राजा जनक ने बिहार के सिमरिया में किया था कल्पवास

Kalpvas 2024: बिहार के इस स्थान पर राजा जनक ने किया था कल्पवास, 2016 से हर साल लग रहा है राजकीय मेला


कल्पवास की परंपरा हिंदू संस्कृति का अहम हिस्सा है।  इस पंरपरा के मुताबिक व्यक्ति को एक महीने तक गंगा किनारे रहकर अनुशासित जीवनशैली का पालन करना होता है। यह एक तरह का कठिन तप माना गया है। मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति कल्पवास का नियमों के साथ पालन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सारे पाप धुल जाते हैं। सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वाहन राजा जनक ने भी किया था। मान्यता है कि उन्होंने बिहार के  बेगूसराय के सिमरिया धाम पर कल्पवास किया था। इसी के बाद से यहां हर साल मेले का आयोजन किया जाने लगा। चलिए आपको राजा जनक से जुड़ी पूरी कहानी और बेगूसराय के सिमरिया धाम के बारे में विस्तार से बताते हैं।


राजा जनक से जुड़ी कहानी 


जानकार बताते हैं कि जब माता सीता को विवाह के बाद अयोध्या ले जाया जा रहा था। तो राजा जनक ने मिथिला के सीमा क्षेत्र सिमरिया में ही डोली रखने कहा। इसके बाद वे सिमरिया आए और उन्होंने माता सीता के पैर पखारे। साथ ही उन्होने सिमरिया में गंगा के किनारे यज्ञ किया और कार्तिक माह में सिमरिया में कल्पवास किया था।


2016 में घोषित हुआ राजकीय मेला 


सिमरिया मेला को 2016 में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने राजकीय मेला घोषित कर दिया। इसके बाद से स्थान आधुनिकता के रंग में रग गया और यहां देश के अलावा विदेश से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे। एक अनुमान के मुताबिक हर साल  बिहार, यूपी, नेपाल के लगभग 30 हजार कल्पवासी एक महीने तक गंगा के पास निवास करते हैं।



कल्पवास के दौरान नहीं दिखता भेदभाव 


सिमरिया धाम में कल्पवास की एक खास बात है कि यहां कोई भेदभाव देखने को नहीं मिलता है। यहां न अमीरी देखी जाती है, न ही कोई गरीब होता है। इसके अलावा जात-पात, रंग-भेद और ऊंची-नीच जैसे भेद भी इस स्थान से दूर रहते हैं। यहां हर कोई बस मोक्ष पाने आता है। नियम से सुबह 3 बजे उठता है, स्नान करता है और गंगा मां की पूजा अर्चना कर अपने दिन की शुरुआत करता है। इसके बाद अपने कुटीरों में भोग तैयार करता है।


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