Logo

पितृपक्ष को कनागत क्यों कहा जाता है? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

पितृपक्ष को कनागत क्यों कहा जाता है? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य के तीन ऋण होते हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। इसमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना अति आवश्यक माना गया है और इस काम को करने के लिए पितृपक्ष से ज्यादा अच्छा समय और कोई नहीं होता। ब्रह्म पुराण के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितरों को मुक्त कर देते हैं और वे अपनी संतानों तथा वंशजों से पिंड दान लेने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। पितृपक्ष को कनागत के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृपक्ष को कनागत क्यों कहा जाता है, ये सिर्फ एक नाम है या इसके पीछे कोई पौराणिक कथा जुड़ी है. जानते हैं भक्तवत्सल के इस लेख में..


पितृपक्ष को कनागत क्यों कहा जाता है? 


पितृपक्ष को कनागत कहने के पीछे मुख्यत: दो कथाएं मिलती है। सबसे प्रचलित कथा के अनुसार सूर्य के कन्या राशि में आने के कारण ही आश्विन मास के कृष्ण पक्ष का नाम “कनागत” पड़ गया। दरअसल कनागत एक अपभृंश शब्द है ‘कन्या आगत’ का जिसका मतलब होता है सूर्य का कन्या राशि में आगमन, पितृपक्ष के इन दिनों में सूर्य कन्या राशि में रहते हैं और इसी वजह से इस समय का कनागत के नाम से जाता है। साथ ही ज्योतिष विद्वान ये भी व्याख्या करते हैं कि सूर्य जब कन्या राशि में होते हैं तो वे संतुष्ट और खुश नहीं होते न ही वो इस राशि में संतुलित रह पाते हैं और सूर्य का ठीक संतुलन न होने हमारे जीवन पर भी अच्छा असर नहीं डालता जिस वजह से इस समय शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।


कर्ण से जुड़ी है दूसरी कथा 


पितृपक्ष को कनागत कहने को लेकर एक और कथा प्रचलित है जिसके अनुसार कनागत का सही अर्थ कर्णागत (कर्ण + आगत ) होता है जिसका मतलब होता है कर्ण का आगमन । ऐसी मान्यता है कि कर्ण की मृत्यु के पश्चात जब कर्ण यमराज की नगरी पहुंचे तो उन्हें खाने के लिए कुछ नही मिला। भूख-प्यास से व्याकुल होकर कर्ण यमराज के समक्ष जाकर बोले- हे, यमराज मुझे भूख लगी है। तब यमराज ने कहा- हे कर्ण तुमने जीवन भर सोना ही सोना दान किया है और मनुष्य योनि में जो आप दान करते हो, वही मरने के पश्चात कई गुना पाते हो। इसलिए आपके लिए यहाँ सिर्फ सोना ही सोना है, भोजन नहीं। तब कर्ण ने यमराज से 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस भेजने का आग्रह किया। इस प्रकार इन 16 दिनों में कर्ण ने भोजन और अन्न का दान किया। तब से यह 16 दिनों का समय पितृ पक्ष कहा जाने लगा और पितृपक्ष के इस समय को कनागत के नाम से जाना जाने लगा।


........................................................................................................
वीणा वादिनी, ज्ञान की देवी - भजन (Veena Vadini Gyan Ki Devi)

वीणा वादिनी, ज्ञान की देवी,
अपनी दया बरसा देना,

वीर बली हनुमान, थारे ह्रदय सियाराम (Veer Bali Hanuman Thare Hirde Siyaram)

वीर बली हनुमान,
थारे ह्रदय सियाराम,

वीर बलि हनुमान, ये हैं राम भक्त हनुमान (Veer Bali Hanuman Ye Hai Ram Bhakt Hanuman)

वीर बलि हनुमान,
ये हैं राम भक्त हनुमान,

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang