कल्पवास से खुलते है मोक्ष के दरवाजे, राजा जनक ने भी किया था पालन, जानें महत्व
प्रयागराज हिंदू धर्म के सबसे तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। यहां माघ महीने में कल्पवास करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस बार माघ माह महाकुंभ के दौरान पड़ रहा है। ऐसे में बड़ी संख्या में भक्त इस पावन अवसर पर त्रिवेणी संगम पर पहुंचने वाले हैं। यह हिंदू धर्म की अहम प्रक्रिया है, जिसे मोक्ष का मार्ग माना जाता है। वहीं त्रिवेणी संगम पर कल्पवास करने का अलग ही महत्व है, क्योंकि यहां तीन नदियों का मिलन होता है।सदियों से चली आ रही परंपरा को साधु-संत आगे बढ़ाते लाए है। इसका संबंध माता सीता के पिता राजा जनक से लेकर भारत के पहले राष्ट्रपति तक मिलता हैं। चलिए आपको इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताते हैं। लेकिन सबसे पहले कल्पवास का अर्थ जानिए।
कल्पवास का अर्थ
कल्पवास दो शब्दों से मिलकर बना है कल्प और वास। कल्प का अर्थ होता है कल्पना या समय , वहीं वास का अर्थ होता है रहना। कल्पवास का अर्थ होता है एक निश्चित अवधि के लिए एक स्थान पर रहकर आत्मा की शुद्धि और भगवान के प्रति भक्ति में लीन होना। यह भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभ्यास है,जिसे आत्म-सुधार के रूप में भी देखा जाता है। इस दौरान व्यक्ति अपने रोजमर्रा के जीवन से अलग होकर केवल आध्यात्मिक क्रियाओं में लीन रहता है और अपनी आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की कोशिश करता है।
कल्पवास का महत्व
कल्पवास करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे आत्म विकास का रास्ता माना जाता है, जो व्यक्ति को उसके उद्देश्य के बारे में बताते हैं। इस प्रक्रिया का पालन करने वाले लोग बताते हैं कि 1 माह कब निकल जाता है,पता नहीं चलता है। इस दौरान यह लोग बाहरी दुनियादारी से अलग हो जाते हैं और तपस्वी की तरह आश्रम में रहकर भगवान की साधना करते हैं। गंगा में स्नान करने से स्वास्थ्य को फायदा मिलता है, वहीं आध्यात्मिक शांति भी मिलती है।
कल्पवास की विधि
- प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठे और बिना तेल और साबुन लगाए संगम स्नान करें।
- संगम की रेती से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर पूजन करें।
- सुबह उगते सूर्य को अर्घ दें।
- कल्पवास के दौरान तामसिक भोजन और मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- एक समय भोजन करें तथा भोजन खुद पकाएं।
- जमीन पर सोए और किसी के लिए भी बुरे विचार मन में न लाएं तथा बुरा न सोचें।
- प्रतिदिन अन्न या वस्त्रों का दान करें।