कल्पवास के 21 नियम

जानिए कल्पवास के 21 नियम! क्या कुंभ के बाद भी कर सकते हैं कल्पवास?  


13 जनवरी 2025, से शुरू हुआ महाकुंभ हिंदू धर्म में आस्था, विश्वास और श्रद्धा का अनूठा संगम है। महाकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम पर साधु-संत, संन्यासी, भक्त और श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। साथ ही इस समय कई लोग कल्पवास भी करते हैं। मान्यता है कि कुंभ में किए कल्पवास का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। कल्पवास के 21 नियमों में व्रत, उपवास, ब्रह्मचर्य, देव-पूजन, सत्संग और दान को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। तो आइए, इस आर्टिकल में कल्पवास के 21 नियमों के साथ ये भी जानते हैं कि कल्पवास कब किया जा सकता है। 


जानिए किसे कहते हैं कल्पवास?


कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का माध्यम माना जाता है। हिंदू धर्म में, पुण्य फल प्राप्त करने हेतु की गई साधना को कल्पवास कहा जाता हैं। महाभारत के अनुसार कल्पवास 100 साल तक बिना अन्य ग्रहण किए तपस्या करने जैसा पुण्य फल प्रदान करता है। निष्ठापूर्वक कल्पवास करने से इच्छित फल की अवश्य प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति को जन्म-जन्मांतर के बंधनों से भी मुक्ति मिलती है। कल्पवास के दौरान नियमित रूप से सूर्य उपासना, भगवान विष्णु, शिव और देवी के मंत्रों का जाप करना होता है। कल्पवास के दौरान भगवत गीता, रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना, भजन कीर्तन करना, साधना और सत्संग किया जाता है। साथ ही कल्पवास के दौरान क्रोध, हिंसा, लालच और अहंकार जैसी कुरीतियों से दूर रहा जाता है। 


कौन-कौन कर सकता है कल्पवास? 


कल्पवास करने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है। किसी भी उम्र का व्यक्ति कल्पवास के नियमों का पालन कर सकता है। हालांकि, विशेष रूप से जो व्यक्ति सांसारिक मोह माया से मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियां को पूर्ण कर चुके हैं, उनके लिए कल्पवास उपयुक्त माना जाता है। इसका कारण यह है कि जिम्मेदारियों में बंधा व्यक्ति अपने आत्मा पर नियंत्रण नहीं रख पाता। जबकि, कल्पवास शरीर और आत्मा दोनों के कायाकल्प का जरिया माना गया है।


कब किया जा सकता है कल्पवास?


कल्पवास आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष के लिए किया जाता है। इसलिए इसे कुंभ के अलावा अन्य दिनों में भी किया जा सकता है। लेकिन कुंभ के दौरान किए गए कल्पवास का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। महाभारत के अनुसार, माघ में किया कल्पवास उतना ही पुण्य फलदायी माना जाता है, जितना 100 वर्षों तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या। हालांकि, सामान्य दिनों में भी अपनी दिनचर्या से अवकाश लेकर कल्पवास के नियमों का पालन किया जा सकता है। इससे साधक को शारीरिक और मानसिक रूप से ताजगी और ऊर्जा मिलती है। कल्पवास 3 दिन, 7 दिन, 15 दिन, 30 दिन, 45 दिन, 3 महीने, 6 महीने, 6 साल, 12 साल या फिर जीवन भर भी किया जा सकता है।


जानिए कल्पवास के 21 नियम


पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के 21 नियमों के बारे में बताया है। कल्पवास धारण करने वालों को इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।


  1. सत्य वचन ही बोलें:- कल्पवास के दौरान सत्य वचन ही बोलना चाहिए, असत्य वचन से कल्पवास टूट जाता है।  
  2. अहिंसा का मार्ग अपनाएं:- कल्पवास के दौरान किसी भी तरह के हिंसा से दूरी बनाकर रखें।
  3. इंद्रियों पर रखें पूर्ण नियंत्रण:- इस दौरान इन्द्रियों को संयमित रखना अति आवश्यक है।
  4. प्राणियों पर दया भाव:- कल्पवास के दौरान, ब्रह्मांड के सभी जीव-जंतु के प्रति दया दृष्टि का भाव रखना चाहिए।
  5. ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी:- कल्पवास में संयमित जीवन और ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। 
  6. व्यसनों का करें त्याग:- इस दौरान सिगरेट, शराब जैसे किसी भी नशीले पर्दाशों का पूरी तरह से त्याग कर देना चाहिए। 
  7. ब्रह्म मुहूर्त में जागें:- कल्पवास में सुबह सूर्योदय से पूर्व उठ जाना चाहिए। 
  8. तीन स्नान करें:- इस दौरान नियमित तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना आवश्यक माना जाता है। 
  9. त्रिकाल संध्या ध्यान:- सुबह, दोपहर और शाम तीनों समय प्रार्थना और ध्यान करें। 
  10. पिंडदान करें:- कल्पवास में पूर्वजों का स्मरण करते हुए पिंडदान और तर्पण करना चाहिए। 
  11. करें अंतर्मुखी जप:- इस दौरान साधक को मन और आत्मा से ध्यान और मंत्र जाप करना चाहिए।  
  12. सत्संग करें:- कल्पवास के दौरान साधु-संतों के सानिध्य में रहना चाहिए।
  13. बाहर ना घूमें:- कल्पवास के दौरान संकल्प क्षेत्र से बाहर न निकलें।
  14. निंदा ना करें:- इस दौरान किसी की भी निंदा ना करना। 
  15. सेवा करें:- इस दौरान आप साधु-संन्यासियों की सेवा कर सकते हैं।  
  16. दान करें:- कल्पवास में अन्न, धन और वस्त्र का दान किया जा सकता है। 
  17. जप और संकीर्तन:- नियमित रूप से भजन, मंत्र और कीर्तन के माध्यम से ईश्वर का स्मरण करें। 
  18. एक समय करें भोजन:- कल्पवास के दौरान एक केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए।
  19. भूमि पर करें शयन:- भूमि पर सोना
  20. अग्नि का प्रयोग वर्जित:- इस दौरान, यज्ञ आदि के लिए अग्नि का प्रयोग ना करें। 
  21. देव पूजन:- कल्पवास में जितना संभव हो उतनी भगवान की पूजा-आराधना करें और नाम का जप करें।। 

डिसक्लेमर

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