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माता चंद्रघंटा का अलौकिक स्वरूप

बड़ा ही अलौकिक है माता का चंद्रघंटा स्वरूप, जानिए क्यों मिला मैय्या को यह नाम?


भक्त वत्सल की नवरात्रि विशेष सीरीज के पांचवे अंक में आज हम आपको माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप आदि शक्ति माता चंद्रघंटा के बारे में बताने जा रहे है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की उपासना का विधान है। लोकवेद में वर्णित माता की महिमा के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से मनुष्य को अलौकिक और दिव्य शक्तियों के दर्शन का लाभ मिल सकता है। शांति और कल्याण की स्वरुपा मां चंद्रघंटा का नाम मस्तक पर घंटे के आकार के अर्धचंद्र के कारण पड़ा है। तो आइए जानते हैं माता चंद्रघंटा के बारे में विस्तार से।


ऐसा है मैय्या चंद्रघंटा का स्वरूप 


माता चंद्रघंटा का अलौकिक रूप मस्तक पर अर्ध चंद्रमा से सुसज्जित है। चंद्रघंटा देवी का रंग स्वर्ण के समान चमकदार है। माता के तीन नैत्र और दस हाथ हैं। इन दस भुजाओं में खड्ग, खप्पर, गदा, तलवार, चक्र, धनुष-बाण आदि शस्त्र सुशोभित होते हैं। सिंह पर सवार मैय्या इस रूप में युद्ध के लिए तैयार मुद्रा में है। माँ का यह स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन फिर भी मां इस रूप में युद्ध हेतु तैयार नजर आती हैं। मैय्या का स्वर्ण या अग्नि जैसा वर्ण ज्ञान की जगमगाहट का प्रतीक है।


धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां चंद्रघंटा न्याय व अनुशासन की देवी हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां चंद्रघंटा देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं। शिव जी से विवाह के बाद मां ने अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किया था। वहीं मैय्या की सवारी सिंह धर्म का प्रतीक माना गया है।


पुराणों में माता चंद्रघंटा 


मैय्या के इस अवतार को लेकर कथा है कि जब स्वर्ग पर राक्षसों ने हमला किया तब देवताओं का कष्ट दूर करने के लिए जगत जननी मां दुर्गा ने चंद्रघंटा माता का रूप धारण किया। इस रूप में मैय्या ने महिषासुर नामक दैत्य का संहार कर देवताओं को भय मुक्त किया। अपार शक्तिशाली दैत्य महिषासुर स्वर्ग लोक पर आधिपत्य स्थापित करने के लक्ष्य से देवताओं से युद्ध कर रहा था। महिषासुर की शक्ति के आगे परास्त देवताओं ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शरण ली। देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए त्रिदेवों को क्रोध आया और उसी क्रोध की ज्वाला से माता चंद्रघंटा का अवतार हुआ।


माता को मिली दिव्य शक्तियां 


भगवान शिव ने माता चंद्रघंटा को अपना त्रिशूल दिया, वहीं श्री हरि विष्णु जी ने उन्हें अपना चक्र अर्पित किया। भगवान सूर्य का तेज तलवार के रुप में और सिंह से सुसज्जित मैया को इंद्र ने अपना घंटा भेंट किया। इन दिव्य शक्तियों और अस्त्र शस्त्र के साथ त्रिनेत्र धारी मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का मर्दन कर स्वर्ग लोक देवताओं को सौंपा।


मां चंद्रघंटा की आराधना से होता है यह लाभ 


मैय्या का यह स्वरूप समस्त पापों का नाश करने वाला है। मैय्या चंद्रघंटा बाधाएँ दूर कर कष्टों का निवारण करती हैं। माता का यह रूप सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय होने का भी प्रतीक है। मैय्या के मस्तक पर विराजमान घंटे की ध्वनि प्रेतबाधा से रक्षा करती है। मां चंद्रघंटा की भक्ति से वीरता, निर्भयता, सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है। 


ऐसे करें चंद्रघंटा माता की आराधना


माता की पूजा के लिए सबसे पहले कलश की पूजा करें ।


फिर गणेश, लक्ष्मी, विजया, कार्तिकेय, देवी सरस्वती सहित सभी देवी देवताओं का आह्वान करें।


इसके बाद मां की आराधना जया नामक योगिनी के नाम से करें।


इसके बाद मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना करें खीर और शहद का भोग लगाएं।


 यह भी ध्यान रखें 


नवरात्रि में तृतीया के दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा में दूध मुख्य सामग्री के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।


 पूजन के बाद वह दूध ब्राह्मण को देना चाहिए ।


 इस दिन सिंदूर लगाना अति शुभ माना जाता है।


देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए भूरे रंग के कपड़े पहन कर पूजा करनी चाहिए।


इसके अलावा उनके वाहन सिंह के रंग स्वर्ण रंग के कपड़े पहनना भी शुभ है। 


भोग में मैय्या को सफेद चीज जैसे दूध, खीर या दूध से बनी मिठाईयां पसंद है। इसके अलावा माता चंद्रघंटा को शहद का भोग भी बहुत प्रिय है।


चंद्रघंटा माता का पसंदीदा रंग लाल है। 


वहीं माता को  गुलाब और कमल के पुष्प बहुत प्रिय हैं। 


चंद्रघंटा मां की आराधना इन मंत्रों से करें 


ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||

भक्तवत्सल की नवरात्रि विशेष सीरीज के पांचवे लेख में इतना ही, ऐसे ही माता के अलग-अलग स्वरूप की विशेष जानकारी के लिए जुड़े रहिए भक्तवत्सल के साथ

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