देवड़ी मंदिर का निर्माण होते किसी ने नहीं देखा, पुजारी को सपना और जंगल में मिला मंदिर
देवड़ी मंदिर भारत के झारखंड राज्य के रांची जिले में तमाड़ के देवरी गांव में स्थित एक धार्मिक स्थल है, जहां आदिवासी और हिंदू संस्कृति का संगम देखा जा सकता है। यह रांची-टाटा राजमार्ग के पास स्थित है। इस प्राचीन मंदिर का मुख्य आकर्षण मां देवी की 16 भुजाओं वाली 700 साल पुरानी मूर्ति है। इसे आदिवासी भूमिज मुंडा समुदाय में माता देवरी दिरि के नाम से जाना जाता है।
मंदिर को लेकर दो कहानियां प्रचलित हैं
इस प्राचीन मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित है। दावा किया जाता है कि ये मंदिर करीब 700 साल पुराना है। इसका निर्माण 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच का बताया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण होते किसी ने नहीं देखा। मंदिर के पुजारी की माने तो एक रात एक भक्त को सपना आया। सुबह उठकर उसने जंगलों में खोज शुरू कर दी। बहुत मेहनत के बाद उसे घने जंगल के बीच एक मंदिर नजर आया। वह देखकर दंग रह गया, और उसने ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी। इस मंदिर को लेकर एक दूसरी कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि झारखंड के तमाड़ में एक राजा हुआ करते थे उनका नाम केरा था। वह युद्ध में हारकर घर लौट रहे थे। तभी देवी उनके सपने में आई और राजा से कहा, मेरा मंदिर निर्माण करो। इसके बाद राजा ने अपने लोगों को मंदिर निर्माण कराने का आदेश दिया। जब उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया को उनका राज्य उन्हें दोबारा मिल गया।
16 भुजा वाली मां दुर्गा के दर्शन
इस मंदिर के दरवाजे पत्थर के बने हैं। मंदिर में करीब तीन से साढ़े तीन फीट ऊंची देउड़ी वाली मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित है। आपने मंदिरों में 8 या 10 भुजाओं वाली दुर्गा माता देखी होगीं, लेकिन इस मंदिर में विराजित है 16 भुजाओं वाली मां दुर्गा। देवी अपनी बाहों में धनुष, ढाल, फूल और परम धारण किये हुए है। ये माता सिंहवाहिनी माँ दुर्गा की ही स्वरुप हैं।
मनोकामना के लिए बांधे जाते है धागे
इस मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांस पर पीले और लाल रंग के पवित्र धागे बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर वे फिर से मंदिर आते हैं और धागा खोल देते हैं। करीब दो एकड़ में फैले रांची के इस पुराने मंदिर में भगवान शिव की एक मूर्ति भी है। किंवदंतियों के अनुसार, जिसने भी इस मंदिर की संरचना को बदलने की कोशिश की है, उसे देवताओं के क्रोध का सामना करना पड़ा है और परिणाम भुगतना पड़ा है। देवड़ी मंदिर को एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है जहां छह दिन आदिवासी पुजारी, जिन्हें पाहन के नाम से जाना जाता है, अनुष्ठान करते हैं और एक दिन ब्राह्मण पूजा करते हैं, जिन्हें मुख्य रूप से पंडा के रूप में जाना जाता है।
मनोकामना पूरी होने पर भक्त चढ़ाते है खिचड़ी या खीर भोग
मनोकामना पूरी हो जाने पर भक्त यहां खिचड़ी या खीर भोग लगाते हैं। माता को रोजाना दोपहर 12 बजे भोग लगाया जाता है। उसके बाद पुजारियों द्वारा महाआरती की जाती है। मंदिर में हर दिन सुबह 5 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम 5 बजे आरती की जाती है। मंदिर में पंडा, पाहन, ब्राह्मण पुजारियों के साथ अनुष्ठान करते हैं। रांची- टाटा मार्ग से गुजरते समय देउडा माता का मंदिर दूर से ही नजर आने लगता है। रांची से इस मंदिर की दूरी लगभग 70 किमी है।
कैसे पहुंचे मंदिर
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा रांची एयरपोर्ट है। रांची से धनबाद के लिए टैक्सी या बस से यात्रा कर सकते हैं।
रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन धनबाद है। यहां पहुंचकर आप टैक्सी या बस के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - अगर आप धनबाद से है तो टैक्सी या स्थानीय बस के द्वारा सीधे मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यह दूरी करीब 30 से 40 किलोमीटर है और सड़क यात्रा करना आसान होगा। मंदिर के आसपास स्थानीय टैक्सी या ऑटो-रिक्शा की सुविधा भी हो सकती है, जो आपको मंदिर तक पहुंचने में मदद करेंगे।
मंदिर का समय - सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक।