श्रावण का क्या है धार्मिक महत्व? (Shraavan ka kya Hai Dhaarmik Mahatv?)

इस साल 22 जुलाई यानि सोमवार से श्रावण मास की शुरूआत हो रही है जो 19 अगस्त तक जारी रहेगा। श्रावण मास को शिव का महीना कहा जाता है और पूरे महीने शिव आराधना होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महादेव को श्रावण मास इतना क्यों पसंद है और इस मास का क्या धार्मिक महत्व क्या है।

 

हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, श्रावण मास दक्षिणायन में आता है जिसके देवता शिव हैं।  इसीलिए इन दिनों भगवान शिव की पूजा करना और व्रत रखना बड़ा ही फलदायक होता है। श्रावण  के दौरान बारिश का मौसम होता है और पुराणों के मुताबिक महादेव को चढ़ने वाले सभी फूल-पत्ते बारिश में ही आते हैं, इसलिए श्रावण में शिव पूजा की परंपरा बनी है।

 

इस महीने का नाम श्रावण या सावन क्यों ?


स्कंद और शिव पुराण के अनुसार इसकी दो वजह सामने आती है। पहली, इस महीने पूर्णिमा तिथि पर श्रवण नक्षत्र होता है। जबकि दूसरी ये कि स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने सनत्कुमार को बताया था कि इस मास में शिव की पूजन से सिद्दी मिलती है इसलिए इसे श्रावण कहते हैं। इसमें निर्मलता का गुण होने से ये आकाश के समान है, इसलिए इसे नभा भी कहा गया है।

 

श्रवण मास का धार्मिक महत्व :


सावन का महत्व बताते हुए महाभारत के अनुशासन पर्व में अंगिरा ऋषि कहते हैं कि जो इंसान मन और इन्द्रियों को काबू में रखकर एक वक्त खाना खाते हुए श्रावण मास बिताता है। उसे कई तीर्थों में स्नान करने जितना पुण्य मिलता है। मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने सावन माह में भगवान शिव को पति परमेश्वर के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी और तपस्या सफल होने पर उनसे विवाह किया था। यही कारण है कि शिवजी को सावन में अत्यधिक प्रिय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब महादेव ने समुद्र मंथन से निकले हलाल विष को अपने कंठ में रखा था तब उनका शरीर गर्म हो उठा था और सारी सृष्टि जलने लगी थी। तब सभी देवी देवताओ ने भगवान शिव के तपते शरीर को ठंडा करने के लिए जल अर्पित किया था। इसी वजह से महादेव के भक्त इसी माह में कांवड़ यात्रा करते हैं और हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकंठ आदि दर्शनीय धार्मिक स्थलों पर जाकर भगवान शिव शंकर की स्तुति में लीन हो जाते हैं।

 

श्रावण मास और जल का संबंध :

 

शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। श्रावण का महीना जितना भगवान शंकर से संबंधित उतना ही इसका पानी से भी गहरा संबंध है। शिवपुराण के श्लोक के अनुसार:

 

संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्।

भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः॥

 

अर्थात- जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं बल्कि उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करनी चाहिए।

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