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परशुराम अवतार

परशुराम ने क्यों किया अपना माता का वध, जानें क्या है धरती को क्षत्रिय विहीन करने की असल कहानी


जब भी किसी भगवान के क्रोध और उग्र अवतार की बात आती है तो उसमें भगवान परशुराम का जिक्र पहले स्थान पर आता है। परशुराम अपने क्रोध और धरती को क्षत्रिय विहीन करने के लिए जगतभर में प्रसिद्ध हैं। उनके कोप से देव, दानव और मानव सभी डरते थे। परशुराम भगवान भगवान विष्‍णु के छठे अवतार थे, उनका नाम 7 चिरंजीवियों में भी आता है और वे आज भी इस धरती पर मौजूद हैं।
"भक्त वत्सल" का सदैव यही प्रयास रहा है कि हम आप तक सनातन धर्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं को सत्य और शास्त्रानुसार तथ्य के साथ पहुचा सकें। इसी क्रम में आज हम जानेंगे भगवान परशुराम जी के जन्म की कथा और उनके अवतार से जुड़ी सभी शास्त्र सम्मत बातें।


भगवान परशुराम के जन्म की कथा

 
भगवान परशुराम जी का जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। परशुराम जी माता का नाम रेणुका और पिता ऋषि जमदग्नि हैं। शुरुआत में माता-पिता ने इनका नाम राम रखा था, लेकिन आगे चलकर इन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर शिव ने राम को कई शक्तिशाली अस्‍त्र-शस्‍त्र प्रदान किए। इन शस्त्रों में जो सबसे दिव्य और शक्तिशाली अस्त्र था वो फरसा यानी परशु था। परशु धारण करने के बाद ही राम ‘परशुराम’ के नाम विख्यात हुए। परशुराम के चार भाई भी थे जिनके नाम  रुक्मवान, सुखेण, वसु और विश्‍वानस हैं। परशुराम का जन्म स्थला मप्र के इंदौर से 90 कि.मी. दूरी पर है, यहां नर्मदा नदी के किनारे स्थित महेश्वर के जानापाव है जहां भगवान परशुराम ने जन्म लिया था।


धरती को किया 21 बार क्षत्रिय विहीन किया


ब्राह्राण कुल में जन्मे परशुराम बचपन से ही क्रोधी स्‍वभाव के थे। उन्होंने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए धरती को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर दिया था। दरअसल मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे महिष्मती (महेश्वर) शहर बसाने वाले राजा महिष्मंति के कुल में आगे चलकर कनक का जन्म हुआ। कनक के चार पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र कृतवीर्य जब महिष्मती के राजा बने तो परशुराम जी के पूर्वज इनके राज पुरोहित थे। ऐसे में परशुराम जी के पिता जमदग्नि ॠषि का राजा कृतवीर्य बड़ा सम्मान करते थे। राजा कृतवीर्य के पुत्र अर्जुन (कार्त्तवीर्यार्जुन) को भगवान दत्तात्रेय से वरदान मिला था कि युद्ध के समय उनके पास हजार हाथों का बल होगा जिसकी वजह से इनका एक नाम सहस्त्रार्जुन भी हुआ। सहस्त्रार्जुन रावण से भी अधिक बलवान थे। एक बार सहस्त्रार्जुन परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देख मोहित हो गए और उसे बलपूर्वक राजमहल ले गए। जब अफने पित की आज्ञा पर परशुराम जी गाय वापस लाने के लिए गए तो उन्हें सहस्त्रार्जुन से युद्ध करना पड़ा। जिसमें परशुराम जी ने सहस्त्रार्जुन की भुजाएं काट दी और उनका वध कर दिया। 


जब ये बात सहस्त्रार्जुन के पुत्रों को पता चली तो अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया। अपने पति की मौत से व्याकुल होकर रेणुका भी अपने पति की चिताग्नि में कूद गईं और सती हो गईं। इस घटना से परशुराम जी का मन बहुत क्रोधित हो गया और उन्होंने सहस्त्रार्जुन के वंश का नाश करने की प्रतिज्ञा ले ली। इस प्रतिज्ञा के बाद उन्होंने 21 बार क्षत्रियों से युद्ध किया और उन्हें परास्त कर धरती को 21 बार क्षत्रिय विहिन कर दिया। सहस्त्रार्जुन की समाधि एवं मंदिर महेश्वर में आज भी स्थित है। 


परशुराम जी ने किया था अपनी ही माता का वध


श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि एक बार परशुराम जी के पिता ने उनकी माता को हवन करने के लिए गंगा जल लेने भेजा। जब रेणुका जल लेने गईं तो उन्होंने गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करते देखा और वह मोहित हो गईं, जिसकी वजह से जल लाने में देर होई। इस बीच हवन काल समाप्त हो गया जिससे मुनि जमदग्नि बहुत क्रोधित हुए और पत्नी को आर्य मर्यादा के विरुद्ध आचरण करने पर दंड देने का प्रण कर बैठे। उन्होंने अपने पांच पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी, लेकिन परशुराम के चार भाईयों ने ऐसा करने से मना कर दिया। जिसके बाद परमपित्र भक्त परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का वध कर दिया। कुछ देर बाद जब जमद्गि ऋषि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने परशुराम की पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा, जिसके बाद अपने पिता से वरदान में परशुराम ने मां के प्राण मांग लिए और माता रेणुका को दोबारा जीवित करा लिया।


भगवान परशुराम के रौद्र और गुस्सैल स्वभाव का कारण!


भगवान परशुराम जी के गुस्से और क्रोध का कारण भृगु ऋषि का श्राप है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ, सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने और अपनी माता दोनों के लिए पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना की। महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल देते हुए उन्हें खाने का विधान भी बताया। इस नियम के अनुसार ऋतु स्नान के बाद सत्यवती को गूलर के वृक्ष का आलिंगन कर फल खाना था, वहीं उनकी माता को पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद फल का सेवन करना था। लेकिन सत्यवती व उनकी मां नियम भूल गईं और दोनों ने गलत वृक्षों का आलिंगन कर लिया।


नियमों में हुई गलती से क्रोधित होकर महर्षि भृगु ने श्राप दिया कि तेरा पुत्र ब्राह्मण होगा लेकिन गुण क्षत्रिय के होंगे और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होगा और गुणों से ब्राह्मण होगा। तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से कहा कि यह सब भूलवश हुआ है सो मेरे पुत्र की जगह पौत्र मतलब पोता क्षत्रिय गुण वाला हो। मुनि ने उनकी बात मानते हुए तथास्तु कहा। समय बीतने पर सत्यवती ने जमदग्रि मुनि को जन्म दिया। जिनका विवाह रेणुका से हुआ। इन दोनों के 5 पुत्रों में सबसे छोटे परशुराम जी उसी श्राप के कारण क्रोधी और गुस्सैल स्वभाव के क्षत्रीय गुण वाले ब्रह्माण हुए।


परशुराम जी से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य


  • भगवान कृष्‍ण को सुदर्शन चक्र परशुराम जी ने ही दिया था। द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्‍ण जब शिक्षा ग्रहण करने के बाद परशुराम जी से भेंट करने पहुंचे तो परशुराम जी ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया जिसके द्वारा करुणावतार में भगवान विष्णु ने अनेकों दुष्‍टों और दानवों का वध किया। वहीं रामावतार में परशुराम जी ने भगवान राम को शारंग नाम का धनुष दिया था।
  • परशुराम जी के गुरु शिव हैं। वहीं विश्वामित्र और ऋचीक को भी इनका गुरु कहा गया है। परशुराम जी भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण के गुरु थे।
  • एक बार गणेश जी ने परशुराम जी को भगवान शिव के दर्शन करने से रोक दिया था, तभी क्रोध में आकर परशुराम जी ने अपने परशु से गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया था। तभी से गणेश जी का नाम एकदंत पड़ा।
  • विष्णु के अवतार परशुराम जी सप्त चिरंजीवियों में से एक है। लेकिन भगवान परशुराम जी की पूजा नहीं आह्वान किया जाता है। इसके पिछे कारण यह है कि परशुराम जी की उग्रता, तेजस्व और ऊर्जा को सामान्य प्राणी संभाल नहीं पाएगा, ऐसे में उनकी पूजा साधारण मानव द्वारा नहीं की जाती।

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