श्रावण मास की शिवरात्रि आज, जानें कैसे महाशिवरात्री से अलग से यह शिवरात्रि (Shraavan Maas kee Shivaraatri Aaj, Jaanen kaise Mahaashivaraatree se Alag se Yah Shivaraatri)

महाशिवरात्रि यानी वह दिन जब भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था। ये दिन सभी शिव और माता पार्वती के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होता है भक्त काफी धूमधाम से भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं। अधिकतर लोग ये जानते हैं कि शिवरात्रि केवल एक बार आती है, लेकिन ऐसा नहीं है। भगवान शिव की आराधना का ये पर्व प्रत्येक महीने में एक बार जरूर आता है। जिसे हम मासिक शिवरात्रि कहते हैं। श्रावण माह में के दौरान आने वाली शिवरात्रि का महत्व थोड़ा खास होता है।भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि क्या है श्रावण शिवरात्रि और ये कैसे हम महीने आने वाली शिवरात्रि से अलग और विशेष महत्व रखती है, साथ ही बात मासिक शिवरात्रि पर शिवपूजा के नियम और विधान की भी।


क्या है श्रावण मासिक शिवरात्रि?


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि को ही भगवान शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। जिसके बाद पहली बार ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा शिवलिंग की पूजा की।


हर महीने पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि का महत्व भी इसी दिन से जुड़ा हुआ है. एक वर्ष में एक महाशिवरात्रि और 11 शिवरात्रियां पड़ती हैं, जिन्हें मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर शिवरात्रि मनाई जाती है, जिसे मासिक शिवरात्रि कहा जाता है। मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं और शास्त्रों में कहा गया है कि मासिक शिवरात्रि के इस व्रत की शुरूआत देवी लक्ष्मी, सरस्वती, इंद्राणी, गायत्री, सावित्री, पार्वती और रति की थी। उन्होंने  अनंत फल की प्राप्ति के लिए शिवरात्रि का व्रत किया था। इस व्रत को करने से शिव-पार्वती जी की कृपा प्राप्त होती है। मासिक शिवरात्रियों में सबसे महत्वपूर्ण शिवरात्रि श्रावण शिवरात्रि होती है क्योंकि यह भगवान शिव के प्रिय माह श्रावण में आती है। इस दौरान चारों और हरियाली बिखरी होती है और बारिश की फुहारें भगवान भोलेनाथ का अभिषक कर रही होती हैं। इस बार यह शिवरात्रि आज यानि 2 अगस्त को मनाई जा रही है। 


श्रावण शिवरात्रि का महत्व : 


मासिक शिवरात्रि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। ऐसे में इस बार सावन महीने की ‘मासिक शिवरात्रि’ 2 अगस्त को मनाई जाएगी। सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित है। इसलिए सावन में शिवरात्रि का व्रत करने से साधकों को सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि शिवरात्रि की तिथि पर ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख, सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है। वहीं, अविवाहित लोगों का मन चाहा वर और सुखद वैवाहिक जीवन मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता है और मासिक शिवरात्रि का व्रत रखता है उसे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही व्यक्ति के जीवन में सुख और शांति भी बनी रहती है।


श्रावण  शिवरात्रि पूजन के शुभ मुहूर्त :


श्रावण माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 02 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 26 मिनट पर हो रही है और ये तिथि 03 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 50 मिनट तक रहेगी। श्रावण शिवरात्रि की पूजा निशा काल में करने का विधान है। श्रावण  शिवरात्रि पूजा मुहूर्त,  रात्रि 12 बजकर 06 मिनट से रात 12 बजकर 49 मिनट तक है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस साल बहुत श्रावण शिवरात्रि के दिन बहुत ही दुर्लभ योग बन रहा है।  जिस दौरान भद्रा स्वर्ग पर वास करेगी और शिव की पूजा से महत्वपूर्ण फल देने वाली होगी।


  • ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 31 मिनट से 05 बजकर 15 मिनट तक
  • विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 45 मिनट से 03 बजकर 37 मिनट तक
  • गोधूलि मुहूर्त - शाम 07 बजकर 08 मिनट से 08 बजकर 13 मिनट तक
  • निशिता मुहूर्त – रात 12 बजकर 12 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
  • सर्वार्थसिद्धि योग - 2 अगस्त को सबह 10 बजकर 59 मिनट से 3 अगस्त को सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक


श्रावण शिवरात्रि के नियम और पूजा विधि :


श्रावण शिवरात्रि के दिन व्यक्ति को कुछ नियमों का भी पालन करना चाहिए, जैसे इस दिन सुबह जल्दी उठें और घर की अच्छे से साफ सफाई कर, स्नान करें। इसके बाद शिव मंदिर में जाकर सबसे पहले भगवान श्री गणेश का स्मरण करें।  उसके बाद भगवान शिव पर गंगाजल अर्पित करें और फिर शुद्ध जल से स्नान कराने के बाद  उन पर दूध और शुद्ध जल चढ़ाएं।  अभिषेक करते समय ॐ नमः शिवाय या फिर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहें। 


- शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद शिवलिंग पर भांग, धतूरा, बेलपत्र, शमी के पत्ते, पुष्प और फल आदि अर्पित करें।


- पूजा के दौरान महिलाएं माता पार्वती को श्रृंगार का सामान जैसे हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी और वस्त्र आदि अर्पित करें।


- मां पार्वती को सिंदूर अर्पित करने के बाद इस सिंदूर का माथे पर तिलक जरूर लगाएं, विवाहित स्त्रियां सिंदूर को मांग में भी लगाएं। 


- अविवाहित कन्याओं को इस दौरान ‘राम रक्षा स्त्रोत’ का पाठ करना चाहिए. माता पार्वती को पुष्प और फल अर्पित करें. आखिर में पूजा का समापन आरती के साथ करें.


- इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है. हो सके तो इस शिवरात्रि की पूरी रात जागरण करें और भगवान शिव के भजनों के साथ सत्संग कीर्तन करें.


- इस दिन यदि आप किसी कारणवश उपवास नहीं रख रहे हैं तो भी इस दिन भोजन में  लहसुन और प्याज आदि का प्रयोग न करें।


- इस दिन खट्टी चीजों का परहेज़  करें 


- भगवान शिव की पूजा में तुलसी, सिंदूर या श्रृंगार की कोई भी वस्तु न चढ़ाएं। 


- शिवलिंग पर शंख से जल न चढ़ाए और शिव जी की प्रतिमा को कमल, कनेर और केतकी के फूल अर्पित न करे। 


श्रावण शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के बीच क्या अंतर है:


श्रावण शिवरात्रि और महाशिवरात्रि दोनों ही भगवान शिव की पूजा के महत्वपूर्ण अवसर हैं, लेकिन इनमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं। श्रावण शिवरात्रि हर साल श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर जुलाई-अगस्त के बीच आती है। यह पर्व विशेष रूप से श्रावण माह में भगवान शिव की आराधना और उपासना के लिए मनाया जाता है, और इसे धार्मिक अनुशासन और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इसके दौरान भक्त उपवास करते हैं, शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं, और रात्रि जागरण करते हैं। इसके विपरीत हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है, जो फरवरी-मार्च के बीच आती है। यह भगवान शिव की सबसे महत्वपूर्ण रात मानी जाती है। महाशिवरात्रि विशेष रूप से भगवान शिव की अर्चना, तंत्र-मंत्र साधना, और भव्य रात्रि जागरण के लिए प्रसिद्ध है। यह दिन शिव के विवाहित रूप का उत्सव होता है। दोनों त्योहारों में भगवान शिव की पूजा की जाती है, लेकिन महाशिवरात्रि की पूजा व्यापक रूप से अधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व की मानी जाती है।

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