काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, वाराणसी(बनारस) (Kashi Vishwanath Jyotirlinga, Varanasi (Banaras))

पुराणों और शास्त्रों में 12 ज्योतिर्लिंग का बहुत महत्व बताया गया है। इन ज्योतिर्लिंगों से जुड़ी अपनी पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताएं है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सातवे नंबर पर आने वाला काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे बसी प्राचीन नगरी वाराणसी जिसे पहले काशी कहा जाता था में विश्वनाथ गली में स्थित है। इसीलिए इसे काशी विश्वनाथ कहा जाता है। यहां भगवान शिव को विश्वनाथ यानि ब्रह्मांड का भगवान और विश्वेश्वर यानि विश्व के शासक के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की यह नगरी उनके त्रिशूल की नोक पर बसी हुई है। बता दें कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले उनके गण भैरवनाथ के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। इसको लेकर मान्यता है कि काशी के कोतवाल अर्थात काल भैरव का आशीर्वाद लिए बिना दर्शन का फल प्राप्त नहीं होता है। बता दें कि सात सबसे पवित्र शहरों में से एक काशी को भगवान शिव का निवास स्थान भी माना जाता है, जो ब्रह्मांड के विध्वंसक और परिवर्तनकर्ता हैं। तो आईये जानते हैं काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा और मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें....


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर कई किवंदतियां है। इनमें एक कथा सर्वाधिक प्रचलित है जिसके अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बाद कैलाश पर्वत पर रहते थे। एक दिन माता पार्वती ने कहा कि जिस तरह सभी देवी-देवताओं के अपने घर हैं, उस तरह हमारा घर क्यों नहीं है? भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती के इस सवाल पर सोच में पढ़ गए और उन्होंने पृथ्वी पर अपना निवास स्थान खोजना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्हें राजा दिवोदास की नगरी काशी बहुत पसंद आई, और भोलेनाथ ने काशी में बसने का मन बन लिया। भगवान शिव के रहने के लिए निकुंभ नामक शिवगण ने काशी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। ऐसा करने से राजा को बहुत दुख पहुंचा। इसके बाद राजा ने ब्रह्माजी की तपस्या की और उनको इस बारे में जानकारी दी। दिवोदास ने ब्रह्माजी से कहा कि देवता देवलोक में रहें, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्माजी के कहने पर शिवजी काशी को छोड़कर मंदराचल पर्वत पर चले गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया। उसके बाद काशी महादेव का स्थाई निवास हो गया और यहां आकर भगवान शिव विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ा इतिहास

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ का यह मंदिर युगो-युगांतर से यहां मौजूद है, जिसका उल्लेख महाभारत जैसे पौराणिक वेद-ग्रंथ में किया गया है। लेकिन कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11 वीं सदी में राजा हरिश्चन्द्र ने करवाया था। बता दें कि इस भव्य धाम की संपदा को लूटने के लिए कई मुगल आक्रान्ताओं ने इस मंदिर पर आक्रमण किया। मंदिर पर आक्रमण और पुनर्निर्माण का क्रम 11 वीं सदी से 15वीं सदी के बीच समय-समय पर चलता रहा। वर्तमान समय में भगवान विश्वनाथ का जो मन्दिर है, उसका निर्माण साल 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था और फिर कई राजाओं ने इस मंदिर में पूजा-पाठ और दान किया था। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में मंदिर के शिखर सहित अन्य स्थानों पर सोना लगवाया था।


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कुछ खास बातें

वैदिक पुराणों में बताया गया है कि काशी में भगवान विष्णु के अश्रु गिरे थे, जिससे बिंदु सरोवर का निर्माण हुआ था। साथ ही पुष्कर्णी का निर्माण भी उन्हीं के चिंतन से हुआ था। काशी को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है, क्योंकि जो मनुष्य यहां शरीर त्यागता है वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग में दर्शन और आरती का समय

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग में तड़के सुबह 3 से 4 बजे के बीच मंगला आरती होती है। इसके लिए भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति 2:30 बजे से 3 बजे तक होती है। यह काशी विश्वनाथ मंदिर के सबसे प्रमुख आकर्षणों में एक है क्योंकि इस आरती में भाग लेने वाले सभी भक्तजनों को ज्योतिर्लिंग के समीप जाकर पूजा करने की अनुमति दी जाती है। इसके बाद दोपहर 11:30 से 12:10 के बीच मध्याह्न की भोग आरती होती है। इस आरती के दौरान बाबा विश्वनाथ को पंचामृत से स्नान कराया जाता है। शाम को 7 से 8:30 बजे तक सप्तऋषि आरती होती है। इसके बाद रात 10:30 बजे से 11 बजे तक मंदिर में शयन आरती होती है, जिसके बाद मंदिर बंद हो जाता है। आरती और भोग का समय छोड़ मंदिर में भक्त सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। यदि आप आरती में शामिल होना चाहते हैं तो टिकट लेना होगा जिसके लिए शुल्क देना होता है।


वाराणसी में गंगा आरती का समय

वाराणसी के पवित्र दशाश्वमेध घाट पर सुबह की गंगा आरती गर्मियों में सुबह 5 से 7 बजे तक और सर्दियों में सुबह 5:30 से 7:30 बजे तक होती है। शाम की आरती का समय गर्मियों में रोजाना शाम 6:30 बजे और सर्दियों में शाम 7:00 बजे शुरू होता है।


काशी विश्वनाथ के आस-पास घूमने योग्य और दर्शनीय स्थल

अस्सी घाट

दरभंगा घाट

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

रामनगर किला

दशश्वमेध घाट

संकट-मोचन हनुमान मंदिर

मनिकर्णिका घाट

काल भैरव मंदिर

तुलसी-मानस मंदिर

संकठा मंदिर

दुर्गा मंदिर

भारत माता मंदिर

मां अन्नपूर्णा मंदिर


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन करने का अच्छा मौसम

वैसे तो 12 महीनें ही मौसम बनारस घूमने और दर्शन के लिए अनुकुल है। अप्रैल से जून और फिर सितंबर से नवंबर तक का मौसम दर्शन के लिए सबसे अच्छा है। ये महीने प्री-मॉनसून और पोस्ट-मॉनसून अवधि के होते हैं जब मौसम मध्यम और यात्रा के लिए अनुकूल होता है।


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?

राजधानी दिल्ली से बनारस की दूरी लगभग 821 किलोमीटर है।


हवाई मार्ग से- यदि आप हवाई मार्ग से काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा करना चाहते हैं, तो मंदिर से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट है। जो देश और विदेश के सभी शहरों से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से काशी विश्वनाथ मंदिर की दूरी 20 से 25 किमी की है। एयरपोर्ट से आप टूरिस्ट टैक्सी या कैब लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं।


रेल मार्ग से- वाराणसी में चार रेलवे स्टेशन हैं। जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर है। मंदिर से सबसे नजदीक का स्टेशन वाराणसी सिटी स्टेशन है, जिसकी दूरी दो किमी है। तो वहीं वाराणसी जंक्शन से मंदिर की दूरी करीब 6 किमी है और बनारस रेलवे स्टेशन की दूरी चार किलोमीटर है। वहीं मुगल सराय रेलवे स्टेशन मंदिर से 17 किमी की दूरी पर है। यह सभी स्टेशन भारत के दूसरे शहरों से ट्रेनों के जरिए जुड़े हुए हैं। स्टेशन के बाहर से मंदिर के लिए सीधे रिक्शा, आटो या टैक्सी उपलब्ध है।


सड़क मार्ग से- यदी आप सड़क मार्ग से काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग जानें का सोच रहे हैं, तो आपको बता दें कि वाराणसी देश के सभी शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। रोडवेज के अलावा प्राइवेट बसें भी सीधे बनारस के लिए मिलती हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने के लिए रोडवेज बस स्टैंड या शहर के किसी भी हिस्से से गोदौलिया के लिए टैक्सी, ई रिक्शा, ऑटोरिक्शा आराम से मिल जाएगा। गोदौलिया से दशाश्वमेध घाट की तरफ बढ़ने पर सिंहद्वार है जो ढुंढिराज गणेश की तरफ से मंदिर में पहुंचता है। वहीं बांसफाटक की तरफ से विश्वनाथ गली जाने वाला रास्ता भी मंदिर लेकर जाता है। इसके अलावा ज्ञानवापी की तरफ से भी मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए द्वार है।


काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के आसपास इन Hotels में कर सकते हैं स्टे

Alka Hotel

Hotel Satkar

Rajamahal Hotel

The Lavish Stay

Green Villa Kashi

Leela Guest House

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।