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सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इनमें शारदीय और चैत्र नवरात्रि विशेष धूमधाम से मनाई जाती हैं। साल में कुल चार नवरात्रियां पड़ती हैं—दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त। नवरात्रि माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन मास में आती हैं। इनमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि को प्रत्यक्ष नवरात्रि कहा जाता है और इनका धार्मिक महत्व अधिक होता है।
चैत्र नवरात्रि चैत्र मास, जबकि शारदीय नवरात्रि आश्विन मास में पड़ती है। इन दोनों नवरात्रियों में माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा और उपासना की जाती है। भक्त इन नौ दिनों तक उपवास रखते हैं और देवी की आराधना में लीन रहते हैं। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि 2025 में चैत्र और शारदीय नवरात्रि कब मनाई जाएगी, तो आइए जानते हैं विस्तार से।
हिंदू पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस दौरान जगह-जगह माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और श्रद्धालु भक्ति भाव से देवी की पूजा-अर्चना करते हैं।
शारदीय नवरात्रि 2025 की शुरुआत - 22 सितंबर 2025 (रात्रि 1:23 से)
शारदीय नवरात्रि का समापन - 2 अक्टूबर 2025 (रात्रि 2:55 पर)
उदयातिथि के अनुसार नवरात्रि प्रारंभ - 22 सितंबर 2025
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त - 22 सितंबर को सुबह 6:09 से 8:06 तक
अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना - 11:49 से 12:38 तक
नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। देवी के ये नौ स्वरूप हैं—
नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति नवरात्रि में श्रद्धापूर्वक दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है, वह भय, बाधा, चिंता और शत्रुओं से मुक्त हो जाता है।
जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय..॥
तू ही सत-चित-सुखमय,
शुद्ध ब्रह्मरूपा ।
सत्य सनातन सुन्दर,
पर-शिव सुर-भूपा ॥
जगजननी जय जय..॥
आदि अनादि अनामय,
अविचल अविनाशी ।
अमल अनन्त अगोचर,
अज आनँदराशी ॥
जगजननी जय जय..॥
अविकारी, अघहारी,
अकल, कलाधारी ।
कर्त्ता विधि, भर्त्ता हरि,
हर सँहारकारी ॥
जगजननी जय जय..॥
तू विधिवधू, रमा,
तू उमा, महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू,
तू जननी, जाया ॥
जगजननी जय जय..॥
राम, कृष्ण तू, सीता,
व्रजरानी राधा ।
तू वांछाकल्पद्रुम,
हारिणि सब बाधा ॥
जगजननी जय जय..॥
दश विद्या, नव दुर्गा,
नानाशस्त्रकरा ।
अष्टमातृका, योगिनि,
नव नव रूप धरा ॥
जगजननी जय जय..॥
तू परधामनिवासिनि,
महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि,
ताण्डवलासिनि तू ॥
जगजननी जय जय..॥
सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या,
तू शोभाऽऽधारा ।
विवसन विकट-सरुपा,
प्रलयमयी धारा ॥
जगजननी जय जय..॥
तू ही स्नेह-सुधामयि,
तू अति गरलमना ।
रत्नविभूषित तू ही,
तू ही अस्थि-तना ॥
जगजननी जय जय..॥
मूलाधारनिवासिनि,
इह-पर-सिद्धिप्रदे ।
कालातीता काली,
कमला तू वरदे ॥
जगजननी जय जय..॥
शक्ति शक्तिधर तू ही,
नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शिनि वाणी,
विमले! वेदत्रयी ॥
जगजननी जय जय..॥
हम अति दीन दुखी माँ!,
विपत-जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी,
पर बालक तेरे ॥
जगजननी जय जय..॥
निज स्वभाववश जननी!,
दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि!
चरण-शरण दीजै ॥
जगजननी जय जय..॥
जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय..॥
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