नवरात्रि में करें 'राम रक्षा स्त्रोत' का पाठ, मिलेगा अद्भुत लाभ और बरसेगी असीम कृपा

सनातन धर्म में नारी शक्ति की पूजा के रूप में नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व है। नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा के साथ श्रीराम की पूजा व रामरक्षा का पाठ करना महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। इसका उल्लेख हिन्दू धर्म शास्त्रों में मिलता है। चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्र से भगवान राम का खास संबंध है। शारदीय नवरात्र की दशमी तीथि को भगवान राम ने रावण का वध किया था और धर्म की विजय प्राप्त की थी। कहा जाता है कि भगवान राम ने भी लंका विजय के लिए मां दुर्गा की आराधना की थी। उसी प्रकार चैत्र मास की नवरात्रि की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान राम का जन्म हुआ था।



नवरात्रि में क्यों विशेष है रामरक्षा स्तोत्र पाठ 


नवरात्रि शक्ति प्राप्त करने का पर्व है। माता सीता मां दुर्गा का ही स्वरूप है। ऐसे में रामरक्षा स्तोत्र पाठ करने से माता सीता की कृपा प्राप्त होती है। इसे पढ़ते से रामभक्त हनुमान जी भी प्रसन्न होते हैं।


किसने लिखी रामरक्षा स्तोत्र?


पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने ऋषि बुद्ध कोशिक को रामरक्षा स्तोत्र स्वप्न में सुनाया था, जिसे ऋषि ने स्मरण कर भोजपत्र पर इसे लिखा‌। रामरक्षा का उल्लेख रामायण, महाभारत में भी मिलता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह स्त्रोत रक्षा-कवच है। इसीलिए मान्यता है कि इस पाठ को नियमित करने से बिमारियों, आपदाओं के दुष्परिणाम नहीं होते हैं। 


नवरात्रि के दौरान इसका विशेष महत्व हो जाता है। नवरात्रि में किए गए अधिष्ठान अधिक प्रभावी हो जाते हैं। रामरक्षा स्तोत्र के प्रभाव से व्यक्ति के चारों ओर सुरक्षा कवच बनता है। तथा विपत्ति में रक्षा-कवच हर प्रकार से हमारी रक्षा करता है। नवरात्रि के नौ दिनों में पूरी श्रद्धा, शुद्धता और विधि विधान से प्रतिदिन ग्यारह बार रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से वह सिद्ध हो जाता है। जीवन में आने वाली सभी समस्याएं से रक्षा कवच की तरह यह हमारी रक्षा करता है।


रामरक्षा स्तोत्र का पाठ कैसे करना चाहिए?


- नवरात्रि में रामरक्षा स्तोत्र का पाठ शास्त्र सम्मत विधि से किया जाना चाहिए तभी इसका अभिष्ठ फल प्राप्त होता है।

- पाठ करने से पहले भगवान राम और माता सीता की पूजा करनी चाहिए।

- पाठ आरंभ करने से पहले इस मंत्र का स्मरण करना चाहिएI


अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि: श्री सीतारामचंन्द्रो देवता अनुष्टुप छंद: सीता शक्ति: श्रीमान हनुमान कीलकम श्री सीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोग:


- इसके बाद जल को छोड़कर भगवान राम का स्मरण कर इस मंत्र को पढ़ना आरंभ करें।

- रामरक्षा स्तोत्र पाठ में 38 श्लोक हैं, जिसमें अधिकांश अनुष्टुप छ्न्द में है।

- ग्यारह बार पाठ करने के दौरान एक कटोरी में सरसों के दाने लेकर उन्हें ऊंगलियों से घुमाते रहने से वे सिद्ध हो जाते हैं।

- उन दानों को घर के किसी पवित्र स्थान पर रख दें। यह दाने कोर्ट-कचहरी, यात्रा आदि में जाने के दौरान सुरक्षा कवच के रूप में रक्षा करते हैं।

- उसी प्रकार जल को भी सिद्ध किया जाता है। तथा इस जल को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।


रामरक्षा स्तोत्र से होते हैं अद्भुत लाभ

 

- नवरात्रि में नौ दिनों तक पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।

- इस पाठ के करने से व्यक्ति दीर्घायु, संतान, शांति, विजय,सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

- ऊँ राम ऊँ राम ऊँ राम ह्मी राम ह्मी राम श्री राम, राम नवमी पर इस मंत्र का जाप करने से सभी क्षेत्र में सफलता मिलती है।

- श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः इस मंत्र का जाप करने से सांसारिक, वैवाहिक जीवन की  परेशानी से मुक्ति मिलती है।


लेकिन याद रखें हमारे सनातन धर्म में ऋषि मुनियों द्वारा कहे गए मंत्रों व श्लोकों में अपार शक्ति है। किन्तु इसे पूर्ण पवित्रता से किया जाना चाहिए। मन में श्रृद्धा और सात्विक भाव से किया गया मंत्रोच्चार ही उचित परिणाम देता है।अनुचित उपयोग अनिष्ट करने के प्रयोजन से किया गया अनुष्ठान अभिष्ठ नहीं देता है।


श्री राम रक्षा स्त्रोत 


विनियोग: अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।श्रीमान हनुमान कीलकम ।श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः।


अथ ध्यानम्: ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम।वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥राम रक्षा स्तोत्रम्: चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्। एकैकमक्षरं पुंसां


महापातकनाशनम् ॥1॥ ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्। जानकीलक्ष्मणोपेतं


जटामुकुटमण्डितं ॥2॥ सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥


रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्। शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥


कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति। घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥


जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः। स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥


करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः। उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥8॥


जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः। पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥9॥


एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत। स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥


पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः। न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥


रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन। नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥


जगज्जैत्रैकमन्त्रेणरामनाम्नाभिरक्षितम्। यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥


वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत। अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥


आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः। तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥


आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्। अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16


तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ। पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥


फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥


शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्। रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥


आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥


सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥


रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली। काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥


वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः। जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥

इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः। अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥


रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥


रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम। राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥


रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥


श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,श्रीराम राम भरताग्रज राम राम। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥


श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि। श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥


माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी,रामो मत्सखा रामचन्द्रः। सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं,जाने नैव जाने न जाने ॥30॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥


लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥


मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥


कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम। आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥


भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥

रामो राजमणिः सदा विजयते,रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः। रामान्नास्ति परायणं परतरं,रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥


राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥


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