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शुक्र हैं आकर्षण, ऐश्वर्य, धन, सुख, वैभव और प्रेम के देवता

शुक्र ग्रह नवग्रहों में से एक प्रमुख ग्रह हैं और ये कुंडली में अनुकूल होने पर व्यक्ति को सुख, ऐश्वर्य, धन और प्रेम प्रदान करते हैं।  संस्कृत शब्द शुक्र का अर्थ श्वेत और चमकीला होता है इसलिए ऐसा मन गया है कि शुक्र दिखने में श्वेत कांति लिए हुए और बहुत ही आकर्षक दिखते हैं इसीलिए इनसे प्रभावित लोग भी बहुत आकर्षक और ऐश्वर्य पसंद होते हैं।  शुक्र को विस्तार से जानने के पूर्व इनके परिवार, शिक्षा और अन्य चीजों के बारे में जानते हैं -

 

शुक्र का जन्म माता काव्य और ऋषि भृगु के घर में हुआ, इनकी शिक्षा दीक्षा देवगुरु बृहस्पति के साथ ऋषि अंगिरस के आश्रम में हुई।  शुक्र बृहस्पति के ही समान तेजस्वी और ज्ञान हैं फिर भी इन्हे देवलोक में अपने लिए कोई उचित पद मिलने के कारण इन्होने दैत्य गुरु होना स्वीकार किया और दैत्यों की भलाई के लिए ही उन्हें विद्या और शक्तियां प्रदान कीं। 

 

शुक्र को संजीवनी विद्या का जनक भी कहा जाता है, जिससे उन्होंने देव दानव संग्राम में कई बार उन्हें जीवित कर दिया था और फिर देवताओं को अमृत के लिए समुद्र मंथन करना पड़ा था, जैसा कि लेख में ऊपर बताया है कि इनकी शिक्षा बृहस्पति के साथ एक ही गुरु के संरक्षण में हुई फिर भी इनकी ग्रहण करने कि क्षमता के कारण इन्हे अधिक ज्ञानी माना गया है। इसलिए शुक्र प्रभावित लोग बहुत ही चतुर, ज्ञानी और कलाप्रिय होते हैं, ऐसा भी माना जाता है कि ऐसे लोग अच्छे ज्योतिषी भी हो सकते हैं।

 

शुक्र को ज्योतिष में वृष एवं तुला राशि का स्वामी माना गया है, काल-पुरुष कि कुंडली के अनुसार शुक्र दूसरे (धन) एवं सातवें (विवाह, साझेदारी) घर के कारक होते हैं।  वृष राशि स्थिर और पृथ्वी तत्व राशि है इसलिए अधिकांशतः पूजाएँ वृषभ लग्न में कि जाती हैं दूसरी तरफ तुला चलायमान और वायु तत्व की राशि है एवं तुला को ही शुक्र की मूल त्रिकोण राशि माना गया है। शुक्र को भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी  और पूर्वाषाढा नक्षत्र का स्वामी बताया जाता है। शुक्र मीन राशि में उच्च और कन्या राशि में नीच के बताये गए हैं।

 

शुक्र की नैसर्गिक मैत्री बुध एवं शनि से होती है इसीलिए शनिदेव शुक्र की तुला राशि में उच्च के माने जाते हैं। सूर्य इनका नैसर्गिक प्रतिरोधी ग्रह है, मंगल एवं चंद्र से सम रहते हैं।  शुक्र का शनि एवं बुध से सम्बन्ध अति कल्याणकारी माना जाता है, जन्मकुंडली के तीसरे और छठे भाव में शुक्र को अच्छा नहीं माना जाता और बारहवें भाव में अति बलवान माना जाता है फिर भी शुक्र की सही स्तिथि जानने के लिए ज्योतिषीय परामर्श आवश्यक है।

 

शुक्र को मनोरंजन, सौंदर्य, विलास, संगीत, विवाह, साझेदारी, काम-शास्त्र का स्वामी माना जाता है। हीरा, चाँदी, इत्र, वस्त्र आभूषण, वंसत ऋतू के कारक माने जाते हैं शुक्र के अच्छे प्रभाव के लिए या कुंडली में ख़राब शुक्र को प्रसन्न करने के लिए शुक्र के दिए गए मन्त्रों का जाप लाभकारी होता है। 

 

मंत्र

 

) शुं शुक्राय नमः।

) द्रां द्रीं द्रौं : शुक्राय नम:

) अश्वध्वजाय विद्महे धनुर्हस्ताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्।

) भृगु-वंश-जाताय विद्महे श्वेत-वाहनाय धीमहि तन्नो शुक्रः प्रचोदयात्।

) ऊँ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति: ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं  पयोअमृतं मधु।।

) हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् | सर्वशास्त्र-प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।।

 

हर शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद अपने आराध्य देव को हाथ जोड़कर प्रणाम करें। फिर शुक्र को प्रणाम करें। शुक्रवार के दिन कम से कम एक माला जरूर जाप करें।

शुक्र ग्रह से जुड़ी कुछ अन्य रोचक जानकारियां आपको bhaktvatsal.com के दूसरे नवग्रह विशेष लेखों में मिलेंगी।

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