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हर युग में भगवान का अवतार हुआ है और आगे भी होता रहेगा। यह वचन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को दिया है। इस वचन के जरिए भगवान विष्णु ने समूचे संसार को ये संदेश दिया है कि मैं जब जब इस धरती पर पाप बढ़ेगा मैं अपने इसी वचन को निभाने के लिए अवतार लेता रहूंगा। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु अपने इसी वचन को निभाने के लिए कलयुग में कल्कि अवतार लेंगे। शास्त्रों में लिखी कल्कि अवतार की कथा के चलते उत्तरप्रदेश के संभल जिले में श्री कल्कि धाम मंदिर का निर्माण चल रहा है जो लगभग पांच एकड़ जमीन पर बन रहा है। भगवान कल्कि को भगवान विष्णु का अंतिम अवतार भी कहा जा रहा है। कल्कि पुराण और अग्नि पुराण के अनुसार, श्री हरि विष्णु 'कल्कि' अवतार लेकर कलियुग में पापों का नाश करेंगें। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कल्कि अवतार की सारी कहानी और उनके अवतार की कथा विस्तार से …..
अग्नि पुराण के 16वें अध्याय में कल्कि भगवान के स्वरूप का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार भगवान एक हाथ में तीर-कमान और दूसरे हाथ में तलवार धारण कर सफेद घोड़े पर सवार होकर आएंगे। एक महान योद्धा का अवतार लेकर वे संसार में पापियों का संहार करेंगे। भगवान के घोड़े का नाम देवदत्त होगा। श्रीकृष्ण के पृथ्वी लोक से विदा लेते ही कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ है। कलियुग कुल मिलाकर 432000 वर्ष का है, जिसका प्रथम चरण फिलहाल चल रहा है और भगवान का अवतार कलयुग के अंतिम चरण में होगा। कल्कि पुराण में भगवान के जन्मस्थान और परिवार का जो वर्णन है उसके अनुसार कल्कि भगवान उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के पास संभल जिले में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लेंगे। उनके पिता का नाम विष्णुयश होगा जो उस समय के श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे। भगवान की माता का नाम सुमति होगा। कल्कि जन्म से ही 64 कलाओं में पारंगत होंगें।
श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक के अनुसार गुरु, सूर्य और चंद्रमा के एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करने पर भगवान कल्कि का जन्म होगा। यह समय कलियुग की समाप्ति और सतयुग के संधि काल के रूप में जाना जाएगा। पुराणों के अनुसार भगवान सावन मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को अवतरित होंगे। कल्कि अवतार भगवान का दसवां अवतार कहा जाएगा जिसमें उनका दूसरा नाम निष्कलंक भी होगा। इस अवतार में भगवान के तीन बड़े भाई सुमंत, प्राज्ञ और कवि होंगे जो धर्म स्थापना में भगवान के सहायक होंगे। इस अवतार में भगवान की दो पत्नियां होंगी। देवी लक्ष्मी राजकुमारी पद्मावती के रूप में और रमा देवी वैष्णवी अवतार के रूप में उनकी पत्नी बनेंगी। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार माता वैष्णो देवी राम से विवाह करने के लिए युगों से तपस्या कर रही हैं। जिसका फल उन्हें कल्कि भगवान कलयुग में प्रदान करेंगे। माता वैष्णो देवी रामावतार से ही तपस्या में लीन हैं इस बात का उल्लेख स्कंदपुराण और कल्कि पुराण में है। भगवान के चार पुत्र होंगे जिनके नाम जय, विजय, मेघमाल और बलाहक होंगे।
मार्कण्डेय जी और शुक्रदेव जी के संवाद से आरंभ होने वाले कल्कि पुराण में वर्णन है कि कलयुग के प्रारम्भ में ही पृथ्वी माता देवताओं के साथ श्री हरि विष्णु से पापाचार को मिटाने के लिए अवतार लेने की प्रार्थना करती है। तब भगवान स्वयं कलयुग के अंत में संभल गांव में कल्कि रुप में अवतार लेने की बात कहते हैं। इस पुराण में कल्कि भगवान की सभी लीलाओं का सुंदर वर्णन है। चिरंजीवी भगवान परशुरामजी कल्कि भगवान के गुरु होंगे तथा उन्हीं की आज्ञा से कल्कि भगवान महादेव शिव की तपस्या कर दिव्य शक्तियां अर्जित करेंगे। यह शक्तियां अधर्म का अंत करने में भगवान की सहायता करेंगी। परशुरामजी के अलावा याज्ञवलक्य पुरोहित भी कल्कि भगवान के गुरु होंगे।
भगवान के विवाह को लेकर कल्कि पुराण में लिखा है कि एक बार जब भगवान सिंहल द्वीप की ओर जाते हैं तब रास्ते में एक सरोवर पर उन्हें देवी लक्ष्मी का अवतार राजकुमारी पद्मावती मिलती है। भगवान उनसे विवाह कर लेते हैं। विवाह पश्चात भगवान के आदेश पर विश्वकर्मा जी सम्बल गांव को एक सुंदर दिव्य और भव्य नगरी में बदल देते हैं, जहां भगवान देवी पद्मावती के साथ निवास करते हैं। फिर भगवान कल्कि हरिद्वार में संतों के साथ मिलकर सूर्यवंश और भगवान राम के चरित्र को सुनाएंगे।
भगवान के दूसरे विवाह का आगे वर्णन है कि भगवान शशिध्वज से युद्ध करेंगे और उन्हें हराएंगे। साथ ही भगवान शशिध्वज की पुत्री रमा से विवाह कर अपनी लीलाओं का समाप्त करेंगे जिसके बाद कलयुग का अंत और सतयुग की स्थापना होगी।
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