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झारखंड राज्य के दुमका जिले में स्थित है बासुकीनाथ मंदिर, जहां भगवान शिव बासुकीनाथ के रूप में पूजे जाते है। कहा जाता है जब तक बासुकीनाथ के दर्शन न किए जाएं तब तक देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ के दर्शन अधूरे ही माने जाएंगे। यही कारण है कि बैद्यनाथ धाम आने वाले कावड़ यात्री बासुकीनाथ का जलाभिषेक करना नहीं भूलते। मान्यता है कि बैद्यनाथ के दरबार में अगर दीवानी मुकदमों की सुनवाई होती है तो बासुकीनाथ में फौजदारी मुकदमों की।
मंदिर का इतिहास कई वर्षों पुराना है। इस मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में हुई। हिंदुओं के कई ग्रंथों में सागर मंथन का वर्णन किया गया है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर सागर मंथन किया था। बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास भी सागर मंथन से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि सागर मंथन के दौरान पर्वत को मथने के लिए वासुकी नाग को माध्यम बनाया गया था। इन्हीं वासुकी नाग ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। यही कारण है कि यहां विराजमान भगवान शिव को बासुकीनाथ कहा जाता है।
इसके अलावा मंदिर के विषय में एक स्थानीय मान्यता भी है। कहा जाता है कि ये स्थान कभी एक हरे-भरे वनों से घिरा हुआ था जिसे दारुक वन कहा जाता था। कुछ समय के बाद यहां मनुष्य बस गए जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दारुक वन पर निर्भर थे। ये मनुष्य कंदमूल की तलाश में नव क्षेत्र में आया करते थे। इसी क्रम में एक बार वासुकी नाम का एक व्यक्ति भी भोजन की तलाश में जंगल आया।
उसने कंद मूल प्राप्त करने के लिए जमीन को खोदना शुरू किया। कभी अचानक एक जगह से खून आने लगा। वासुकी घबराकर वहां से जाने लगा, तब आकाशवाणी हुई और वासुकी को यह आदेशित किया गया कि वह उस स्थान पर भगवान शिव की पूजा अर्चना प्रारंभ करें। बासुकी ने जमीन से प्रकट हुए भगवान शिव के प्रतीक शिवलिंग की पूजा शुरु कर दी, तब से यहां स्थित भगवान शिव बासुकीनाथ कहलाए।
बासुकीनाथ मंदिर झारखंड के कुछ अति प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर के पास ही एक तालाब स्थित है जिसे वन गंगा या शिवलिंग भी कहा जाता है। इसका जल श्रद्धालुओं के लिए अति पवित्र माना जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा परिसर में अन्य हिंदू देवी-देवताओं की स्थापना भी की गई है।
देश के कोने-कोने से आने वाले शिव भक्त पहले देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचते है और भगवान शिव को गंगाजल अर्पित करते है। हालांकि, बाबा बैद्यनाथ के बाद अधिकांश बासुकीनाथ ही पहुंचते है। मान्यता है कि जब बासुकीनाथ के दर्शन किए बिना बैद्यनाथ की यात्रा अधूरी मानी जाती है। श्रद्धालु अपने साथ गंगाजल और दूध लेकर बासुकीनाथ पहुंचते हैं और भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। मान्यता है कि बासुकीनाथ में विराजित भोलेनाथ श्रद्धालुओं की फौजदारी फरियाद सुनते हैं और उन्हें सुलझाते हैं। बासुकीनाथ में भगवान शिव का स्वरूप नागेश का है। यही वजह है कि यहां भगवान शिव को दूध अर्पित करने वाले भक्तों को भगवान शिव का भरपूर आशीर्वाद मिलता है।
श्रावणी मेला जिसे कांवरिया मेला के नाम से भी जाना जाता है, श्रावण माह से लगभग सवा महीनों तक चलता है। इस दौरान बाबा बासुकीनाथ धाम का महत्व बढ़ जाता है। जुलाई, अगस्त के महीनों में भारत के कई राज्यों से भारी संख्या में लोग दर्शन करने और जल चढ़ाने जाते हैं। शिव भक्त सबसे पहले बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज, जो बासुकीनाथ से लगभग 135 किलोमीटर दूर हैं, वहां पहुंचते हैं और गंगाजल लेकर बाबा धाम की ओर पैदल आते हैं। जो भक्त बिना रुके सीधे बासुकीनाथ धाम पहुंचते हैं उन्हें डाक बम कहते हैं और जो कई जगह रुकते हुए बाबा के धाम पहुंचते हैं उन्हें बोल बम कहते है।
हवाई मार्ग - बासुकीनाथ धाम पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा रांची का बिरसा मुंडा एयरपोर्ट है जो मंदिर के लगभग 280-300 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा कोलकाता का नेताजी सुभाष चंद्र बोस हवाई अड्डा भी यहां से लगभग 320 किमी है। एयरपोर्ट से आप टैक्सी लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - बासुकीनाथ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दुमका है जो लगभग 25 किमी है और बासुकीनाथ से जसीडीह रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 50 किमी है। यहां से आप बस या टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - बासुकीनाथ, दुमका-देवघर राज्य राजमार्ग पर स्थित है। झारखंड के कई शहरों से बासुकीनाथ पहुंचने के लिए बस की सुविधा उपलब्ध है। बासुकीनाथ, रांची से लगभग 294 किमी और धनबाद से लगभग 130 किमी की दूरी पर स्थित है।
मंदिर का समय - सुबह 3 बजे से लेकर रात 8 बजे तक।
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