कौन होती हैं महिला नागा साधु

निर्वस्त्र नहीं रहतीं महिला नागा संन्यासी, जानिए इनकी दैनिक क्रियाविधि से जुड़ी रोचक बातें


मकर संक्राति पर  14 जनवरी को  महाकुंभ का पहला अमृत (शाही) स्नान हुआ। इस दौरान 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई। शाही स्नान सुबह 6 बजे शुरू हुआ और शाम 6 बजे खत्म हुआ। इस दौरान 13 अखाड़े के साधु संतों ने संगम में डुबकी लगाई।   स्नान की शुरुआत निर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं ने की। हाथों में हथियार और ढोल-नगाड़े बजाते हुए नागा साधुओं का जत्था स्नान करने के लिए पहुंचा। इस जत्थे में  कई बाल नागा साधुओं के साथ महिला नागा साध्वियां भी आकर्षण का केंद्र बनी। जिन्होंने भीड़ का अपनी तरफ ध्यान खींचा। चलिए आज आपको लेख के जरिए इन्हीं नागा साध्वियों के बारे में बताते हैं।



कैसे बनती हैं महिला नागा साधु?


महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी पुरुषों की तरह ही है।  उन्हें सांसारिक जीवन से मोह त्यागना पड़ता है , अपना पिंड करना होता है। इसके अलावा  महिलाओं को भी कठिन तप करना पड़ता है,जिसमें अग्नि के सामने बैठकर तपस्या करना,  जंगलों या पहाड़ों पर रहना शामिल है। इसके साथ ही उन्हें  परीक्षा के तौर पर 6 से 12 साल तक सख्त ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इसके बाद ही गुरु उन्हें नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं।  नागा साधु बनने के बाद महिलाएं शरीर पर भस्म लगाती हैं। और उन्हें माता कहा जाता है। उन्हें माथे पर तिलक लगाया जाता है।



महिला नागा साधुओं के वस्त्र 


पुरुषों की तरह महिला नागा संन्यासी निर्वस्त्र नहीं रहती है। दीक्षा मिलने के बाद महिला संन्यासी को सांसारिक कपड़ा छोड़कर अखाड़े से मिला पीला या भगवा वस्त्र पहनना होता है।नइसके अलावा वे  ये , लाल , पीला, गेरुआ रंग का एक वस्त्र भी धारण करती है, जो सिला नहीं होता है।इसे गंती कहते हैं।  इसके अलावा उन्हें एक ही वस्त्र पहनने की अनुमति होती है। साथ ही वे तिलक लगाती हैं और जटाएं धारण करती हैं।



श्रीमहंत कही जाती है सबसे सीनियर नागा साधु 


महिलाओं की सबसे सीनियर नागा संन्यासी को अखाड़े में श्रीमहंत की पदवी दी जाती है।  इसके अलावा जिन महिला को श्रीमहंत के लिए चुना जाता है , उन्हें शाही स्नान के दिन पालकी में लाया जाता है। श्रीमहंत को अखाड़े की ध्वजा और डंका लगाने का अधिकार होता है।


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