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आदि गुरु शंकराचार्य के अनुसार, चारों धाम एक विशेष युग का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्री बद्रीनाथ सत्य युग, श्री रामेश्वरम त्रेता युग, श्री द्वारका द्वापर युग और पुरी कलियुग का प्रतिनिधित्व करते हैं। पुरी का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर श्री जगन्नाथ मंदिर है जहाँ भगवान कृष्ण को उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ के रूप में पूजा जाता है। भगवान श्री जगन्नाथ लकड़ी से बने हैं, और इन्हें "नीलमाधव" भी कहा जाता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जहाँ हजारों सालों से एक यात्रा का आयोजन किया जाता है, भगवाम की इस पावन यात्रा को श्री जगन्नाथ रथ यात्रा के नाम से जाना जाता है। इस साल ये यात्रा 29 जून को शुरू हुई थी जो 7 जुलाई को एक भव्य उत्सव के साथ पूर्ण हुई। आइए जानते है इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा से जुड़ी पूरी जानकारी।
कब होता है रथ यात्रा का आयोजन:
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ के चंद्र महीने (जून-जुलाई) के उज्ज्वल पक्ष पर जगन्नाथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ पुरी में आरंभ होती है और इसका समापन दशमी तिथि को होता है। रथ यात्रा में सबसे आगे ध्वज पर श्री बलभद्र, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होता है। अंत में गरुण ध्वज पर नंदीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं। यह रथयात्रा जगन्नाथ की अपनी मौसी गुंडिचा से मिलने की यात्रा के प्रतीक रूप में मानी जाती है। यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं जिन्हें श्रद्धालु खींचकर गुंडिचा मंदिर लेकर जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16, भाई बलभद्र के रथ में 14 और बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं।
रथयात्रा का इतिहास :
वैसे तो ऐतिहासिक विवरण और शिलालेख बताते हैं कि यह त्यौहार 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंगा देव के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था। लेकिन जगन्नाथ रथ यात्रा का विवरण स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में बहुत विस्तार से मिलता है। पुराणों के अनुसार रथ यात्रा की शुरुआत कई साल पहले हुई थी, मान्यता के अनुसार रथ यात्रा के जरिए भगवान जगन्नाथ प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर जाते हैं जहां वे कुछ दिन के लिए आराम करते हैं। भगवान के आगमन के लिए गुंडिचा माता मंदिर में भारी तैयारी की जाती है और मंदिर की सफाई के लिये इंद्रद्युमन सरोवर से जल लाया जाता है।
रथ यात्रा के पहले होती है यह रस्में :
पुरी रथ यात्रा से पहले, ज्येष्ठ पूर्णिमा यानि कि स्नान पूर्णिमा के दिन तीनों मूर्तियों को स्नान कराया जाता है, जिसके बाद उन्हें जुलूस के दिन तक अलग रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि स्नान के बाद भगवान बीमार हो जाते हैं और वे 15 दिनों तक किसी से नहीं मिलते। यात्रा के दिन, लोग मंदिर के चारों ओर इकट्ठा होकर जयकारे लगाते हैं, नाचते हैं और पुरी के राजवंश गजपती शाही परिवार के वंशज द्वारा मूर्तियों को मंदिर से बाहर लाने की प्रतीक्षा करते हैं। गजपती शाही परिवार के वंशज एकमात्र व्यक्ति है जिसका जगन्नाथ मंदिर पर पूरा अधिकार है। वह सोने के हैंडल वाली झाड़ू से रथ को साफ करते है और रथ के फर्श को फूलों से सजाते है, फिर वह रथों के सामने की जमीन को साफ करते है और चारों ओर चंदन का पानी छिड़कते है। यह यात्रा का एक प्रसिद्ध अनुष्ठान है जिसे छेरा पहरा भी कहा जाता है। फिर 15 दिनों बाद जब भगन्नाथ जी स्वस्थ हो जाते हैं तो उन्हें कक्ष के बाहर लाया जाता है। और फिर उनका श्रंगार कर समस्त भक्त जनों को दर्शन कराए जाते हैं। जानकारी के अुसार आषाढ़ मास की द्वितीया के दिन अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा पर बाहर निकलते हैं और पूरे नगर का भ्रमण करते हैं।
भगवान श्री जगन्नाथ का महाप्रसाद :
भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को "महाप्रसाद" कहा जाता है। यह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को भोग लगाने के बाद वितरित किया जाता है। ऐसा कहते हैं कि महाप्रसाद ग्रहण करने से नकारात्मक विचार दूर होते हैं और मन शांत होता है।
मध्यप्रदेश के मिनी जगन्नाथ पुरी में भी होता भव्य रथयात्रा का आयोजन :
मिनी जगन्नाथपुरी के रूप में विख्यात विदिशा जिले का मानोरा गांव में 300 सालों से अपने भक्त मानोरा के तरफदार माणकचंद और उनकी पत्नी पद्मावती को दिया वचन निभाने हर साल आषाढ़ दूज को भगवान जगन्नाथ, जगदीश स्वामी के रूप में इस गांव में पधारते है। यह तारीख 25 जून की होती है। इस गांव में उनका एक बड़ा मंदिर भी है जिसमे भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। लाखों लोग रथ में आरुढ़ भगवान जगदीश स्वामी, देवी सुभद्रा और बलभद्र के दर्शन करने आते है। किवदंतियों के अनुसार, जब वे पुरी से मनोरा के लिए प्रस्थान करते हैं, तो पुरी में रथ कुछ क्षण के लिए रुकता है और वहां के पंडे घोषणा करते हैं कि भगवान अपने भक्त के गांव मनोरा में आ गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग जगन्नाथ पुरी नहीं जा पाते, वे मनोरा आकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हैं।
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