रहस्यमयी जिंदगी जीते हैं नागा साधु

MahaKumbh 2025: कुंभ के दौरान ही दिखाई देते हैं नागा साधु, जानें इनका रहस्यमी जीवन 


नागा साधु को महाकुंभ का आकर्षण माना जाता है, जिन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इनका शाही स्नान में महत्व बहुत अधिक है। क्योंकि इन्हें आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। नागा साधु अपनी साधना और योग शक्ति से आम लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्हें धर्म की ओर आकर्षित करते हैं। 

नागा साधु की खास बात है कि यह सिर्फ कुंभ के दौरान ही दिखाई देते हैं।  इसके बाद वे तपस्या करके वापस जंगलों और पहाड़ों में लौट जाते हैं। यही वजह है कि नागा बाबाओं का जीवन रहस्यमयी होता है।

नागा साधु बनने के बाद की जिंदगी के बारे में बहुत लोग जानते हैं। चलिए आज आपको कुंभ से पहले  रहस्यमयी जिंदगी के बारे में आपको बताते हैं।


पहचान छिपा कर रखते हैं संन्यासी


नागा साधु मुख्य तौर पर  निर्वस्त्र रहते हैं और शरीर पर भभूत और रेत लपेटते हैं। इनका  जीवन हमेशा से ही रहस्यमयी रहा है।  यह  कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं इस बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं होती।  माना जाता है कि  बहुत से संन्यासी वस्त्र धारण कर और कुछ निर्वस्त्र भी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं और फिर 6 वर्ष बाद यानी अगले अर्धकुंभ के मौके पर दिखाई देते हैं। आमतौर पर यह नागा संन्यासी अपनी पहचान छुपा कर रखते हैं।


एक गुफा में कुछ ही साल बिताते हैं साधु 


गुरु दक्षिणा लेने के बाद नागा साधु संन्यास के लिए निकल जाते गहैं। वे  उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में जूनागढ़ की गुफाओं या पहाड़ियों में अपना समय बिताते हैं। हालांकि वह एक गुफा में नहीं रहते हैं,और हर 4-5  सालों में गुफा बदलते रहते । इस कारण इनकी सटीक स्थिति का पता लगा पाना मुश्किल होता है। 


नागा साधु बनने की प्रक्रिया 


नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले साधुओं को सांसारिक जीवन से मोह त्यागना पड़ता है। इस प्रक्रिया के बाद व्यक्ति को किसी अखाड़े में गुरु दीक्षा लेनी पड़ती है और अपना खुद का पिंडदान भी करना पड़ता है। जब गुरु दीक्षा पूरी हो जाती है, तो साधु कठिन तप के लिए निकल जाते हैं। ये तप लगभग 12 साल तक जंगलों और पहाड़ों पर तप करते हैं।


नागा उपाधियां 


कुंभ मूल रूप से चार जगहों पर होता है। उज्जैन, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक  इन जगहों पर नागा साधु बनने  पर अलग अलग नाम दिए जाते हैं। जैसे प्रयागराज में  उपाधि पाने वाले साधु को  नागा साधु  कहा जाता है। हरिद्वार में नागा साधु बनने पर बर्फानी नागा कहा जाता है। नासिक में उपाधि पाने वाले साधुओं को खिचडियां नागा, वहीं उज्जैन में नागा साधु की उपाधि पाने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है।


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