कर्नाटक में नवरात्रि की पूजन का एक नाम नाडा हब्बा, जानिए क्या है हाथियों के शाही जुलूस की परंपरा

दुर्गा पूजा यानी नाडा हब्बा समय होता है तो यहां का मौसम सुहाना बना हो जाता है। तापमान 23 से 24 डिग्री सेल्सियस की बीच होता है जिससे पूरे कर्नाटक की छठा बदली-बदली सी दिखती है। नाडा हब्बा कर्नाटक की विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि को भी प्रदर्शित करता है। घरों में पूजा से लेकर मंदिरों की भव्य सजावट, शाही जुलूस से लेकर और प्रदर्शनियों तक, कर्नाटक की नवरात्रि उत्सव हर कदम पर अनोखी और आकर्षक होती है।  


निकलता है शाही हाथियों का जुलूस


कर्नाटक के नवरात्रि उत्सव की सबसे खास और आकर्षक बात है शाही हाथियों का भव्य जुलूस। खासकर, मैसूर में नवरात्रि के समय हाथियों का शाही जुलूस निकाला जाता है, जिसमें राजा और रानी की शाही परंपराओं को जीवंत कर दिया जाता है। हाथियों को रंग-बिरंगे परिधानों और आभूषणों से सजाया जाता है। इस जुलूस का आकर्षण देखने के लिए देशभर से पर्यटक और श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह जुलूस कर्नाटक की ऐतिहासिक और शाही धरोहर की जड़ों को बखूबी दर्शाता है।


नवरात्रि यानी नाडा हब्बा 


कर्नाटक में नवरात्रि को स्थानीय रूप से नाडा हब्बा के नाम से पुकारा जाता है। नाडा हब्बा ना केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी राज्य का सबसे महत्वपूर्ण और भव्य पर्व है। यह उत्सव कर्नाटक राज्य का महत्पूर्ण उत्सव माना जाता है और इसे मनाने का तरीका भी विशिष्ट और आकर्षक है। इस दौरान कर्नाटक की पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर, इतिहास और परंपराओं को जीवंत रूप से प्रदर्शित किया जाता है, इससे राज्य के हर कोने में भव्यता और उत्साह का सुंदर माहौल कायम रहता है।


घरों में ऐसे मनाई जाती है नवरात्रि


कर्नाटक के लोग नवरात्रि को बड़े ही श्रद्धा और उल्लास के साथ अपने घरों में मनाते हैं। इस दौरान घरों को सजाया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना होती है। घरों में देवी की प्रतिमा स्थापित कर 09 दिनों तक विशेष पूजा की जाती है।  महिलाएं और बच्चे विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं और देवी की कृपा के लिए विशेष भजन और आरतियां गाई जाती हैं। नवरात्रि के नौ दिन कर्नाटक के हर घर में एक उत्सव का माहौल रहता है। 


मंदिरों और सांस्कृतिक स्थलों में रोशनी


नवरात्रि के दौरान कर्नाटक के प्रमुख मंदिरों, सांस्कृतिक स्थलों और नगरों को भव्य रूप से सजाया और रोशन किया जाता है। हर शहर और गांव में स्थानीय देवी-देवताओं के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है। इन धार्मिक स्थलों पर सजावट और रोशनी का दृश्य अद्वितीय होता है, जहां भक्त बड़ी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं। इस समय कर्नाटक के सभी मंदिर आस्था और श्रद्धा के केंद्र बन जाते हैं जो नवरात्रि की धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देते हैं। इस दौरान विभिन्न मेले और सांस्कृतिक प्रदर्शनियां भी लगाई जाती हैं। ये मेले कर्नाटक के गांवों और शहरों की संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रतिबिंब होते हैं। 


मैसूर की नाडा हब्बा कर्नाटक की शान


कर्नाटक में नवरात्रि का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण उत्सव मैसूर दशहरा या मैसूर नाडा हब्बा के नाम से प्रसिद्ध है। मैसूर का दशहरा कर्नाटक के नवरात्रि उत्सवों में सबसे भव्य और लोकप्रिय रूप से मनाया है। इस उत्सव की शुरुआत वाडियार शाही वंश के शासनकाल से हुई थी और तब से यह उकर्नाटक में नवरात्रि की पूजन का एक नाम नाडा हब्बा, जानिए क्या है हाथियों के शाही जुलूस की परंपरा


कर्नाटक में जबत्सव कर्नाटक की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन गया है। इस समय मैसूर का शाही महल अद्भुत रोशनी से सजा होता है। जो पूरे शहर को एकदम बदल देता है। महल में शाही परिवार द्वारा विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं, जो कर्नाटक के समृद्ध इतिहास और परंपराओं को जीवंत करते हैं।


लगती है गुड़िया प्रदर्शनी 


इसके अलावा मैसूर में नवरात्रि के अवसर पर हर साल गुड़िया प्रदर्शनी आयोजित की जाती है। जिसे बोम्बे हब्बा के नाम से जाना जाता है। इस प्रदर्शनी में देश की सांस्कृतिक धरोहर और कर्नाटक की पारंपरिक कला को दर्शाती गुड़ियाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यहां पुरानी और ऐतिहासिक मैसूरियन गुड़ियां भी प्रदर्शित की जाती हैं जिनमें से कुछ 100 साल से भी अधिक पुरानी होती हैं। इन गुड़ियों को 'पट्टाडा बॉम्बे' या 'शाही गुड़िया' कहा जाता है। इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी महिलाओं को शादी के समय सौंपा जाता है। इस परंपरा में एक बेटी को शादी के समय उसके परिवार से ये शाही गुड़िया सौंपी जाती हैं, जो ना केवल सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाती हैं बल्कि यह परिवार के सम्मान को भी दर्शाती हैं। 


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