नवीनतम लेख
आइये जानते हैं मंगल देवता के बारे में जिनका नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं क्यूंकि मंगल कुंडली को मांगलिक बनाते हैं जिसके कई सारे दुष्परिणाम बताये गए हैं, क्या सच में मंगल ग्रह मनुष्य को परेशान करते हैं? कैसे इन्हें प्रसन्न करें?
मंगल या भौम नवग्रहों में से एक प्रमुख ग्रह है, ये पृथ्वी के निकटतम ग्रहों में से है। इसकी पृथ्वी से दूरी घटती बढ़ती रहती है, पृथ्वी से पास होने पर लगभग ३ करोड़ इकतालीस लाख मील और दूर होने पर लगभग ९-१० करोड़ मील दूरी होती है, इसका आकर पृथ्वी से छोटा माना जाता है तथा व्यास लगभग ४२०० मील के आस पास है।
मंगल ग्रह की उत्पत्ति की दो कहानियाँ प्रचलित हैं जिनमे से एक कथा का वर्णन स्कंदपुराण के अवंतिका खंड में मिलता है जिसके अनुसार उज्जयिनी में अंधक असुर के अंत के लिए जब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की और भगवान शिव ने अंधक से युद्ध प्रारम्भ किया, युद्ध करते करते भगवान शिव के ललाट से पसीने की एक बून्द धरती पर गिरी जिससे अंगार के समान अति तेजस्वी मंगल का जन्म हुआ, इसलिए इन्हें भूमिपुत्र भी कहा गया, जहाँ इनका जन्म हुआ उसी स्थान पर ब्रह्माजी ने मंगलेश्वर नमक शिवलिंग की स्थापना की और ऐसा माना जाता है की इस मंदिर में पूजा करने से मांगलिक दोष की शांति होती है। चूँकि मंगल का जन्म भगवान शिव के क्रोध और पसीने से इनकी उत्पत्ति हुई इसलिए इनका स्वभाव क्रोधी माना जाता है और लाल रंग होने से रक्त का सम्बन्ध भी मंगल से माना जाता है।
मंगल को शास्त्रों में भूमि-पुत्र कहा गया है इसके अलावा इन्हें भौम, ऋणहर्ता, अंगारक, महाकाय आदि नामों से भी जाना जाता है, मंगल देवता का रंग लाल बताया गया है, इनकी चार भुजाएं हैं इनके हाथों में अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा हैं। इन्होने लाल वस्त्र और आभूषण धारण किये हुए हैं, सिर पर स्वर्ण मुकुट धारण किये हुए हैं तथा इनका वाहन भेड़ है।
मंगल को मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी माना गया है, कालपुरुष की कुंडली में इन्हें पहले और आठवें स्थान का स्वामी माना गया है। ये नवग्रहों में सेनापति माने जाते हैं तथा मृगशिरा, चित्र और धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी हैं। मंगल मकर राशि में २८ अंश तक उच्च और कर्क राशि में २८ अंश तक नीच माने जाते हैं। इनकी दृष्टि अपने स्थान से ४, ७ और ८वें घरों पर होती है जिसके परिणाम कुंडली की स्तिथि देखने पर ही बताई जा सकती है।
कैंसे कुंडली मांगलिक होती है
कुंडली में अगर मंगल १,४,७,८ और १२वें घर में उपस्थित हो तो कुंडली मांगलिक मानी जाती है, दक्षिण भारत में २रे घर में मंगल होने पर भी कुंडली मांगलिक मानी जाती है। मंगल की महादशा ७ वर्ष की होती है। अगर मंगल के अंश बहुत कम हों या अस्त हों तो मांगलिक दोष निम्न हों जाता है, अगर मंगल कुंडली में योगकारक हों तो भी मांगलिक दोष नहीं माना जाता है, यदि मंगल अपनी ही राशि में १,४,७,८,१२ भावों में हों तो भी मांगलिक दोष नहीं माना जाता, इसके अलावा अगर गुरु की दृष्टि सप्तम भाव पर हो या वहां स्वयं बैठे हुए हों तो भी मांगलिक दोष समाप्त माना जाता है। विवाह के समय अगर एक व्यक्ति की कुंडली में मंगल तेज हो और दूसरे की कुंडली में शनि तो भी विवाह में कोई समस्या नहीं होती, फिर भी एक योग्य ज्योतिषी से परामर्श करना उत्तम होगा।
मंगल ग्रह की स्तिथि अगर कुंडली में ठीक न हो तो व्यक्ति को रक्त, न्यायालय, दुर्घटना, भातृ और भूमि सम्बन्धी परेशानियां हो सकती हैं और अगर मंगल की स्तिथि अच्छी है तो भूमि से लाभ, साहसी, सेना में कार्य संभव, मेडिकल में कार्य संभव, भाइयों से मदद इत्यादि परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
नीचे दिए हुए कुछ मंत्र का जाप मंगल की पीड़ा से राहत/मुक्ति से सकता है -
१) मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा या किसी अन्य हनुमान स्तुति का जाप।
२) ॐ अंगारकाय विद्महे, शक्ति हस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।
३) ॐ अग्निमूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयं, अपां रेतां सि जिन्वति।
४) ऊँ अं अंगारकाय नम:
५) ऊँ भौं भौमाय नम:
६) ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
७) ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम, कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम।।
इनके अतिरिक्त ऋण मोचक मंगल स्तोत्र का पाठ भी व्यक्ति को ऋण से मुक्ति देता है और मंगल देव की कृपा प्राप्त होती है।
मंगल देव के अनुकूल परिणामों के लिए निम्न सरल उपाय भी किये का सकते हैं -
१) ज्योतिषी से सलाह लेकर मूंगा धारण किया जा सकता है।
२) नित्य व्यायाम जरूर करें।
३) धरती पे बैठकर भोजन करें, रसोई बनते हुए ही भोजन ग्रहण कर लें।
४) हनुमान मंदिर पे सफ़ेद ध्वज लगायें।
५) भाई से सम्बन्ध अच्छा रखें।
६) मंगलवार के दिन गेहूं, गुड़, मसूर, ताम्बा, लाल वास्ता, लाल फूल, लाल चन्दन और मिठाई आदि मंदिर में अर्पित करें या दान करें।
७) उज्जैन के मंगलनाथ मंदिर पे जाकर शांति कराएं।
याद रखें की मंगल साहस और पुरुषत्व के कारक ग्रह हैं और ये शनि की राशि में उच्च के होते हैं शनि जो कर्म के स्वामी हैं इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने के लिए साहस करते रहें बाकि प्रभु आपका मंगल करें।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।