बिना पुजारी या पंडित के घर में ऐसे करें श्राद्ध कर्म, जल्द मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

पितृ पक्ष में हर दिन पितरों के लिए श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृपक्ष का समय वह समय होता है जब हमारे पूर्वज और पितृ धरती पर आते हैं। महाभारत और पद्मपुराण सहित अन्य स्मृति ग्रंथों में कहा गया है कि जो पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त सामर्थ्य के अनुरूप पूरी विधि से श्राद्ध करता है, उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं। वैसे कहा तो यह भी जाता है कि श्राद्ध कर्म करने के लिए धन नहीं है तो आप अपने पितरों को अपने वचनों से भी तृप्त कर सकते हैं लेकिन अगर आपको पूरे विधि विधान के साथ श्राद्ध कर्म करना है तो यह लेख आपके लिए है। चलिए आपको बताते कि आप किस प्रकार बिना किसी पुजारी या पंडित के अपने घर में ही सरल तरीके श्राद्ध कर्म को कर सकते है और पितरों की प्राथना करते समय आपको कौन से मंत्रों का उच्चारण करना है। 


घर बैठे पितरों का श्राद्ध करने की विधि


सुबह जल्दी उठकर नहाएं, उसके बाद पूरे घर की सफाई करें। घर में गंगाजल और गौमूत्र भी छिड़कने के बाद दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बांए पैर को मोड़कर, बांए घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं।

महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन और घर के आंगन में रंगोली बनाएं । 

इसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में काले तिल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल और पानी डालें। उस जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं। इस तरह 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें। 

पितृपक्ष में श्राद्ध के तर्पण का विशेष महत्व है। तर्पण अर्थात होता है पितरों को जल देना। इसके लिए सबसे पहले अपने हाथ में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर अपने पितरों का ध्यान करें और उन्हें अपनी पूजा स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करें। इस दौरान इस मंत्र ‘ॐ आगच्छन्तु में पितर और ग्रहन्तु जलान्जलिम’ का स्पष्ट उच्चारण पूर्वक जप करें। 

इसके बाद 108 बार माला का जप करें और जल में तिल डालें और 7 बार अंजली दें। 

श्राद्ध में सफेद फूलों का ही उपयोग करें। श्राद्ध करने के लिए दूध, गंगाजल, शहद, सफेद कपड़े, अभिजित मुहूर्त और तिल मुख्य रूप से जरूरी है।

पितरों के निमित्त अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर अर्पण करें। ब्राह्मण भोजन से पहले पंचबलि यानी गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें।

भोजन को ब्राह्मणों, गरीबों या जरूरतमंदों को दान करें। इसे सामाजिक जिम्मेदारी और दान का भाग मानें।श्राद्ध कर्म के बाद धन्यवाद अर्पित करें और अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करें।


इन बातों का रखे विशेष ध्यान 


शास्त्रों के अनुसार कुतुप बेला की तिथि में ही श्राद्ध होता है। कुतुप बेला दिन प्रात:काल 11:36 से 12:24 बजे तक के समय को कहते हैं। मान्यता है कि कुतुपकाल में किया गया श्राद्ध पितरों के लिए श्रेष्ठ होता है। 

शास्त्रों के अनुसार पितरों के लिए श्राद्ध या तर्पण करने का पहला अधिकार बड़े पुत्र का होता है। बड़ा पुत्र के उपलब्ध न होने पर उसका छोटा बेटा या बेटी या फिर बेटी-दामाद फिर नाती भी उनके लिए श्राद्ध कर सकता है। 

पितरों का श्राद्ध, तर्पण भूलकर भी शाम या रात के समय नहीं करना चाहिए इससे पितृ क्रोधित हो जाते है। 

शास्त्रों के अनुसार पितरों के लिए कभी भी श्राद्ध दूसरों की भूमि पर नहीं करना चाहिए। यदि किसी के पास स्वयं का मकान न हो तो वह मंदिर, तीर्थ स्थान आदि पर जाकर श्राद्ध कर्म कर सकता है, क्योंकि इसपर किसी का अधिकार नहीं होता है। 



पितृपक्ष की प्रार्थना में करें इन मंत्रों का उच्चारण


1. पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।
पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।
प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।
सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।।
2. ॐ नमो व :पितरो रसाय नमो व:
पितर: शोषाय नमो व:
पितरो जीवाय नमो व:
पीतर: स्वधायै नमो व:
पितर: पितरो नमो वो
गृहान्न: पितरो दत्त:सत्तो व:।।


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