महाकुंभ में आए टार्जन बाबा की कहानी

महाकुंभ में आए टार्जन बाबा हो रहे हैं वायरल, कार में ही रहते हैं; उसी में सोते हैं 


यूपी के प्रयागराज में संगम नगरी में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन, महाकुंभ, आयोजित होने जा रहा है। इस ऐतिहासिक मेले की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। गंगा की पवित्र धरा पर होने वाले इस महाकुंभ में देश-विदेश से साधु-संतों का लगातार आना-जाना लगा हुआ है। कई नामी बाबाओं ने पहले ही अपना डेरा जमा लिया है।

मध्य प्रदेश से आए टार्जन बाबा अपनी 52 साल पुरानी एंबेसडर कार के साथ महाकुंभ में एक अनूठा आकर्षण बने हुए हैं। अपनी इस विंटेज कार के साथ वे न केवल मेले में पहुंचे हैं बल्कि पिछले 50 वर्षों से इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं। उनकी यह पुरानी कार मेले में आने वाले लोगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में तार्जन बाबा की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


महाकुंभ में वायरल तार्जन बाबा कौन हैं?


 
महाकुंभ में पहुंचे टार्जन बाबा, जिनका असली नाम महंत राजगिरी है, मध्य प्रदेश के इंदौर से आए हैं। वे अक्सर कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। एक संन्यासी के रूप में, बाबा ने घर-परिवार और सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया है। उनके पास एक 52 साल पुरानी एंबेसडर कार है, जिसमें वे रहते हैं और इसी कार से महाकुंभ पहुंचे हैं। एक साक्षात्कार में बाबा ने बताया कि उनके माता-पिता संतान प्राप्ति के लिए एक मान्यता माने थे जिसके अनुसार उनका पहला पुत्र किसी संत को समर्पित किया जाएगा। इसी वजह से उन्हें बचपन में ही संन्यास लेना पड़ा।


टार्जन बाबा की एंबेसडर कार है विनटेज



70 से अधिक उम्र के टार्जन बाबा की एंबेसडर कार एक 1972 मॉडल की गाड़ी है, जिसे उन्होंने सैफ्रन रंग में रंगवाया है। यह कार उनके लिए सिर्फ एक यातायात का साधन नहीं है, बल्कि उनके जीवन का एक अभिन्न अंग है। बाबा ने इस कार को 40 साल पहले मुरादाबाद से 40,000 रुपये में खरीदा था। पिछले चार कुंभों से वे इसी कार में आ रहे हैं और यहीं रहते हैं। यह कार एक बार टार्जन फिल्म की शूटिंग में भी इस्तेमाल हुई थी, जिसके कारण उन्हें टार्जन बाबा के नाम से जाना जाता है।


टार्जन बाबा का एंबेसडर कुटिया



प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में एक अनोखा नज़ारा देखने को मिल रहा है। टार्जन बाबा नामक एक साधु ने संगम के तट पर अपनी एक छोटी सी कुटिया बना रखी है। उनके इस निवास स्थान के ठीक सामने उनकी वह प्रसिद्ध कार खड़ी है, जिसे वे अपनी मां के समान मानते हैं। बाबा का कहना है कि उन्हें इस कार में एक अद्भुत आध्यात्मिक शांति और संतुष्टि मिलती है। वे इस कार में ही यात्रा करते हैं, इसी में विश्राम करते हैं और इसी में अपना अधिकांश समय व्यतीत करते हैं।

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