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नवरात्रि मतलब हम सनातनियों के लिए मां की आराधना के पावन नौ दिन और विशेष तौर पर रात्रि। हर दिन मैय्या का एक नया रूप और उस रूप की आराधना। इस दौरान माता के भक्त अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार जग जननी मां भवानी का पूजन करते हैं और मैय्या को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा के स्वरूप में भक्तों के कष्ट दूर करने आती है। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक के छठे लेख में हम आपको बताते हैं कि मैय्या के इस चौथे स्वरूप की उपासना कैसे करें? और क्या है मां के इस अवतार की पावन कथा?
माँ की आठ भुजाएँ हैं। अष्टभुजा वाली दिव्य स्वरूप में देवी अपने सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृत कलश, चक्र तथा गदा धारण किए हुए हैं। वहीं मां के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जप की माला है। मां इस अवतार में भी शेर पर सवार है।
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
देवी के चौथे स्वरूप कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। नवरात्रि के चौथे दिन साधक का मन 'अनाहत' चक्र में स्थित होता है। आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि करने वाली माँ कूष्माण्डा बहुत जल्द प्रसन्न होने वाली हैं। माँ कूष्माण्डा मनुष्य को सभी मुसीबतों से बचाकर सुख, समृद्धि देने वाली है। माँ कूष्मांडा अनेकों सिद्धियों और निधियों की दात्री भी है। सिंह पर सवार मां कुष्मांडा का वास सुर्यमंडल के भीतरी लोक में है।
मान्यता है कि मां ने अपनी मंद और हल्की मुस्कान से अंड अर्थात ब्रह्मांड की रचना की है। इसी कारण मैय्या को कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा गया। इसलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति के रूप में भी पूजा गया है। कूष्मांडा एक संस्कृत शब्द है जो तीन शब्दों से मिलकर बना है। इसमें कु का अर्थ है थोड़ा, ऊष्मा का अर्थ है गर्मी या ऊर्जा और अंडा का अर्थ है 'ब्रह्मांडीय अंडा। कुष्मांडा शब्द एक अर्थ 'थोड़ा और अंडाकार ऊर्जा पिंड' भी होता है। सूर्य लोक की निवासिनी मां कुष्मांडा को प्रकाश और ऊर्जा की देवी कहा जाता है।
सर्वप्रथम कलश पूजा करें।
फिर सभी देवी देवता का आह्वान करें।
तत्पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करें।
देवी की पूजा की शुरूआत हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करने से करें।
इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें।
वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां कूष्माण्डा की पूजा करें।
पूजा के दौरान आह्वान, आचमन करें।
पूजा सामग्री में सौभाग्य का सामान, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा आदि रखें।
आरती के बाद प्रदक्षिणा और मंत्र पुष्पांजलि से पूजन संपन्न करें।
माँ कूष्माण्डा के पूजन वाले दिन बड़े मस्तक वाली तेजस्वी विवाहित स्त्री का पूजन बहुत लाभदायक बताया गया हैं। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाने से मैय्या प्रसन्न होती हैं। साथ ही फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करने का विधान भी है।
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