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हिमाचल प्रदेश, जिसे अक्सर देवभूमि या देवताओं की भूमि के नाम से जाना जाता है, एक समृद्ध पौराणिक अतीत समेटे हुए है। यहां कई मंदिर हैं जो दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करते हैं। ऐसा ही एक मंदिर भरमौर में स्थित है। जिसे चौरासी मंदिर कहा जाता है। 9वीं शताब्दी के मंदिर चंबा घाटी में सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक हिन्दू मंदिरों में से एक है। मान्यता है कि इस मंदिर में साक्षात यमराज विराजमान है, यहां उनकी अदालत भी लगती है।
मंदिर का समय- शिकारी माता मंदिर सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक खुलता है।
चंबा जिले के भरमौर में चौरासी मंदिर स्थित है। इनमें एक मंदिर में यमराज का वास है। माना जाता है कि यहां पर यमराज की अदालत लगती है। यह मौत के देवता का अकेला मंदिर है। मान्यता है कि इंसान अगर जिंदा रहते हुए इस मंदिर नहीं आता है तो मरने के बाद उसकी आत्मा को इस मंदिर में आना पड़ता है। यहां आने के बाद उसके पाप और पु्ण्य दोनों का फैसला कर के उसे स्वर्ग और नरक में भेजा जाता है। इस मंदिर में आने वाली आत्मा को धर्मराज के पास जाने से पहले एक और देवता के पास जाना पड़ता है जिन्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाता है। मंदिर की की मान्यता है कि इसमें चार अलग-अलग धातु के अदृश्य दरवाजे भी हैं। यह द्वार सोना, चांदी, तांबे और लोहे से बने हुए हैं।
व्यक्ति की मृत्यु के बाद यमदूत आत्मा को इसी मंदिर में यमराज के द्वार पर ले जाते है। यहां यमराज व्यक्ति की आत्मा का भविष्य का रास्ता तय करते हैं। इस बात का जिक्र गरुड़ पुराण में भी किया गया है। हिंदू धर्म में विशेष मान्यता रखने वाले भाई दूज के त्योहार के दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ लगती है। भाई-बहन का ये पवित्र पर्व भाई दूज हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
मान्यता है कि भाई दूज के दिन यमराज से मिलने उनकी बहन यमुना इस मंदिर में आती हैं। पौराणिक कथाओं में यमराज और यमुना को भगवान सूर्य की संतान बताया गया है। इस खास मौके पर भक्तों की यहां भारी भीड़ लगती है। कुछ लोग इसे सिर्फ कहानी मात्र ही मानते है और कुछ लोगों को अटूट विश्वास हैं।
ऐसा माना जाता है कि साहिल वर्मन के ब्रह्मपुरा (प्राचीन भरमौर का नाम) के प्रवेश के कुछ समय बाद, 84 योगियों ने इस जगह का दौरा किया। वे राजा के आतिथ्य से बेहद प्रसन्न थे। राजा के कोई भी संतान नहीं थी, तब योगियों ने राजन को वरदान दिया की उसके यहां 10 पुत्रों का जन्म होगा। कुछ सालों बाद राजा के घर दस बेटों और एक बेटी ने जन्म लिया। बेटी का नाम चंपावती रखा गया था चंपावती की नई राजधानी चंबा की पसंद की वजह से स्थापित की गई थी। इन 84 योगी के चलते मंदिर का नाम भी पड़ा चौरासी मंदिर पड़ गया। चौरासी मंदिर परिसर में 84 बड़े और छोटे मंदिर हैं। चौरासी भरमौर के केंद्र में एक विशाल स्तर का मैदान है जहां शिवलिंग के रूप में मंदिरों की आकाशगंगा मौजूद है।
कहते हैं कि महाशिवरात्रि पर्व पर पाताल लोक में विराजमान भगवान शिव कैलाश को प्रस्थान करते हैं। इस यात्रा के दौरान शिव भगवान चंबा भरमौर स्थित अति प्राचीन चौरासी मंदिर में विश्राम करते हैं। उनके इस विश्राम को साकार रूप देने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु भरमौर के चौरासी मंदिर में जाते हैं। साल में यह पहला मौका होता है जब रात के चार पहर विशेष पूजा-अर्चना चलती है और लगातार घंटियों का शोर समूचे भरमौर में सुनाई देता है।
हवाई मार्ग - चौरासी मंदिर भरमौर जाने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा कांगड़ा एयरपोर्ट है। यहां से आप चौरासी के लिए लोकल कैब या बस ले सकते हैं है।
रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट और चक्की बैंक रेलवे स्टेशन है। अपनी सुविधा के अनुसार आप इनमें किसी भी स्टेशन को चुन सकते हैं। यहां से आप कैब या सार्वजनिक परिवहन के किसी अन्य साधन का सहारा ले सकते हैं।
सड़क मार्ग - यहां पर आपको सड़क मार्ग अच्छा मिलेगा। इसके लिए आपको कैब, बस किराये पर लेनी होगी या आप अपने वाहन से यात्रा कर सकते हैं।
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