महाकुंभ में आया मात्र 8 साल का नागा संन्यासी

महाकुंभ में 8 साल के नागा संन्यासी गोपाल गिरी, हाथ में धारण करते है डमरू और फरसा


प्रयागराज का महाकुंभ अपने आप में एक अद्भुत नजारा है। लाखों श्रद्धालुओं के साथ-साथ, हजारों साधु-संत भी यहां आते हैं। इनमें नागा साधुओं का अपना ही महत्व है। इनका कठोर तप और त्याग सभी को प्रेरित करता है। इस बार के महाकुंभ में एक ऐसा नजारा देखने को मिल रहा है जो सभी को चकित कर रहा है। 


मात्र आठ साल का एक बालक नागा साधुओं के बीच बैठा है और लोगों का आशीर्वाद दे रहा है। यह बालक अपने जूना अखाड़े का ही है और कहा जा रहा है कि यह इस महाकुंभ में सबसे कम उम्र का नागा साधु है। इसकी सादगी और निर्मलता लोगों को बहुत प्रभावित कर रही है। 14 जनवरी को होने वाले पहले शाही स्नान में यह बालक अपने अखाड़े के आगे-आगे चलेगा। इस बालक का यह रूप सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 


युवा संन्यासी बने महाकुंभ के मुख्य आकर्षण का केंद्र


प्रयागराज महाकुंभ में लाखों की भीड़ में एक ऐसा बालक था जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। आठ वर्ष की कोमल उम्र में जहां अन्य बच्चे खिलौनों में मस्त रहते हैं, वहां गोपाल गिरि ने नागा संन्यासी का व्रत धारण कर धर्म और अध्यात्म के मार्ग को अपना लिया था।


कड़कड़ाती ठंड में भी वे निर्वस्त्र रहते, गले में रुद्राक्ष की माला, हाथ में त्रिशूल या फरसा और दूसरे हाथ में भोलेनाथ का डमरू लिए वे एक साधु की तरह विचरण करते थे। इस नन्हे संन्यासी का ज्ञान देखकर लोग दंग रह जाते थे। मात्र आठ वर्ष की उम्र में वे मोह-माया के त्याग और ईश्वर की भक्ति के बारे में इतनी गहन बातें करते थे कि सुनने वाले भाव विभोर हो उठे।


बाल नागा गोपाल गिरी की कहानी 


गोपाल गिरि मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के रहने वाले हैं. जब वह सिर्फ तीन साल के थे, तभी उनके माता-पिता ने उन्हें गुरु को सौंप दिया था। अखाड़े ने पहले उन्हें शस्त्र और शास्त्र का शुरुआती ज्ञान दिया और फिर नागा संन्यासी के तौर पर उनकी दीक्षा हुई। नागा संन्यासी बनने के बाद गोपाल गिरि का परिवार और बाहरी दुनिया से नाता पूरी तरह टूट चुका है. उनका बाल मन कभी न तो विचलित होता है और ना ही मोह पालता है, लेकिन परिवार के लोग जब मिलने आते हैं तो वह उन्हें मना भी नहीं करते । कभी कभार फोन पर भी बात कर लेते हैं।


गोपाल गिरि के मुताबिक उन्हें न तो खिलौनों से खेलने का शौक है और ना ही वह सांसारिक दुनिया में वापस लौटना चाहते हैं ।उनका कहना है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए समर्पित कर दिया है. इससे उनके मन को जो सुकून मिलता है, वह कहीं और नहीं मिल सकता। वह सन्यासियों के सबसे बड़े और वैभवशाली जूना अखाड़े से जुड़े हुए हैं। जूना अखाड़े में छावनी के बाहर धूनी रमाते नागा साधुओं के बीच वह न सिर्फ शास्त्रार्थ करते हैं बल्कि भजनों की कुछ पंक्तियां भी गुनगुनाते रहते हैं।


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