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गंगा के किनारे, सूरज की पहली किरणों के साथ, धुंधली सुबह में एक दृश्य उभरता है। यह किसी भी सामान्य दिन से बिल्कुल अलग प्रतीत होता है। राख में लिपटे नग्न शरीर, जटाजूट और आंखों में एक अनोखी चमक। यह दृश्य महाकुंभ मेले की भव्यता को दर्शाता है। नागा साधुओं के चार प्रकारों में से ही एक प्रयाग के नागा साधु होते हैं। नागा साधु केवल आध्यात्मिक साधक नहीं, बल्कि धर्म के रक्षक भी होते हैं। तो आइए इस आलेख में नागा साधुओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
प्रयागराज के कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधुओं को नागा साधु कहा जाता है। यह कुंभ मेले की परंपरा का एक प्रमुख हिस्सा होते हैं। ये मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठिन साधना करते हैं। नागा साधु सनातन धर्म के साधक होते हैं। ये साधु "अखाड़ा" नामक धार्मिक संगठनों का हिस्सा होते हैं। नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं। यह उनके सांसारिक मोह-माया त्यागने का प्रतीक होता है। इनका जीवन भक्ति, तपस्या और आत्मज्ञान प्राप्ति हेतु समर्पित होता है।
नागा साधु बनने का मार्ग कठिन और रहस्यमय है। यह प्रक्रिया सांसारिक इच्छाओं को त्यागने से शुरू होती है।
इसमें, इच्छुक व्यक्ति को एक योग्य गुरु के सानिध्य में रहकर कठोर साधना करनी होती है। साथ ही वर्षों की साधना और तप के बाद गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है। यह नागा साधु बनने की अंतिम प्रक्रिया होती है। साधु बनने के बाद व्यक्ति को सांसारिक संबंधों, संपत्ति और पहचान से मुक्त होना पड़ता है।
नागा साधु कठोर तप करते हैं। वे हिमालय की बर्फीली गुफाओं में रहते हैं। जहां केवल ध्यान और योग साधना ही उनका सहारा होता है। उनका जीवन भौतिक सुखों से परे, तप और भक्ति के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करने में समर्पित होता है।
महाकुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हर 12 साल में आयोजित होता है। इस मेले में नागा साधु "शाही स्नान" करते हैं। यह इस महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। बता दें कि नागा साधु अखाड़ों के साथ संगम में सबसे पहले स्नान करते हैं। यह सनातन धर्म की विजय और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
उनका अस्तित्व समाज को यह संदेश देता है कि आत्मा का विकास भौतिक सुखों से परे है। वे अपनी कठोर तपस्या से यह सिद्ध करते हैं कि जीवन का अंतिम लक्ष्य सिर्फ मोक्ष प्राप्त करना है।
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