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हिन्दू धर्म में मान्यता है कि व्यक्ति को अपने जीवन में किसी भी सफलता को प्राप्त करने के लिए संकल्प और नियमों की आवश्यकता पड़ती है। प्राचीन काल से ऋषियों और आचार्यों ने तपस्या, संयम और नियमों को व्रत के समान माना। व्रत-उपवास हिंदू संस्कृति एवं धर्म के प्राण हैं। व्रतों को लेकर वेद, धर्मशास्त्रों, पुराणों में बहुत कुछ कहा गया है।
कहा जाता है कि संकल्प से ही संयम जागृत होता है और जितना संकल्प मजबूत होगा, व्यक्ति उतना ही संयमित जीवन जी सकेगा। व्रत से अंतःकरण की शुद्धि होती है। व्रत मानसिक शांति की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मन में काम, क्रोध, लोभ, मद, ईर्ष्या, राग-द्वेष को त्याग दें। सबके भले की कामना को स्थायी सोच के रूप में रखने का प्रयास करना एवं संकल्पों का शुद्ध मन और पवित्र आचरण से पालन किया जाना ही व्रत है। व्रत व्यक्ति के जीवन को पवित्र बनाने के लिए हैं। इसमें उपवास, ब्रह्मचर्य, एकांतवास, मौन, आत्मनिरीक्षण आदि की विधा से मन को निर्मल करके आचरण की शुद्धि का संकल्प लिया जाता है। जिससे बुराईयों से मुक्ति मिल सके और सद्गुण पनपने की प्रक्रिया शुरू हो सके। हिन्दू धर्म में पूजा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। व्रत मन का विश्वास है। व्रत का मतलब सम्मान, श्रद्धांजलि, आराधना इत्यादि है।
हिंदू धर्म में सबसे पहले किसने और क्यों व्रत रखा था। इसके पीछे कई कथाएं उल्लेखित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि दुर्वासा जी से मिले श्राप के निराकरण के लिए भगवान विष्णु जी ने माता उमा महेश्वर का व्रत किया था। उन्होंने महर्षि दुर्वासा के समक्ष हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया और अपनी गलती के प्रायश्चित के लिए उपाय पूछा था। इसपर महर्षि दुर्वासा ने विष्णु जी से कहा कि माता उमा महेश्वर का व्रत करें। व्रत के प्रभाव से आपको माता लक्ष्मी और क्षीर सागर पुन: प्राप्त होंगे।
इस व्रत को लेकर ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति भाद्रपद माह के पूर्णिमा के दिन माता उमा महेश्वर का व्रत रखता है। विधि-विधान से पूजा करता है। उसके सब दोष दूर हो जाते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इसी प्रकार पहले व्रत को लेकर यह भी मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। उसके बाद हर वर्ष सुहागन महिलाएं करवा चौथ के दिन अपने पति के लिए व्रत रखती हैं। पति की लम्बी उम्र के लिए इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखकर संध्या काल में चांद को देखती हैं। इसके बाद अपने पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत को तोड़ती है।
एक पौराणिक कथा के मुताबिक, देवताओं और दानवों के बीच युद्ध के दौरान देवियों ने ब्रह्मदेव से अपनी पतियों की रक्षा के लिए आशीर्वाद मांगा था। तब ब्रह्मदेव जी ने देवियों को कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखने की सलाह दी। जिससे देवताओं की दानवों से रक्षा हो सके। हमारे धार्मिक ग्रंथों में और भी कई मान्यताएं हैं जो व्रत की महिमा और शुरुआत का बखान करती हैं। लेकिन सभी का ध्येय यही है कि व्रत एक ऐसा नियम है जो धर्म और विज्ञान का समागम है।
मान्यता है कि व्रत करने से मनुष्य की अंतरात्मा शुद्ध होती है। इससे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रता की वृद्धि होती है। अकेला एक व्रत अनेकों शारीरिक रोगों का नाश करता है। नियमित व्रत तथा उपवासों के पालन से उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है। सनातन धर्म में व्रत रखने का विशेष व्याख्यान है। व्रत रखने से व्यक्ति को मानसिक शांति, भगवान के नजदीक रहने से शक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। आयुर्वेद और विज्ञान भी व्रत को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानते हैं।
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