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कुंभ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक जैसे पवित्र स्थलों पर आयोजित होता है। इसे लेकर आमतौर पर मन में कई तरह के सवाल भी उठते हैं। जैसे:- कुंभ की शुरुआत कब हुई, इसके प्रकार क्या हैं और इसका धार्मिक महत्व क्या है। यहां इस लेख में हम कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्ण कुंभ, महाकुंभ और सिंहस्थ के बीच के अंतर और उनके महत्व को विस्तार से जानेंगे।
‘कुंभ’ का अर्थ होता है घड़ा या कलश। इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन से जुड़ा है। जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ था। तब अमृत की कुछ बूंद 4 स्थानों पर गिरी थीं। इसी कथा से प्रेरित होकर कुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रत्येक तीन वर्षों में इन चार स्थलों जिसमें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन शामिल हैं यहां पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन होता है।
‘अर्ध’ का अर्थ है आधा। हरिद्वार और प्रयागराज में प्रत्येक छह वर्षों में कुंभ मेले के बीच अर्धकुंभ का आयोजन होता है। इसे छोटे स्तर का कुंभ माना जाता है। हालांकि, इसका महत्व भी कुंभ जितना ही होता है। अर्धकुंभ को लेकर भी भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं होती।
पूर्णकुंभ प्रत्येक 12 वर्षों में आयोजित होता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर होते हैं। इसी कारण हर 12 वर्ष में किसी एक स्थल पर पूर्ण कुंभ का आयोजन होता है। उदाहरण के तौर पर यदि 12 वर्षों में हरिद्वार में पूर्णकुंभ हुआ, तो अगले 12 वर्षों बाद प्रयागराज में और इसी क्रम में अन्य स्थलों पर पूर्णकुंभ आयोजित होता है।
महाकुंभ केवल प्रयागराज में प्रत्येक 144 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता है। यह 12×12 वर्ष की गणना के आधार पर होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, 12 कुंभों में से चार का आयोजन धरती पर और शेष आठ का आयोजन देवलोक में होता है। महाकुंभ का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अन्य सभी कुंभ से अधिक माना जाता है। वर्ष 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था। अगला महाकुंभ 138 वर्षों बाद आयोजित होगा। दरअसल, जब सूर्य, चंद्रमा, और बृहस्पति एक विशेष ज्योतिषीय स्थिति में होते हैं तब इन स्थानों पर मेले का आयोजन होता है। सामान्य कुंभ मेला हर तीन साल में होता है, अर्धकुंभ छह साल में और पूर्ण कुंभ बारह साल में आयोजित किया जाता है। जबकि, विशिष्ट महाकुंभ मेला 144 वर्षों में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है।
सिंहस्थ कुंभ केवल उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इसका संबंध सिंह राशि और ज्योतिष गणनाओं से है। जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है तब इन स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। यह ज्योतिषीय योग प्रत्येक 12 वर्षों में एक बार बनता है। उज्जैन और नासिक में सिंहस्थ का आयोजन इसी कारण किया जाता है।
हर स्थल पर कुंभ मेले का आयोजन एक विशेष ज्योतिषीय समय पर होता है। इसे ‘शाही स्नान’ के लिए सबसे शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ के दौरान गंगा, यमुना और पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुंभ मेला सनातन धर्म का प्रमुख आयोजन है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु, संत, और साधु भाग लेते हैं। यह धार्मिक स्नान अध्यात्म, दर्शन, और संस्कृति का भी उत्सव माना जाता है। कुंभ मेला समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ तभी कलश से अमृत की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में गिरीं। तब से इन स्थानों को पवित्र माना गया और यहीं कुंभ मेलों का आयोजन होने लगा।
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