ब्राह्मणों की प्रार्थना से भगवान शिव प्रसन्न हुए और पार्थिव शिवलिंग की जगह धरती फाड़कर शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए। भगवान शिव ने अपनी एक हुंकार से ही दूषण राक्षस और उसकी सेना को भस्म कर दिया। और फिर उसी भस्म से अपना श्रंगार किया। तभी से बाबा महाकाल की प्रात: की आरती में भस्म से उनका श्रंगार होता हैं और भस्म उड़ाई जाती है। जिसे भस्म आरती कहते हैं। पहले यह आरती शमशान से लाई गई राख से की जाती थी। लेकिन वर्तमान में गाय के गोबर से बने उपलों (कंडों) की भस्म से महाकाल की भस्मारती की जाती है। ब्राह्माणों की आस्था और उनकी प्रार्थना से भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर ब्राह्मणों ने कहा कि उन्हें इस संसार से मुक्ति देकर दुष्टों का नाश करने के लिए आप यहीं विराजमान हो जाएं। भगवान शिव इस मांग से अभीभूत होकर वहीं विराजमान हो गए। भगवान शिव राक्षस दूषण के लिए काल बनकर आए थे। इसी वजह से उनका नाम महाकाल पड़ा।


महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ा इतिहास

पुराणों के अनुसार महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना ब्रह्मा जी ने की थी। प्राचीन काव्य ग्रंथों में भी महाकाल मंदिर का जिक्र किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर की नींव व चबूतरा पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था।मान्यता है कि गुप्त काल से पहले मंदिर पर कोई शिखर नहीं था, मंदिर की छतें लगभग सपाट थीं। हालांकि महाकालेश्वर मंदिर पहली बार कब अस्तित्व में आया इसकी जानकारी महाकाल मंदिर से जुड़ी वेबसाइट पर भी नहीं दे रखी है। इसलिए इसके बारें में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास काफी रोचक है। कहा जाता है कि 1235 में महाकालेश्वर मंदिर को दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। आक्रमण के दौर में महाकाल मंदिर के गर्भगृह में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को आक्रमणकारियों से सुरक्षित बचाने के लिए करीब 550 वर्षों तक पास में ही बने एक कुएं में रखा गया था। औरंगजेब ने मंदिर के अवशेषों से एक मस्जिद का निर्माण करा दिया था। मंदिर टूटने के बाद करीब 500 वर्षों से अधिक समय तक महाकाल का मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहा और ध्वस्त मंदिर में ही महादेव की पूजा आराधना की जाती थी, लेकिन जब कई वर्षों बाद 22 नवंबर 1728 में मराठा शूरवीर राणोजी राव सिंधिया ने मुगलों को परास्त किया तो उन्होंने मंदिर तोड़कर बनाई गई उस मस्जिद को गिराया और 1732 में उज्जैन में फिर से मंदिर का निर्माण कर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। राणोजी ने ही बाबा महाकाल ज्योतिर्लिंग को कोटि तीर्थ कुंड से बाहर निकालवाया था और महाकाल मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था। इसके बाद राणो जी ने ही 500 बर्ष से बंद सिंहस्थ आयोजन को भी दोबारा शुरू कराया। राजस्थान के राजा जयसिंह द्वितीय ने 1280 में महाकाल के शिखर पर शिलालेख में सोने परत चढ़वाई थी। साथ ही उन्होंने कोटि तीर्थ का निर्माण भी कराया था। वहीं, 1300 ईस्वी में रणथम्भौर के राजा हमीर शिप्रा नदी में स्नान के बाद बाबा महाकाल के दर्शन करने पहुंचे थे। उन्होंने महाकाल मंदिर की जीर्ण शीर्ण अवस्था देखकर इसका विस्तार कराया। 1700 वीं शताब्दी में मेवाड़ के राजा जगत सिंह ने उज्जैन की तीर्थ यात्रा की और यहां कई निर्माण कार्य करवाए।


12 साल में उज्जैन में लगता है सिंहस्थ महाकुंभ

उज्जैन की धरा बेहद ही पावन मानी जाती है। यह प्राचीन धार्मिक नगरी देश के 51 शक्तिपीठों और चार कुंभ स्थलों में से एक है। यहां हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सिहंस्थ महाकुंभ कहा जाता है। दरअसल, सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है, तो उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है, जिसे सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है।


महाकाल मंदिर परिसर में स्थापित मंदिर

महाकालेश्वर मंदिर परिसर में और भी ऐसे मंदिर तथा देव प्रतिमाएं हैं, जो श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र हैं। इनमें लक्ष्मी-नृसिंह मंदिर, ऋद्धि-सिद्धि गणेश, विठ्ठल पंढरीनाथ मंदिर, श्रीराम दरबार मंदिर, अवंतिका देवी, चंद्रादित्येश्वर, मंगलनाथ, अन्नपूणदिवी, वाच्छायन गण्पति, औंकारेश्वर महादेव, नागचंद्रेश्वर महादेव (वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही मंदिर के पट खुलते हैं), नागचंद्रेश्वर प्रतिमा, सिद्धि विनायक मंदिर, साक्षी गोपाल, संकटमोचन सिद्धदास हनुमान मंदिर, स्वप्नेश्वर महादेव, बृहस्पतिश्वर महादेव, त्रिविष्टपेश्वर महादेव, मां भद्रकाली मंदिर, नवग्रह मंदिर, मारुतिनंदन हनुमान, कोटितीर्थ कुंड, श्रीराम मंदिर, नीलकंठेश्वर महादेव, गोविंदेश्वर महादेव, सूर्यमुखी हनुमान, लक्ष्मीप्रदाता मोढ़ गणेश मंदिर, स्वर्णजालेश्वर महादेव, शनि मंदिर, कोटेश्वर महादेव, अनादिकल्पेश्वर महादेव, चंद्र-आदित्येश्वर महादेव, वृद्धकालेश्वर महादेव, सप्तऋषि मंदिर, श्री बालविजय मस्त हनुमान आदि प्रमुख हैं।


जूना महाकाल

महाकाल मंदिर के प्रांगण में एक जूना महाकाल मंदिर है। जिसके पीछे की कथा है कि कुछ राजाओं और आक्रमणकारियों के समय इस मंदिर में मौजूद असली शिवलिंग को कई बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, जिससे बचने के लिए पुजारियों ने असली शिवलिंग को वहां से हटा दिया और एक दूसरा शिवलिंग रखकर पूजा करने लगे। इसके बाद जब असली शिवलिंग को वापस स्थापित किया गया तो हटाई गई शिवलिंगो को मंदिर के प्रांगण में स्थापित कर दिया गया। इसे जूना महाकाल कहते हैं।


नाग चंद्रेश्वर मंदिर

यह मंदिर महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है जो साल में एक बार नाग पंचमी के अवसर पर केवल 24 घंटे के लिए खुलता है। इस मंदिर में नाग देवता विराजमान है जिनके दर्शन के लिए भक्त रात से ही लाइन में लग जाते हैं।


महाकालेश्वर मंदिर घूमने का सबसे अच्छा मौसम

वैसे तो आप 12 महीनों में कभी भी बाबा महाकाल के दर्शन कर सकते हैं। लेकिन ठंड और बारिश का मौसम घूमने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। बारिश के मौसम यानि श्रावण माह में बाबा के दर्शन करना काफी शुभ माना जाता है। श्रावण माह के सभी सोमवार और भादौ के दो सोमवार को बाबा महाकाल की सवारी निकलती है। यानि की बाबा महाकाल अपनी प्रजा के हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं।


महाकालेश्वर मंदिर के आस-पास दर्शनीय स्थल

राम घाट, हरसिद्धि माता मंदिर, सांदीपनि आश्रम, चिंतामन गणेश, गोपाल मंदिर


कैसे पहुंचे महाकालेश्वर ? महाकालेश्वर मंदिर पहुंचने के लिए आप ट्रेन, हवाई सफर और सड़क मार्ग का रास्ता चुन सकते हैं।

राजधानी दिल्ली से उज्जैन के बीच दूरी लगभग 800 किलोमीटर है।


ट्रेन- बड़े शहरों से आप आसानी से ट्रेन से जा सकते हैं। उज्जैन सिटी जंक्शन या विक्रम नगर रेलवे स्टेशन पहुंचकर यहां से कैब या ऑटो लेकर महाकलेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं।


हवाई जहाज- महारानी अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट उज्जैन का सबसे पास हवाई अड्डा है। यहां से आप टैक्सी बस या ट्रेन से मंदिर पहुंच सकते हैं।


सड़क- आप बस या फिर पर्सनल ट्रांसपोर्ट की मदद से उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं।


इन Hotels में कर सकते हैं स्टे

होटल शिखर दर्शन

होटल महाकाल विश्राम

होटल शिवम पैलेस

मित्तल एवेन्यू

होटल इम्पीरियल

अंजूश्री होटल

रुद्राक्ष पैलेस एंड रिसॉर्ट

डिसक्लेमर

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