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महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है। प्रयाग को हिंदू धर्म में तीर्थों का राजा कहा जाता है। यह शहर हजारों मंदिरों के साथ ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं का केंद्र भी रहा है। हर साल यहां लाखों श्रद्धालु मोक्ष प्राप्ती के लिए आते हैं। माना जाता है कि प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। जिस कारण से यह शहर खास है।
प्रयागराज का पुराना नाम इलाहाबाद था। इसके अलावा पौराणिक कथाओं के मुताबिक इलावास भी कहा जाता था। इलावास नाम प्रयागराज को राजा इल से मिला था। जिनका जीवन बड़ा रोचक था। उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसके बाद वे पुरुष से स्त्री बन गए थे। चलिए आपको राजा इल और प्रयागराज से जुड़े अनोखे पौराणिक प्रसंगों के बारे में बताते हैं।
क्या है राजा इल से जुड़ी कथा?
पौराणिक काल में त्रिवेणी संगम के के क्षेत्र में ‘इलावंशीय’ राजाओं का राज था । राजा इल इसी वंश के राजा थे। वे एक पराक्रमी और धर्म को मानने वाले शासक माने जाते थे। एक बार वे शिकार के दौरान एक ऐसे वन में पहुंच गए, जहां वे भगवान शिव और देवी पार्वती का स्थान था। अनजाने में उन्होंने उस क्षेत्र में प्रवेश किया, जहां पुरुषों का आना वर्जित था। इसी दौरान उन्हें देवी पार्वती ने देख लिया और श्राप दिया। जिसके बाद वे पुरुष से स्त्री में परिवर्तित हो गए।
राजा इल ने इसे दुर्भाग्य मानते हुए भगवान शिव की पूजा की। भगवान शिव ने राजा इल से प्रसन्न होकर उनकी समस्या का समाधान किया, लेकिन यह तय किया कि वे एक महीने पुरुष और एक महीने स्त्री के रूप में रहेंगे। इस अनोखी घटना के कारण उनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम इलावास पड़ा, जो बाद में प्रयागराज के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
स्त्री रूप के दौरान राजा इल का नाम इला रखा गया। इसी रूप में उन्होंने चंद्रवंश के बुद्धिमान राजा बुध से विवाह किया। जिससे बुध और इला को पुरुरवा नाम का पुत्र हुआ। पुरुरवा ने ही चंद्रवंश की स्थापना की। इस वंश का नाम महाभारत और अन्य ग्रंथों में उल्लेखित है। वहीं पुरुरवा को एक पराक्रमी राजा के तौर पर जाना जाता है। उनका विवाह स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा कही जाने वाली उर्वशी से हुआ था।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक इलावास (प्रयागराज) का क्षेत्र गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना गया है। इसके अलावा राजा इल की तपस्या और उनके यज्ञ ने भी इस स्थान को खास बनाया है।इसी कारण से महाकुंभ में यहां गंगा स्नान का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह क्षेत्र तप, ध्यान और आत्मशुद्धि का प्रतीक है।
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