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जगत जननी मां दुर्गा की आराधना के पावन पर्व नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा करने का विधान है। यह मैया के सबसे सुंदर स्वरूपों में से एक है। आदिशक्ति मां भवानी दुर्गा का अष्टम रूप बड़ा ही मनमोहक और मनभावन है। महागौरी मैय्या अपने अन्य रूपों की तुलना में बहुत अधिक गोरे वर्ण वाली है। तो भक्त वत्सल की नवरात्रि विशेषांक के दसवें लेख में जानिए मां के आठवें स्वरूप महागौरी के बारे में विस्तार से…….
अत्यंत गौरा रंग होने के कारण ही मैय्या को इस रूप में महागौरी नाम मिला। मान्यता है कि कठिन तपस्या के फलस्वरूप मां को यह गौर वर्ण प्राप्त हुआ है। इसी लिए इस सुंदर अवतार में मां उज्जवलता, धन ऐश्वर्य देने के साथ शारीरिक, मानसिक और सांसारिक दुःखों का निवारण करने वाली है। मां के इस स्वरूप की आयु आठ साल मानी गई है। इसलिए मैय्या का एक नाम अष्टवर्षा भवेद् गौरी भी है।
मां के सभी आभूषण और वस्त्र सफेद रंग के हैं। जिसके चलते मां श्वेताम्बरधरा कहलाईं है। मैय्या की 4 भुजाएं हैं और वो वृषभ यानी बैल पर सवार हैं। इस कारण मां का एक नाम वृषारूढ़ा भी है। मां के चार हाथों में से ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है। नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बांऐ हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ से मां वर मुद्रा में सबको आशिर्वाद दे रही है। मनभावन मुद्रा में मैय्या बहुत ही शांत है। महागौरी रूप में देवी करुणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं।
मैय्या ने इसी रूप में पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। तपस्या काल में मां का पूरा शरीर काला पड़ गया था। लेकिन जब भोलेनाथ मां की तपस्या से प्रसन्न हुए तो मैय्या के शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर दिव्य और कांतिमय बना दिया। फलस्वरूप मैय्या गौर वर्ण हो गईं और महागौरी के नाम से संसार में विख्यात हुईं।
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
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