नवीनतम लेख
छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी के दिन श्रीकृष्ण, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इनके अलावा इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का भी विधान है। ऐसा माना जाता है कि छोटी दिवाली पर यमराज के लिए तेल का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु टल जाती है और नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है।
भारत में विविधता और सांस्कृतिक उत्सव की भावना हमेशा जीवंत रहती है। यहां हर त्योहार अपने रीति-रिवाज, विश्वास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। दीपावली का त्योहार भी इसी का एक उदाहरण है। पांच दिनों के त्योहार में पांचों दिन के अलग-अलग महत्व और मान्यताएं हैं। इन्हीं पांचों दिनों में दीपावली से एक दिन पहले कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को हम छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी मनाते हैं। यह त्योहार आयु प्राप्ति, सौन्दर्य प्राप्ति और अकाल मृत्यु से बचाव का प्रतीक है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की विजय, मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान कुबेर की पूजा करते हैं। साथ में मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का भी विधान है। आइए जानते हैं कि छोटी दिवाली पर क्यों यमराज की पूजा करना हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण है।
छोटी दिवाली के दिन तेल का एक चौमुखा दीपक दक्षिण दिशा में यम के नाम से जलाया जाता है। इसके पीछे यमराज और यमदूतों से जुड़ी पौराणिक कथा है। जिसके अनुसार, एक दिन यमराज ने यमदूतों से पूछा था कि क्या तुम्हें कभी भी किसी प्राणी के प्राण हरण करते समय दुख हुआ है।
यमदूतों ने कहा कि एक बार हमें दुख हुआ था और वे बताते हैं कि हेमराज नाम का एक राजा था। जब उसके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि ये बच्चा अल्पायु है। विवाह के बाद इसकी मृत्यु हो जाएगी। ये बात सुनकर राजा ने पुत्र को अपने मित्र राजा हंस के यहां भेज दिया। राजा हंस ने बच्चे का पालन सबसे अलग रखकर किया। जब राजकुमार बड़ा हुआ तो एक दिन एक राजकुमारी उसे दिखाई दी और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद राजकुमार की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से दुखी होकर राजकुमारी, राजा हेमराज और उनकी रानी रोने लगे। विधाता को कोसने लगे। जब हम उस राजकुमार के प्राण हरण करने पहुंचे तो इन सभी का विलाप देखकर हमें बहुत दुख हुआ था। ये बात बताने के बाद यमदूतों ने यमराज से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे किसी प्राणी की अकाल यानी असमय मृत्यु न हो।
यमराज ने यमदूतों से कहा कि जो लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात दक्षिण दिशा में मेरा या मेरे यमदूतों का ध्यान करते हुए दीपक जलाते हैं। उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसी कथा की वजह से नरक चतुर्दशी की रात यमराज के लिए दीपदान किया जाता है।
इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश करके सूर्योदय से पहले स्नान करने का विधान है। स्नान के दौरान अपामार्ग (एक प्रकार का पौधा) को शरीर पर स्पर्श करना चाहिए। अपामार्ग को निम्न मंत्र पढ़कर मस्तक पर घुमाना चाहिए:
सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकदलान्वितम्।हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:।।
नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं:
ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:।
इस प्रकार तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना चाहिए। चाहे उनके माता-पिता गुजर चुके हो या जीवित हो। फिर देवताओं का पूजन करके शाम के समय यमराज को दीपदान करने का विधान है।
इस दिन सायं 4 बत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में अपना मुख करके घर के मुख्य द्वार पर रखें। आगे बताए गए मंत्र का जाप करें:
‘दत्तो दीप: चतुर्दश्यो नरक प्रीतये मया। चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा न्विमुक्तये।।’
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।