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जहां राक्षसी से देवी बनी हिडिम्बा वहीं बनाया गया मंदिर, पगोड़ा शैली में बना चार छतों वाला मंदिर

दर्शन समय

8 AM - 6 PM

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के पास मनाली में हिडिंबा देवी मंदिर स्थित है। मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है। प्राचीन गुफा मंदिर है जो हिडिम्बा देवी या हिरमा देवी को समर्पित है। जिसका वर्णन महाभारत में भीम की पत्नी के रुप में मिलता है। मनाली के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक इस मंदिर को ढुंगरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में उकीर्ण एक अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा बहादुर सिंह ने 1553 में करवाया था। मंदिर हिमालय पर्वत की कगार पर डुंगरी शहर के पास देवदार के जंगल में स्थित है। 

मान्यता है कि भीम और पांडव मनाली से चले जाने के बाद हिडिंबा राज्य की देखभाल के लिए वापस आ गईं थी। ऐसा कहा जाता है कि हिडिंबा बहुत दयालु और न्यायप्रिय शासिका थी। जब उसका बेटा घटोत्कच बड़ा हुआ तो हिडिंबा ने उसे सिंहासन पर बैठा दिया और अपना शेष जीवन बिताने के लिए ध्यान करने जंगल में चली गई। 

हिडिंबा अपनी दानवता या राक्षसी पहचान मिटाने के लिए एक चट्टान पर बैठकर तपस्या करती रही। कई वर्षों के ध्यान के बाद उसकी प्रार्थना सफल हुई और उसे देवी होने का गौरव प्राप्त हुआ। हिडिंबा देवी की तपस्या और उसके ध्यान के सम्मान में इसी चट्टान के ऊपर इस मंदिर का निर्माण 1553 में महाराजा बहादुर सिंह ने करवाया था। मंदिर एक गुफा के चारों ओर बनाया गया है। 



भीम की पत्नी थीं हिडिम्बा 


हिडिंबा पांडवों के दूसरे भाई यानी भीम की पत्नी थी। ऐसा कहते है कि हिडिंबा एक राक्षसी थी, जो अपने भाई हिडिम्ब के साथ यहां रहा करती थी। कहा जाता है कि उन्होंने वचन लिया था जो कि उनके भाई हिडिम्ब को युद्ध में हरा देगा, वे उसे अपने वर के रुप में स्वीकार करेंगी। कुछ समय बाद पांडव निर्वासन के समय जब यहां पहुंचे तब उन्होंने हिडिम्ब से लड़ाई में उसे हरा दिया। इसके बाद हिडिंबा और भीम की शादी हो गई।


हिडिंबा मंदिर में महोत्सव


हर साल श्रावण के महीने में हिडिंबा देवी मंदिर में एक उत्सव का आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि ये उत्सव राजा बहादुर सिंह की याद में मनाया जाता है जिसने इस मंदिर का निर्माण कराया था। इसलिए स्थानीय लोगों ने इस मेले का नाम रखा है- बहादुर सिंह रे जातर। 

यहां 14 मई को हिडिंबा देवी के जन्मदिन के अवसर पर एक अन्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान स्थानीय महिलाएं डूंगरी वन क्षेत्र में संगीत और नृत्य के साथ जश्न मनाती है। कहा जाता है कि मंदिर लगभग 500 साल पुराना है। श्रावण मास में आयोजित होने वाले मेले को सहोरनी मेला के नाम से जाना जाता है। यह मेला धान की रोपाई पूरा होने के बाद आयोजित होता है। इसके अलावा नवरात्र के दौरान भी मंदिर में दशहरा महोत्सव का आयोजन होता है जिसमें दर्शन के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगती है।



पगोड़ा शैली में बना है मां हिडिम्बा मंदिर 


हिडिंबा मंदिर का निर्माण पगोड़ा शैली में कराया गया है जिसके कारण ये सामान्य मंदिर से काफी अलग और लोगों के आकर्षण का केंद्र है। 

ये मंदिर लकड़ी से बनाया गया है और इसमें चार छतें हैं। मंदिर के नीचे तीन छतें देवदार की लकड़ी के तख्तों से बनी हैं और चौथी या सबसे ऊपर की छत का निर्माण तांबे एवं पीतल से किया गया है। मंदिर के पहले की छत सबसे बड़ी, दूसरी छत पहले से छोटी, तीसरी छत दूसरे छत से छोटी और चौथी या ऊपरी छत सबसे छोटी है, जो कि दूर से देखने पर एक कलश के आकार की नजर आती है। 

हिडिंबा देवी मंदिर 40 मीटर ऊंचे शंकु के आकार का है और मंदिर की दीवारें पत्थरों की बनी हैं। मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं हैं लेकिन पद्चिन्ह पर एक विशाल पत्थर रखा हुआ है जिसे देवी का विग्रह रुप मानकर पूजा की जाती है। 


मंदिर कैसे पहुंचे 


हवाई मार्ग - हिडिंबा मंदिर का पास का एयरपोर्ट भुंतर में कुल्लू-मनाली हवाई अड्डा है। हवाई अड्डे से, आप मंदिर तक पहुंचने के लिए कार या टैक्सी किराये पर ले सकते हैं जिसमें आपको लगभग 2 से ढाई घंटा लगेगा।

रेल मार्ग - हिडिंबा मंदिर के पास का रेलवे स्टेशन जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन है। यहां ये आप टैक्सी करके मंदिर जा सकते हैं।

सड़क मार्ग - दिल्ली से मनाली के लिए रोजाना कई बसें चलती हैं। मनाली उत्तर भारत के प्रमुख शहरों से बस परिवहन के माध्यम से जुड़ा हुआ है। 

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