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राजस्थान के धार्मिक स्थलों की परंपराएं और मान्यताएं सदियों पुरानी है जिनमें कई अनोखी विधियां देखने को मिलती है। टोंक, आमेर और नागौर के देवी मंदिरों की एक खासियत यह है कि यहां देवी मां को प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है। ये मंदिर भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। जहां मन्नतें पूरी होने की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में विशेष उत्सव और पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। जो भक्तों को आकर्षित करती है। आइए जानते हैं इन अनोखे मंदिरों और उनकी अद्भुत परंपराओं के बारे में…..
राजस्थान के दिव्य मंदिरों की पहचान ना केवल उनकी धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है। बल्कि, यह उनकी विशेष परंपराओं और रीतियों का भी प्रतीक है। यहां कुछ ऐसे मंदिर हैं जहां देवी मां को प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है। ये मंदिर राजस्थान की समृद्ध धार्मिक विरासत का हिस्सा हैं और इनकी मान्यताएं लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई हैं।
बता दें कि राजस्थान के इन 03 मंदिरों में देवी मां को शराब चढ़ाने की परंपरा इस राज्य की धार्मिक विविधता और मान्यताओं का प्रतीक है। आमेर, नागौर और टोंक के ये मंदिर ना केवल भक्तों के आस्था का केंद्र हैं। बल्कि, इनकी अनूठी परंपराएं इन्हें खास बनाती हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां भक्त अपनी मुरादों को लेकर आते हैं और देवी मां की कृपा पाने के लिए इन अनूठी रीतियों का पालन करते हैं।
जयपुर के पास स्थित आमेर किले के परिसर में शीला माता का एक विशेष मंदिर है। जो ना सिर्फ अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है बल्कि देवी को शराब चढ़ाने के लिए भी जाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना जयपुर के राजा मानसिंह ने की थी। मान्यता है कि राजा मानसिंह एक युद्ध में हार गए थे और जीत के लिए उन्होंने देवी काली से प्रार्थना की थी। इसके बाद एक रात देवी मां उनके सपने में प्रकट हुईं और उन्हें युद्ध में विजय होने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद राजा मानसिंह ने देवी काली के रूप में शीला माता की प्रतिमा स्थापित की थी। यहां नवरात्रि के समय विशेष पूजा अर्चना होती है और देवी को शराब का प्रसाद अर्पित किया जाता है। इस मंदिर में भक्त अपनी श्रद्धा के साथ आते हैं और देवी मां से अपनी मुरादें मांगते हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवी मां प्रसाद के रूप में शराब स्वीकार कर भक्तों की मन्नतें पूरी करती हैं। मंदिर की यह परंपरा इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है।
राजस्थान के नागौर जिले के मेड़ता के पास स्थित भुवाल माता का मंदिर भी इसी परंपरा का हिस्सा है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और यहां भी शराब का भोग माता को चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि जब कोई भक्त माता के समक्ष श्रद्धा से शराब का प्याला अर्पित करता है तब माता प्रसन्न होकर उसे स्वीकार कर लेती हैं। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि शराब का प्याला देवी के सामने रखने के बाद वह तुरंत खाली भी हो जाता है। जो भक्तों के लिए एक पहेली का विषय है। बता दें कि यहां चढ़ाई गई बची हुई शराब पास के भैरव मंदिर में भी चढ़ाई जाती है। जो मंदिर की धार्मिक परंपराओं का हिस्सा है। भुवाल माता के मंदिर की स्थापना को लेकर एक अनूठी कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण डाकुओं ने करवाया था, जब एक पेड़ के नीचे देवी मां स्वयं प्रकट हुई थीं। डाकुओं ने इस स्थान को धार्मिक स्थल के रूप में मान्यता दी और यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।
टोंक जिले के दूणी गांव में स्थित दुणजा माता का मंदिर करीब 900 साल पुराना है और यह भी देवी मां को शराब चढ़ाने की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां देवी मां पाषाण के रूप में प्रकट हुई थीं। टोंक से 40 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर में देवी मां को श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शराब का भोग चढ़ाते हैं। कई वर्षों पहले तक यहां खुले में शराब चढ़ाई जाती थी लेकिन अब इस मंदिर में पुजारी की ओर से परदे के पीछे यह परंपरा निभाई जाती है। इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों का विशेष जमावड़ा होता है और माता के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यह मंदिर अपनी विशिष्टता और मान्यताओं के कारण राजस्थान के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है।
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