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देवी के प्रमुख रूपों में सप्त मातृकाओं का स्मरण और पूजन साधकों को मनवांछित फल देने वाला है। देवताओं की दिव्य शक्तियों से उत्पन्न हुई इन सप्त मातृकाओं में छठी शक्ति देवी इंद्राणी है जो देवराज इन्द्र की शक्ति से प्रकट हुई हैं। इंद्राणी को शची भी कहा जाता है और इन्हें देवताओं की रानी माना गया है। देवी इंद्राणी बहुत सुंदर, गौरवमई और दयाभाव के आभामंडल वाली है। पौराणिक मान्यताओं में उन्हें असुर पुलोमन की बेटी और देवों के राजा इंद्र की पत्नी बताया गया है।
इंद्राणी शब्द इंद्र का स्त्रीलिंग कहा गया हैं, इसका अर्थ है इंद्र की पत्नी। वही इंद्र को भी शचीपति (शची के पति), शचींद्र (शची के इंद्र), या शचिवत (शची के स्वामी) के नामों से जाना जाता है। शची इंद्राणी का एक प्रमुख अन्य नाम है। शची का अर्थ है भाषण की शक्ति या वाक्य पटुता। यह संस्कृत शब्द शच से लिया गया है, जिसका अर्थ है बोलना या कहना। सात दिव्य माताओं में से एक इंद्राणी को सदैव इंद्र के साथ पूजा जाता है। इंद्राणी की पूजा जैन और बौद्ध धर्म में भी एक देवी के रूप में की जाती हैं। इन धर्मों में देवी की महिमा का बखान भी है। इंद्राणी के कुछ और नाम भी हैं। इनमें पौलोमी यानी पुलोमन की बेटी, पौलोमुजा मतलब पुलोमन की बेटी, देवरानी या देवों की रानी, चारुधरा, शकरणी, महेंद्राणी शामिल हैं।
हिंदू मंदिरों में इंद्राणी और इंद्र की मूर्तियां सारे भारत में देखी जा सकती हैं। सफेद हाथी ऐरावत पर बैठे हुए मैया के स्वरूप के बारे में विष्णुधर्मोत्तर में वर्णित है कि इंद्राणी की दो भुजाएं है और उनके साथ इंद्र भी विराजमान हैं। माता का रंग सुनहरा है और मां नीले वस्त्रों में हैं। उनका एक हाथ देवराज इंद्र के हाथों में है जबकि दूसरे में मंजरी है।
अंशुमाद्भेद-अगम ग्रंथ में भी मां के इसी रूप का वर्णन है। मैया एक प्रसन्न युवती के रूप में सभी प्रकार के आभूषणों से सजी हुई है। विष्णुधर्मोत्तर के अनुसार पीले रंग वाली मैया की एक हजार आंखें और छह भुजाएं हैं। जिनमें सूत्र, वज्र, बर्तन और पात्र अभय और वरद मुद्रा में हैं। देवी भागवत पुराण में इंद्राणी की दो भुजाओं का वर्णन है, जिनमें मां अंकुश और वज्र धारण करती हैं। बौद्ध पाली कैनन में इंद्राणी को सुजा के रूप में संदर्भित किया गया है, जो शक्र की पत्नी थी।
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