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प्रयागराज में महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हो रहा है। सभी 13 अखाड़े शाही स्नान के लिए पहुंच गए हैं।लेकिन महिलाओं का एक अखाड़ा बेहद चर्चा में बना हुआ है। बता दें कि महिलाओं के परी अखाड़े को प्रयाग महाकुंभ की व्यवस्थाओं से खुश नहीं है।सरकार ने अखाड़े को सेक्टर-12 में भूमि आवंटित की थी। लेकिन जगह का मुआयने करने के बाद अखाड़े की महिला संतों ने इस पर सख्त नाराजगी जताई। हालांकि लंबे विवाद के बाद बड़े साधु संतों के बीच हुई बातचीत में समाधान निकाला गया।
यह पहली बार नहीं है, जब कुंभ में जगह न मिलने पर परी अखाड़े ने नाराजगी जाहिर की हो। इससे पहले 2019 में भी सरकार ने परी अखाड़े को जमीन आवंटित नहीं की थी ।इसके बाद अखाड़ा हाईकोर्ट पहुंचा और सरकार को जमीन आवंटित करनी पड़ी।
चलिए आपको लेख के जरिए परी अखाड़े और इसकी स्थापना से जुड़े विवाद के बारे में बताते हैं। साथ ही आपको यह भी बताते हैं कि महिलाओं का अखाड़ा बनाने की जरूरत क्यों पड़ी।
शैव संप्रदाय के 10 अखाड़ों में से सिर्फ दो अखाड़ों में ही महिलाओं को प्रवेश मिलता है। इसी कारण से महिलाओं को अपने एक अखाड़े की जरूरत आन पड़ी। इसी के चलते 2013 में प्रयागराज में परी अखाड़े की स्थापना की गई। 50 से अधिक महिला संतों की मौजूदगी में संगम पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ गंगा पूजन हुआ और महिला शंकराचार्य त्रिकाल भवंता ने 'श्रीसर्वेश्वर महादेव बैकुंठ धाम मुक्ति द्वार अखाड़ा' (परी) नामक महिला अखाड़ा की घोषणा की।स्थापना के दौरान अखाड़े को साधु संतों और महामंडलेश्वरों का भारी विरोध भी झेलना पड़ा। हालांकि महिला साधुओं का कहना था कि भगवान आदि शंकराचार्य ने 4 अखाड़े बनाए थे। धीरे धीरे यह 13 हो गए। ऐसे में 14 वां अखाड़ा बनने पर विवाद नहीं होना चाहिए।
अखाड़े के घोषणापत्र के मुताबिक आदिशक्ति वेदमाता गायत्री को अखाड़े की देवी और भगवान दत्तात्रेय को अखाड़े के आचार्य हैं। वहीं इसका मुख्यालय इलाहाबाद में अरैल स्थित श्री सर्वेश्वर महादेव बैकुंठ धाम मुक्ति द्वार पर है। जानकारी के मुताबिक अखाड़े में 5000 से ज्यादा साध्वियां, संन्यासिनीऔर शिष्याएं हैं। इसकी संरचना भी अन्य अखाड़ों के समान ही है। अन्य अखाड़ों की तरह परी अखाड़े में भी एक गुरु या महंत होते हैं जो अखाड़े का नेतृत्व करते हैं। इसके अलावा, अखाड़े में साध्वियां, चेली जैसे कई अन्य सदस्य होते हैं।
परी अखाड़े की स्थापना का मुख्य उद्देश्य साध्वियों, संन्यासिनों, शिष्याओं और महिलाओं को शिक्षित-प्रशिक्षित करने का एक मंच प्रदान करना था।जहां वे धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकें और अपना आध्यात्मिक विकास कर सकें। इसके अलावा महिलाओं को धार्मिक शिक्षा प्रदान करना, समाज सेवा के लिए प्रेरित करना, आत्मनिर्भर बनाना जैसे कुछ और उद्देश्य भी थे। इसी कारण से अखाड़ा आज महिला साधुओं के लिए देशभर में कई सामाजिक उत्थान के कामों में भी लगा हुआ है।
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