चैत्र नवरात्रि: मां शैलपुत्री की कथा

Maa Shailputri Katha: चैत्र नवरात्रि के पहले दिन जानें मां शैलपुत्री की कथा, इससे जीवन में होगा सुख का संचार 


चैत्र नवरात्रि की शुरुआत मां शैलपुत्री की पूजा और आराधना से होती हैं, जो मां दुर्गा का पहला स्वरूप है। मां शैलपुत्री को शक्ति, भक्ति और त्याग का प्रतीक माना जाता है, इसलिए चैत्र नवरात्रि का पहला दिन विशेष महत्व रखता है। देवी शैलपुत्री की कथा बहुत प्रेरणादायक है क्योंकि यह शक्ति और धैर्य सिखाती है।

मां शैलपुत्री के पूर्व जन्म की कथा


देवी सती का रूप मां शैलपुत्री का पूर्व जन्म था, इसमें उनके पिता दक्ष प्रजापति थे और पूर्व जन्म में उन्होंने भगवान शिव से शादी की थी। एक बार पिता दक्ष प्रजापति ने एक महायज्ञ करने की योजना बनाई। जहां सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया मगर पिता दक्ष अपने दामाद भगवान शिव से नाराज थे, इसलिए उन्होंने केवल भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। तब भगवान शिव ने वहां न जाने का निर्णय लिया क्योंकि वे जानते थे कि दक्ष उनका अपमान करना चाहता है। मगर देवी सती महायज्ञ में जाना चाहती थीं क्योंकि वह अन्य देवी-देवताओं को अपने मायके जाते देख उनका भी मन विचलित हो रहा था। 

जब सती भगवान शिव की अनुमति के बिना महायज्ञ में पहुंचीं, तो उन्हें पश्चाताप होने लगा क्योंकि दक्ष वहां भगवान शिव की निंदा करने लगे। सती अपने पति का अपमान नहीं सह पाई और भगवान शिव की बात ना मानने के कारण वह खुद को दोषी मानने लगीं फिर उन्होंने महायज्ञ मे कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को यह बात पता चली तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने महायज्ञ को नष्ट कर दिया।

जानिए क्यों पड़ा शैलपुत्री नाम 

 
देवी सती ने अगला जन्म पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में लिया, जिसके कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। देवी शैलपुत्री का नाम पार्वती रखा गया जो न केवल अत्यंत दिव्य है, संपूर्ण सृष्टि की मां भी है। इस जन्म में उन्होंने शक्ति का संचार किया और लोगों का तप करने की सीख दी और फिर खुशी-खुशी पुनः भगवान शिव की पत्नी बन गईं। मां शैलपुत्री का वाहन बैल है और वह अपने हाथों में त्रिशूल और कमल धारण करती है, जो शक्ति और धैर्य को दर्शाते हैं।

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