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हिंदुओं के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम महाकुंभ की शुरुआत में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। पहला शाही 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा पर होने वाला है। इसमें सबसे पहले नागा साधु स्नान करेंगे। ये महाकुंभ का विशेष आकर्षण है, जिन्हें देखने के लिए भक्त बड़ी संख्या में आते हैं। इनका जीवन बेहद रहस्यमी होता है, और यह सिर्फ महाकुंभ के दौरान ही दिखाई देते हैं। इसके बाद ये वापस तप करने के लिए जंगलों और पहाड़ों पर चले जाते हैं। नागा साधुओं का बड़ा ही वैभवशाली इतिहास रहा है। इन्होंने सनातन की रक्षा के लिए कई जंग लड़ी है। चलिए आज आपको नागा साधुओं के इसी इतिहास के बारे में बताते हैं।
नागा का अर्थ होता है नग्न। अपने नाम की तरह ये साधु-संत निर्वस्त्र रहते हैं और अपने शरीर पर भस्म रगड़ते हैं। इनका जुड़ाव प्रकृति से होता है और ये भगवान शिव के उपासक होते हैं। नागा साधुओं का जीवन त्याग, तपस्या और आत्मज्ञान का बेहतरीन उदाहरण है। हालांकि एक नागा साधु बनने के लिए दीक्षा की लंबी प्रक्रिया होती है। जिसके लिए बहुत सी चीजों को त्यागना पड़ता है।
नागा साधुओं की उत्पत्ति का इतिहास वैदिक काल से जुड़ा है। 8वीं शताब्दी में भगवान आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। इसी दौरान नागा साधुओं को भी संगठित किया गया। इसके बाद इन्हें अलग अलग अखाड़ों में विभाजित किया गया , जिससे यह धर्म और संस्कृति पर बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा हो सके।
नागा साधुओं ने आध्यात्मिक मोर्चो के साथ युद्ध के मैदान में अहम भूमिका निभाई है। इन्होंने सनातन की रक्षा के लिए कई जंगे लड़ी है। बता दें कि मुगल आक्रमणों के समय नागा साधुओं ने हिंदू तीर्थ स्थलों और मंदिरों की बचाने के लिए कई बार हथियार उठाए हैं और अपना रक्त बहाया है। उनकी संगठित सेना और युद्ध-कौशल ने कई बार धर्मस्थलों को विनाश से बचाया। इसके अलावा नागा साधुओं ने हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में हिस्सा लिया।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और लंबी होती है। इसके लिए व्यक्ति को अपने सांसारिक जीवन, परिवार, और संपत्ति का त्याग करना पड़ता है। इसके बाद उसे अखाड़े के गुरु दीक्षा देते हैं। नागा साधु बनने के लिए 12 साल के लिए पहाड़ों और जंगलों पर तप भी करना होता है, जिससे व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर सके।
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