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कुछ ऐसी है षोडशी माहेश्वरी की कहानी, जानें क्यों है खास

षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है। इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इसे ललित, राज राजेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है। भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है। हिंदू धर्म में देवी त्रिपुल सुंदरी को लेकर विशेष आस्था है। देवी त्रिपुर सुंदरी का उल्लेख देवी पुराण सहित कई अन्य पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। आज हम आपको बता रहें है देवी त्रिपुरेश्वरी को समर्पित मंदिर के बारे में जो कि उदयपुर शहर में स्थित है। यह हिंदू मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। देवी त्रिपुर सुंदरी को समर्पित मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना माना जाता है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का निर्माण 1501 में महाराज धन्या माणिक्य देबबर्मा द्वारा किया गया था। इसके बाद सन् 1896 से 1990 में महाराजा राधा किशोर माणिक्य के बहादुर शासनकाल में इस मंदिर को पुनर्जीवित किया गया। त्रिपुर सुंदरी मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम में बनाया गया है। इसके साथ ही मंदिर में उत्तर की ओर भी एक बेहद ही संकरा प्रवेश द्वार मौजूद है। मंदिर को चारों कोनो में चार स्तंभ है, जिन पर यह मंदिर टिका हुआ हैं। इस स्तंभों की ऊंचाई 75 फीट की है। इसके साथ ही मंदिर के शीर्ष पर एक झंडा और सात घड़े बने हैं।


कैसे हुआ शक्तिपीठ का निर्माण


शिव पुराण के अनुसार जब प्रजापति दक्ष की बेटी देवी सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ, तो वह इस विवाह से प्रसन्न नहीं थे। ऐसे में उन्होंने अपनी बेटी सती और दामाद भगवान शंकर को उपेक्षित करना शुरु किया। इसी क्रम में एक बार प्रजापति दक्ष ने अपने यहां यज्ञ कता आयोजन किया। जहां पर उन्होंने सभी लोकों से लोगों को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शंकर और देवी को निमंत्रण नहीं भेजा। देवी सती को जब अपने पिता के यहां होने वाले इस आयोजन की जानकारी प्राप्त हुई तो वो सीधे अपने पिता के पास पहुंच गई। जहां पर उन्हें अपमान सहना पड़ा। मायके में हुए अपमान से झुब्ध देवी सती ने स्वयं को वहीं यज्ञ की वेदी में भस्म कर दिया। जैसे ही भगवान शंकर को इस बात की जानकारी मिली तो वह सीधे यज्ञ स्थल पर पहुंचे और देवी सती के पार्थिव शरीर को लेकर तीनों लोकों में तांड़व करने लगे। भगवान शंकर के क्रोध से देवी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े किए। ऐसे में उनका अंग जहां-जहां गिरा वहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। ऐसा ही शक्तिपीट है त्रिपुर सुंदरी का, जहां देवी सती के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था।


त्रिपुर सुंदरी मंदिर के खुलने और बंद होने का समय


त्रिपुर सुंदरी मंदिर ग्रीष्मकाल में सुबह 5 बजे और सर्दियों में सुबह 5:30 पर खुलता है। त्रिपुर सुंदरी का अभिषेक श्रृंगार ग्रीष्मकाल में सुबह 5 बजे से 6 बजे तक और सर्दियों में सुबह 5:30 बजे से 7:00 बजे तक होता है। त्रिपुर सुंदरी मंदिर में दर्शन का वक्त सुबह 6 बजे से है।


कैसे पहुंचे त्रिपुर सुंदरी मंदिर


हवाई मार्ग- बांसवाड़ा का सबसे निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर में 160 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां हवाई अड्डा भारत के सभी प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु आदि से हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे से आप त्रिपुरा सुंदरी मंदिर बांसवाड़ा जाने के लिए बस या फिर किराये की टैक्सी ले सकते हैं।


ट्रेन द्वारा- त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन रतलाम रेलवे स्टेशन है जो त्रिपुरा सुंदरी मंदिर से लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थित है। कई ट्रेन है जो भारत के प्रमुख शहरों से इस स्टेशन के लिए मिल जाती हैं। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आप बस ,कैब या स्थानीय वाहनों की मदद से त्रिपुरा सुंदरी मंदिर तक पहुंच सकते है।


सड़क मार्ग - बांसवाड़ा शहर राजस्थान के प्रमुख शहरों उदयपुर, जयपुर के अलावा दूसरे राज्यों से भी सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राजस्थान के प्रमुख शहरों से और अन्य राज्यों के शहरों से यहां के लिए बसें भी उपलब्ध हैं। तो आप राजस्थान के किसी भी प्रमुख शहरो से बस, टैक्सी या अपनी कार से यात्रा करके त्रिपुरा सुंदरी मंदिर बांसवाड़ा पहुंच सकते है।

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