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महाकुंभ के अमृत स्नान की शुरुआत हो चुकी है। बता दें कि 13 जनवरी से 26 फरवरी तक यह भव्य महाकुंभ चलेगा। धार्मिक मान्यता है कि 144 सालों बाद इस तरह का शुभ योग इस बार के महाकुंभ में बना है। इसमें अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत आए हुए हैं। हर बार की तरह इस बार भी नागा साधु भी पहुंचे हुए हैं। नागा साधुओं को लेकर लोगों में उत्सुकता है। तो आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं कि इस बार के महाकुंभ में आए नागा साधु कब और कहां जाएंगे और फिर दुबारा कब दिखाई देंगे।
पूरे शरीर पर भस्म, हाथों में त्रिशूल लेकर चलने वाले नागा साधु महाकुंभ के आकर्षण होते हैं।
कुंभ में ज्यादातर नागा साधु दो विशेष अखाड़ों से आते हैं। एक अखाड़ा है वाराणसी का महापरिनिर्वाण अखाड़ा और दूसरा है पंच दशनाम जूना अखाड़ा। इन दोनों अखाड़ों के नागा साधु कुंभ का हिस्सा बनते हैं। बता दें कि महाकुंभ का समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा। 26 फरवरी के बाद से अगले कुंभ तक फिर ये नागा साधु नजर नहीं आएंगे। दरअसल, ये सभी नागा साधु महाकुंभ के समाप्त होने पर अपने-अपने अखाड़ों में वापस लौट जाएंगे। वहीं, अब अगला कुंभ नासिक में गोदावरी नदी के तट पर साल 2027 में आयोजित होगा। बता दें कि गोदावरी नदी पर साल 2015 में भी जुलाई से सितंबर तक कुंभ मेला आयोजित किया गया था।
आखाड़े भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित होते हैं और नागा साधु वहां ध्यान, साधना और धार्मिक शिक्षाओं का अभ्यास करते हैं। वहीं कुछ नागा साधु काशी, हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन या प्रयागराज जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर भी निवास करते हैं।
बता दें कि कुंभ का पहला शाही स्नान नागा साधु करते हैं और उसके बाद ही अन्य श्रद्धालुओं को कुंभ स्नान की अनुमति होती है। नागा साधु अन्य दिनों में दिगम्बर स्वरूप यानी निर्वस्त्र नहीं रहते हैं। चूंकि, समाज में दिगम्बर स्वरूप स्वीकार्य नहीं है। इसलिए, यह साधु कुंभ के बाद गमछा पहनकर अपने-अपने आश्रमों में निवास करते हैं। दिग्मबर का अर्थ है धरती और अम्बर। नागा साधुओं का मानना है कि धरती उनका बिछौना और अम्बर उनका ओढ़ना है। इसलिए, वे कुंभ की अमृत वर्षा के लिए नागा स्वरूप में ही दिखाई देते हैं।
जब कुंभ की समाप्ति हो जोती है तो इसके बाद नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाते हैं। इन अखाड़ों में नागा साधु ध्यान और साधना करते हैं, साथ ही धार्मिक शिक्षा भी देते हैं। इनकी जीवनशैली तपस्वी की होती है। वहीं, बहुत से नागा साधु हिमालयों, जंगलों और अन्य एकांत स्थानों में तपस्या करने चले जाते हैं। जबकि, बहुत से नागा साधु शरीर पर भभूत लपेटे हिमालय में तपस्या करने हैं। यहां वे कठोर तप करते हैं और फल-फूल खाकर जीवनयापन करते हैं।
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