समुद्र मंथन के अमृत से ही नहीं बल्कि ऋषि दुर्वासा और गरूड़ से भी जुड़ा कुंभ का इतिहास
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जो पौराणिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसका आयोजन हर 12 साल में चार प्रमुख स्थलों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में होता है। कुंभ मेला केवल समुद्र मंथन से जुड़ी कथा पर आधारित नहीं है, बल्कि महर्षि दुर्वासा के शाप और गरुड़ की अमृत कुंभ लाने की कहानी से भी इसकी शुरुआत मानी जाती है। पुराणों में वर्णित इन कथाओं के अनुसार, जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां कुंभ पर्व की परंपरा आरंभ हुई। यह आयोजन धर्म, आस्था और ज्योतिषीय गणनाओं का अद्वितीय संगम है।
कुंभ की पहली कथा महर्षि दुर्वासा का शाप
महर्षि दुर्वासा को उनके क्रोध और तप के लिए जाना जाता था। पौराणिक कथा के अनुसार जब एक बार दुर्वासा ऋषि ने एक दिव्य माला बनाई और इसे देवराज इंद्र को भेंट किया। तब देवताओं के राजा होने के अहंकार में डूबे इंद्र ने वह माला अपने ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दी। ऐरावत ने उस माला को जमीन पर गिरा दिया और अपने पैरों से कुचल डाला। महर्षि दुर्वासा ने इसे अपना अपमान समझा और इंद्र को शाप दे दिया कि उनका वैभव नष्ट हो जाएगा और देवता अपनी शक्तियां खो देंगे। इस घटना के बाद देवता कमजोर हो गए और असुरों से पराजित हो गए। इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए, जिन्होंने उन्हें सागर मंथन की सलाह दी। सागर मंथन से अमृत कलश निकला, जिसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ। अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर भी गिरीं, जिन स्थानों पर ये बूंदें गिरीं, वहां कुंभ मेला आयोजित होने लगा।
कुंभ की दूसरी कथा: गरुड़ की अमृत यात्रा
गरुड़ को भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है, एक अन्य कथा के अनुसार जो कुंभ मेले से ही जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष की दो पुत्रियां कद्रू और विनता कश्यप ऋषि से ब्याही गई थीं। एक बार दोनों बहनों में इस बात पर विवाद हो गया कि सूर्य के अश्व काले हैं या सफेद। कद्रू ने अपने नागपुत्रों को आदेश दिया कि वे अश्व की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे वह काला दिखाई दे। विनता यह देखकर हार गईं और दासी बन गईं। विनता और उनके पुत्र गरुड़ को भी नागों की सेवा करनी पड़ी।
गरुड़ ने अपनी मां को इस दासता से मुक्त करने के लिए नागों से उपाय पूछा। नागों ने कहा कि यदि गरुड़ अमृत कलश लाकर दे दें, तो वे विनता और गरुड़ को मुक्त कर देंगे। गरुड़ ने नागलोक से अमृत लाने का साहसिक प्रयास किया। इस यात्रा के दौरान इंद्र ने गरुड़ पर कई बार हमला किया, लेकिन गरुड़ सफल रहे। अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक पर गिरीं। तब से इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होने लगा।
कुंभ की तीसरी कथा: समुद्र मंथन और अमृत
समुद्र मंथन भारतीय पौराणिक कथाओं की सबसे प्रसिद्ध घटनाओं में से एक है। यह मंथन देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए किया था। भगवान विष्णु की सलाह पर सागर मंथन का आयोजन हुआ। मंथन के दौरान 14 रत्न निकले, जिन्हें देवताओं और असुरों के बीच बांटा गया। अंत में अमृत कलश निकला, जिसे लेकर देवताओं और असुरों में विवाद हो गया। अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए इंद्र के पुत्र जयंत ने इसे लेकर आकाश में उड़ान भरी। 12 दिनों तक देवताओं और असुरों के बीच युद्ध चला। इन 12 दिनों के दौरान अमृत की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इसलिए, जहां-जहां अमृत गिरा, वहां कुंभ मेले की परंपरा शुरू हुई।
ज्योतिषीय महत्व और कुंभ आयोजन
कुंभ मेले का आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है। जब सूर्य, चंद्रमा, और बृहस्पति की स्थिति विशेष राशि में होती है, तब कुंभ पर्व का आयोजन होता है। इन ज्योतिषीय संयोगों को पवित्र माना जाता है और इन्हीं के अनुसार कुंभ का स्थान और समय तय किया जाता है।
कुंभ मेला केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, पौराणिक कथाओं और ज्योतिषीय परंपराओं का संगम है। महर्षि दुर्वासा का शाप, गरुड़ की यात्रा, और समुद्र मंथन की घटनाएं इस महापर्व को अनोखा और विशेष बनाती हैं। कुंभ मेला ना केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पौराणिक गाथाओं और भारतीय इतिहास की जीवंत तस्वीर भी प्रस्तुत करता है।