सिर्फ दिवाली के दिन खुलता है बेंगलुरू का लक्ष्मी मंदिर

साल में केवल एक बार खुलता है बेंगलुरु का हसनंबा मंदिर, साल भर प्रजवल्लित रहती है अखंड ज्योति, जानिए क्या है पौराणिक मान्यता


भारत एक ऐसा देश है, जहां हर कहीं कई किस्से कहानियां है। यहां के हर शहर हर राज्य में कई कहानियां देखने को मिलती है। हर शहर के नाम के पीछे कोई न कोई पौराणिक कहानी है। ऐसे ही भारतीय राज्य कर्नाटक के बेंगलुरु शहर के हासन जिले में एक ऐसा अनोखा मंदिर है जो साल के 365 दिन में से सिफ एक बार यानी दिवाली वाले सप्ताह में खुलता है। बाकी पुरे समय ये मंदिर बंद रहता है और भक्त बड़ी उत्सुक्ता से दिवाली का इंतजार करते हैं ताकि वे यहां उपस्थित धन, यश, वैभव और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी के दर्शनों का आनंद ले सकें। मंदिर की खास बात ये है कि ये मंदिर साल में सिर्फ एक बार दिवाली के पर्व पर खुलता है लेकिन यहां जलाने वाली अखंड ज्योत साल भर तक जलती रहती है। जिसे भक्त माता लक्ष्मी का साक्षात चमत्कार मानते हैं। इस मंदिर का वर्णन हमारे पुराणों में भी मिलता है। आईए भक्त वत्सल के इस लेख में जानते हैं इस अद्भत मंदिर की महिमा को विस्तार से……


मंदिर का इतिहास 


बेंगलुरु से लगभग 180 किमी की दूरी पर स्थित यह मंदिर हासन में स्थित है। देवी शक्ति मां अम्बा को समर्पित, हसनंबा मंदिर 12 वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था। उन्हें हासन की पीठासीन देवी के रूप में माना जाता है और शहर का नाम हासन देवी हसनंबा से लिया गया है। पहले हासन को सिंहमासनपुरी के नाम से जाना जाता था। हालांकि मंदिर की अपनी खासियत और किवदंतियां हैं। 


मंदिर से संबंधित पौराणिक कथा 


पौराणिक कथा के अनुसार, यहां राक्षस अंधासुर ने अपनी घोर तपस्या के बाद ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अदृश्यता का वरदान मांगा था। वरदान पाते ही उसने धरती पर आतंक मचाना शुरू कर दिया। तब उसके आतंक का अंत करने के लिए भगवान शिव युद्ध में उतरे पर उसके खून की एक-एक बूंद से नए राक्षस की उत्पति होने लगी। इसके बाद महादेव ने अपने तपोबल से देवी योगेश्वरी का निर्माण किया और देवी ने अंधासुर का वध किया।


भक्तों की मान्यता


एक और मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए देवी के नाम पर चिट्ठी लिखते है। यह मंदिर दिवाली के समय 7 दिन के लिए खोला जाता है और प्रतिपदा के उत्सव के 3 दिन बाद बंद कर दिया जाता है। उन 7 दिनों में यह भक्तों की भारी तादाद देखने को मिलती है, जो देवी का आशीर्वाद लेने आते है।


यह चमत्कार भी है यहां 


यहां की एक और चमत्कारी खासियत यह है कि स्थानीय लोगों का मानना है कि जब साल भर बाद कपाट खोले जाते है तो वहां साल भर पहले चढ़ाए हुए फूल और जलता हुआ दीया यथावत देखने को मिलता है। साथ ही कपाट बंद करने के पहले चढ़ाए गए पके हुए चावल भी एक दम ताजा ही रहते हैं।


मंदिर की किंवदंतियां


एक किंवदंती के अनुसार, एक बार जब सात मातृका यानी ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वारही, इंद्राणी और चामुंडा देवी दक्षिण भारत में भ्रमण के लिए आईं तो वे हासन की सुंदरता देखकर यहीं बस गईं। तब वराही और चामुंडा ने देवीगेरे होंडा और वैष्णवी, कौमारी के साथ माहेश्वरी ने वहां स्थित तीन कुओं के पास रहने का फैसला किया। इस मान्यता के चलते भी इस स्थल को बेहद ही पवित्र माना जाता है। हसनंबा को समर्पित इस मंदिर के परिसर में तीन मुख्य मंदिर हैं। मंदिर में मुख्य मीनार का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है। यहां का एक अन्य प्रमुख आकर्षण कलप्पा को समर्पित मंदिर भी है।


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने