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पितृ पक्ष: कौए को भोजन और पंचबलि का पितरों से संबंध

पितृ पक्ष में कौए को भोजन क्यों कराया जाता है, जानिए पितरों से कैसे जुड़ा है पंचबलि


पितृ पक्ष में जो भोजन श्राद्ध के लिए बनता है उसमें से पशु,पक्षियों के लिए कुछ अंश निकाला जाता है और इसे बिना श्राद्ध पूरा नहीं माना जाता। यही प्रक्रिया ‘पंचबलि’ कहलाती है। पितृ पक्ष में 5 जीवों को भोजन कराना महत्वपूर्ण माना गया है। हालांकि इन पांच में से एक देवता होते है जो आकाश का नेतृत्व करते है। 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में पितरों की आत्मा को तृप्ति के लिए 4 जीवों को भोजन कराना आवश्यक माना जाता है। यह भी माना जाता है कि इन्हें भोजन अर्पित करने से पितृ दोष भी खत्म होता है। आइए जानते हैं ये चार जीव कौन-कौन से हैं...


कौए को भोजन देना मतलब पितरों को तृप्त करना


कौआ वायु तत्व का प्रतीक माना गया है। श्राद्ध पक्ष में कौओं के लिए भोजन का एक अंश जरूर निकाला जाता है। मान्यता है कि कौआ पितरों से जुड़े संकेत देता है, कहते हैं पितरों के लिए निकाला गया भोजन यदि कौआ खा लेता है, तो माना जाता है कि यह भोजन पितरों ने स्वीकार कर लिया है।


दूसरी तरफ अगर कौआ भोजन नहीं करता है तो यह माना जाता है कि आपके पूर्वज आप से विमुख हैं यानी रूठे हुए हैं। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, कौआ एकमात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ लोक के दूत के रूप में कार्य करता है। इसके अलावा कौए को यमराज का संदेशवाहक भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि कौए को भोजन कराने से हमारा संदेश हमारे पितरों तक पहुंचता है।


एक पौराणिक कथा के अनुसार, इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौवे का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेतायुग की है, जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था, तब भगवान श्रीराम ने तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी। अपने किए की माफी मांगने के बाद भगवान राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हें अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौवों को भोजन कराने की परंपरा चली आ रही है। 


गाय को पत्ते पर परोसा जाता है भोजन


गाय को पृथ्वी का प्रतीक माना जाता है। घर से पश्चिम दिशा की ओर गाय को पलाश के पत्तों पर भोजन कराया जाता है।गाय को ‘गौभ्यो नम:’ कहकर प्रणाम किया जाता है।


पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है और अथर्ववेद के अनुसार- ‘धेनु सदानाम रईनाम’ अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। गाय में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है, जो भाग्य को जागृत करने की क्षमता रखती है। गाय को अन्न और जल देने से सभी तरह के संकट दूर होकर घर में सुख, शांति और समृद्धि के द्वारा खुल जाते हैं। कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान अगर गाय खुद आपके दरवाजे पर आती है तो इसे एक शुभ संकेत माना जाता है। 



जल का प्रतीक माना जाता है कुत्ता


कुत्ता या श्वान जल का प्रतिनिधित्व करता है। कुत्ते को यम का भी प्रतीक है और काल भैरव की सवारी है।  इसलिए श्राद्ध के बाद यमराज की कृपा पाने के लिए कुत्ते को भी भोजन कराया जाता है।


कथाओं के अनुसार यमराज के मार्ग का अनुसरण करने वाले दो कुत्ते है जिनका नाम श्याम और सबल है। इन्हीं दोनों कुत्तों को स्मरण करके पितृपक्ष में उन्हें भोजन देना चाहिए।


शिव महापुराण के अनुसार, कुत्ते को रोटी खिलाते समय बोलना चाहिए कि- यमराज के मार्ग का अनुसरण करने वाले जो श्याम और शबल नाम के दो कुत्ते हैं, मैं उनके लिए यह अन्न का भाग देता हूं। वे इस भोजन को ग्रहण करें। ज्योतिष के अनुसार, कुत्ता केतु का प्रतीक है। कुत्ता पालने या कुत्ते की सेवा करने से केतु का अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाता है। पितृ पक्ष में कुत्तों को मीठी रोटी खिलानी चाहिए।



अग्नि के प्रतीक मानी जाती है चींटी


चींटियों को अग्नि का प्रतीक माना जाता है। चींटी-कीड़े-मकौड़ों इत्यादि के लिए पत्ते पर भोजन परोसा जाता। इसके अलावा जहां उनके बिल हों, वहाँ चूरा कर भोजन डाला जाता है। इससे सभी तरह के संकट मिट जाते हैं और घर परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है।


मान्यता के अनुसार, चींटी को भोजन कराने से सभी तरह के संकट मिट जाते हैं और घर परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है। चींटियों को खोपरा और शक्कर मिलाकर खिलाने से चंद्र और शुक्र का दोष समाप्त हो जाता है और पितृ देव प्रसन्न होते हैं। एक और मान्यता के अनुसार, पूर्वज अपने परिवार से मिलने के लिए चींटियों के रूप में आते हैं। ऐसे में उन्हें भगाने की जगह चींटियों को आटा खिलाना अच्छा माना जाता है।


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