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“नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥”
अर्थात चैत्र के पावन महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी और भगवान के प्रिय अभिजीत मुहूर्त में दोपहर का समय था, न बहुत सर्दी थी, न गर्मी। संसार इस समय एक अद्भुत शांतिमय वातावरण की अनुभूति कर रहा था। गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम जन्म के समय, तिथि और मुहूर्त का वर्णन बड़े ही सुंदर शब्दों में इस चौपाई में किया है।
भगवान विष्णु के सभी अवतारों में श्री रामावतार को श्रेष्ठ अवतार कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं होगी। भगवान विष्णु का यह सातवां अवतार है। जो मर्यादा और धर्मपरायणता की सीख मानव मात्र को देता है। भगवान के जन्मोत्सव को हम सब रामनवमी के पावन पर्व के रूप में मनाते हैं। भगवान श्रीराम का यह अवतार धर्म रक्षा के साथ-साथ शास्त्रों के अनुसार कुछ वरदानों और श्रापों को सफल करने हेतु भी हुआ था। त्रिदेवों में पालनहारे के रूप में पूजे जाने वाले श्रीहरि भगवान विष्णु ने हर युग में विभिन्न अवतारों के माध्यम से धरती पर पापियों का नाश कर धर्म की ध्वजा को फहराया है। तो जानिए पौराणिक मान्यताओं के अनुसार क्या है रामावतार के कारण और उद्देश्य।
पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि एक बार सनकादिक मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए बैकुंठ पहुंचे जहां भगवान के द्वारपाल जय और विजय ने सनकादिक मुनि का परिहास करते हुए उन्हें द्वार पर रोक लिया। इससे क्रोधित होकर मुनि ने उन दोनों को अगले तीन जन्मों तक राक्षस कुल में पैदा होने का श्राप दे दिया। जय विजय को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे क्षमा याचना करने लगे। तो मुनि ने कहा कि तीन जन्मों के बाद भगवान विष्णु ही तुम्हारा उद्धार करेंगे और तुम्हें मोक्ष मिलेगा। पहले जन्म में जय और विजय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में जन्मे और भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर इनका दोनों का वध किया। दूसरे जन्म में जय विजय ने रावण और कुंभकर्ण के रूप में राक्षस कुल में जन्म लिया और भगवान विष्णु के राम अवतार का मुख्य कारण बनें। जय विजय का तीसरा जन्म द्वापरयुग में शिशुपाल और दंतवक्र के रूप हुआ और इस बार भगवान श्रीकृष्ण ने इन दोनों को परमधाम पहुंचाया।
राम अवतार को लेकर एक कथा यह भी है कि मनुष्य जाति के जनक मनु और शतरूपा के अच्छे आचरण और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया था, कि मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। भगवान ने उन्हें कहा कि अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी बड़ी रानी कौशल्या के रूप में आप दोनों जन्म लेंगे और उस समय मैं आपका पुत्र श्री राम बनकर अवतार लूंगा। इसी क्रम में जब देवासुर संग्राम में महाराज दशरथ ने देवताओं की मदद की तब भी भगवान ने उन्हें दशरथ पुत्र राम के रूप में जन्म लेकर उनकी इस मदद का ऋण उतारने का वरदान दिया था।
रामावतार के मुख्य कारणों में नारद मुनि के एक श्राप का भी उल्लेख पुराणों में है। पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनि को कामदेव की माया से मुक्त रहने का अहंकार हो गया। उन्होंने कामदेव पर विजय प्राप्त करने का बखान भगवान शिव के समक्ष कुछ इस तरह से किया की शिव को नारद मुनि के अहंकार का अंदाजा हो गया।
शंकर जी ने नारद मुनि को यह बात श्री हरि विष्णु को न बताने की सलाह दी। लेकिन नारद जी ने भोलेनाथ की अवज्ञा करते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंच कर अहंकार भरे शब्दों में सारा वृतांत सुनाया।
अहंकार से ग्रसित नारदजी की बात सुनकर भगवान विष्णु जी ने उनके अहंकार को दूर करने की युक्ति निकाली। जब नारद जी बैकुंठ से लौट रहे थे, तो भगवान की माया से उन्हें एक सुंदर नगर और भव्य महल दिखाई दिया। नारदजी राजमहल में पहुंचे तो वहां राजा की पुत्री को देख मोहित हो गए। नारद मुनि ने लड़की के हाथों की रेखाओं को देखा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि लड़की का पति विश्व विजेता और तीनों लोकों का स्वामी होगा। तभी यह जानकर नारद जी ने वैराग्य त्याग कर विवाह करने का मन बना लिया। इस मनोकामना के साथ वे फिर से भगवान विष्णु के पास वापस बैकुंठ गए और उन्होंने भगवान विष्णु से उन्हें एक सुंदर युवक बनाने की प्रार्थना की। विष्णु जी ने नारद जी से कहा कि तुम्हारे लिए जो ठीक होगा मैं वहीं करूंगा।
लेकिन भगवान के इस कथन का अभिप्राय नारदजी समझ नहीं सके और सीधे विवाह के स्वयंवर में पहुंच गए। राजा की लड़की ने नारद मुनि को अनदेखा कर किसी और के गले में वरमाला डाल दी। जिससे नारद मुनि बहुत दुखी हो गए। निराश होकर लौटते समय जब उन्होंने अपना चेहरा जल में देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए, क्योंकि उनका चेहरा बंदर जैसा हो गया था। असलियत जानकर नारद मुनि बहुत क्रोधित होकर भगवान से सवाल जवाब करने का मन बना कर बैकुंठ पहुंचे तो देखा कि वही राजकुमारी भगवान विष्णु के पास विराजमान हैं। अब नारद जी के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने भगवान को श्राप दिया कि आपने बंदर के समान मेरा मुख बनाकर मेरा उपहास कराया है, लेकिन एक दिन मनुष्य अवतार के दौरान आपको बंदरों से मदद मांगनी होगी और जिस तरह आज मैं स्त्री वियोग सह रहा हूं आपको भी यह विरह वेदना सहनी होगी।
राम अवतार को लेकर वाल्मीकि रामायण के अनुसार कथा है कि एक बार रावण ने ब्रह्मा जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया था। जब ब्रह्मदेव ने रावण को वरदान मांगने के लिए कहा तो रावण ने अपनी कठोर तपस्या के फलस्वरूप अमरता का वर मांगा। इस पर ब्रह्म देवता ने रावण को अमरत्व के अलावा कुछ भी मांगने को कहा। तब रावण ने देव, दानव, नाग, किन्नर, गंधर्व, यक्ष, गण और हिंसक पशु में से किसी के भी द्वारा न मरने का वरदान मांगा। रावण ने इस वर में मनुष्य और वानर छोड़ दिए, क्योंकि उसे अहंकार था कि नर और वानर तो उसे कभी मार ही नहीं पाएंगे। ब्रह्मदेव ने तुरंत तथास्तु कहकर वरदान दे दिया। इस तरह ब्रह्मदेव का यह वरदान भी रामावतार का मुख्य कारण रहा।
इन्हीं सभी श्रापों और वरदानों के फलस्वरूप त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने सूर्यवंशी राजाओं में परम प्रतापी महाराज दशरथ के घर उनके ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जन्म लिया और मर्यादा और धर्म पालन के नए आयाम स्थापित करते हुए स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के रूप में युग युगांतर तक अमर कर लिया।
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